कुज़ूर विल्सन की कविताएँ ::
मलयालम से अनुवाद : बाबू रामचंद्रन
रिहर्सल
अगर बारिश हो तो ऐसे
और अगर न हो तो वैसे
पकड़नी है छतरी।
क्लास में पानी की बोतल
रखने का ढंग।
लंच बॉक्स, नेम स्लिप्स,
रंगीन पेंसिलें,
बस्ते में लिखा अपना नाम—
सब दुबारा से देख लिया।
‘‘बेटा, अगर हम हमेशा यह सोच लें
कि बाहर बारिश हो रही है,
तो हम छतरी कभी नहीं भूलेंगे।’’
माँ की टिप्पणी :
भला वह क्या जानें
स्कूल जाने के बारे में…!
सब कुछ सही है
उसने कम से कम सौ बार
रिहर्स किया होगा
पैदल चलते वक़्त
छतरी पकड़ने का ढंग।
पर देखो
एक बार भी रिहर्स किए बग़ैर
कितने दुरुस्त ढंग से
उसने दर्शाया है :
डंपर ट्रक के नीचे आना…
छतरी इधर,
लंच बॉक्स खुल कर उधर,
पानी की बोतल, नेम स्लिप्स..
रंगीन पेंसिलें..
इधर…
उधर…
जगह
उस कियोस्क के पीछे एक खजूर का पेड़ है,
जिसके नीचे मैं आठ-नौ बार सिगरेट पीता हूँ हर रोज़
धीरे-धीरे
यह जगह मेरी अपनी होती गई है
आज जब मैं उस तरफ़ गया
तब उधर सिगरेट फूँकते हुए खड़ा मिला कोई और
मैं क्या बोलूँ उससे कि यह जगह मेरी है…
सफ़ाईवालों ने मेरे सिगरेट के खोखे हटा दिए,
सुबह होते ही
खजूर के पत्ते सिर झुकाए खड़े हैं
(आज पहली बार ध्यान दिया मैंने उन पर…)
सब कुछ जैसे कि मैं पहली बार देख रहा हूँ
मेरा अपना कहने लायक़ बचा ही क्या है अब उधर…
नो स्मोकिंग
और पीओगे
तो तुम्हारा जिगर सूख जाएगा—
डॉक्टर कहता है
वह फूल तो कब का
मुरझा चुका है—
कहा मैंने…
और पीओगे—
तो मैं तुम्हें खो बैठूँगी
ग्रेसी कहती है
अपने आपको तो
मैंने कब का खो दिया—
कहा मैंने…
सुट्टेबाज़ के किरदार में
कभी सोच नहीं पाऊँगा तुम्हें—
कहता है मेरा लेखक दोस्त
किसी भी कहानी में
मुझे मत गिनना—
कहा मैंने…
काले पड़ गए हैं,
तुम्हारे होंठ—
कहती है मेरी जान
तंबाकू की बू वाला एक भी चुंबन
नहीं बचा है अब—
कहा मैंने…
तू ख़ुद को क्यों
मिटा रहा है ऐसे—
पूछता है जिनू, मेरा यार
दूसरों को मिटाना
कभी नहीं आया मुझे—
कहा मैंने…
देर से चलती सरकारी बसों ने
मुझे धूम्रपान सिखाया—
कहता है एक अजनबी
एक बूँद रोशनी की ख़ातिर
बना मैं सुट्टेबाज़—
कहा मैंने…
सब कहते हैं :
‘तू चेन स्मोकर है’—
कहती है मेरी बहन
आग बिन
कभी धुआँ होता है क्या—
कहा मैंने…
‘यहाँ धूम्रपान निषिद्ध है’—
कहता है अस्पताल का
सूचना-बोर्ड
शेष सब
‘विहित’ है क्या?—
पूछा मैंने…
आत्महत्या
ईश्वर को मंज़ूर नहीं—
कहता है पादरी
भगवान का फूँका हुआ
सिगरेट का धुआँ हैं ये बादल—
कहा मैंने…
***
कुज़ूर विल्सन (जन्म : 1975) मौजूदा मलयालम कविता के सुचर्चित नाम हैं। उनका स्वर और तेवर अलग से पहचाना गया है। उनकी कविताओं की छह किताबें प्रकाशित हैं। मध्य-पूर्व में बिताए दिनों पर उनकी एक गद्य-कृति भी प्रकाशित है। वह कालीकट, केरल में रहते हैं। उनसे kuzhoor@gmail.com पर बात की जा सकती है। बाबू रामचंद्रन हिंदी के कई चर्चित कवियों का मलयालम में अनुवाद कर चुके हैं और कर रहे हैं। यह गए वर्ष की बात है, जब वह ‘सदानीरा’ के विशेष अनुरोध पर समकालीन मलयालम कविता के कुछ महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों का हिंदी में अनुवाद करने को राज़ी हुए, और इस क्रम में उन्होंने कालपेट्टा नारायणन, विष्णुप्रसाद और जिनेश मडप्पल्ली की कविताओं के अनुवाद प्रस्तुत किए। ये कवि, उनकी कविताएँ और उनके अनुवाद किस कोटि के हैं; यह उनसे गुज़रकर जाना जा सकता है। बाबू रामचंद्रन त्रिवेंद्रम में रहते हैं। उनसे alberto.translates@gmail.com पर बात की जा सकती है।