कविता :: कुशाग्र अद्वैत
Posts tagged लोक
पसलियाँ चाक़ू से ऐसे सहमत हो सकती हैं
कविताएँ :: राजेश कमल
भूख पर कविता उतनी अधूरी रह जाती है जितना भूख में कवि होना
कविताएँ :: उज्ज्वल शुक्ल
यह जानते हुए भी कि मुझे कहाँ रास आता है प्रेम
कविताएँ :: सपना भट्ट
मैं दबाकर रखी गई चीख़ हूँ जो तुम्हें बावला कर सकती है
कविताएँ :: यशस्वी पाठक
मैं भूल गया था—मेरा रक्त ही मेरा मूल धर्म है
कविताएँ :: आशुतोष प्रसिद्ध