पति को पत्र ::
वर्जीनिया वुल्फ
अनुवाद और प्रस्तुति : अमित तिवारी
प्रियतम,
मुझे पक्का यक़ीन है कि मैं फिर से पागल होने वाली हूँ।
मुझे लगता है कि हम इस तरह के भयानक दौर से अब बचकर निकल नहीं सकते और मैं शायद इस बार पुनः स्वस्थ न हो पाऊँ। मुझे आवाज़ें सुनाई देने लगी हैं और मैं ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही हूँ। इसलिए ऐसे समय में जो करना सबसे अच्छा है, मैं वह सब कर रही हूँ। तुमने मुझे यथासंभव अधिकतम ख़ुशियाँ दी हैं। तुम मेरे लिए हर तरह से वैसे रहे जैसे किसी को होना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि दो लोग इससे ज़्यादा ख़ुश हो सकते हैं, जब तक कि ये बीमारी नहीं आ पड़ती है।
मैं अब और नहीं लड़ सकती।
मैं जानती हूँ कि मैं तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद कर रही हूँ, कि तुम मेरे बिना सही से काम कर सकते हो। और तुम करोगे, मैं जानती हूँ। देख रहे हो… मैं ये सब भी सही से नहीं लिख पा रही हूँ। मैं पढ़ नहीं सकती। मैं बस यह कहना चाहती हूँ कि मैं अपनी ज़िंदगी की सभी ख़ुशियों के लिए तुम्हारी एहसानमंद हूँ। तुम मेरे साथ पूरी तरह से सहनशील और बहुत ही अच्छे रहे हो।
मैं यह कहना चाहती हूँ—सब लोग यह जानते हैं। अगर कोई मुझे बचा सकता तो वह तुम ही होते। सब कुछ मुझसे छूट चुका है, सिवाय तुम्हारी अच्छाई पर यक़ीन के। मैं अब और तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद करते नहीं रह सकती।
मुझे नहीं लगता कि दो लोग उतने ख़ुश हो सकते हैं जितने हम थे।
— वी
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साल 1941 में यह पत्र वर्जीनिया वुल्फ ने अपने पति लियोनार्ड वुल्फ को लिखा था। उनके इस आख़िरी पत्र को उनका सुसाइड नोट भी माना जाता है। यह पत्र लियोनार्ड को उस दिन मिला जिस दिन वर्जीनिया वुल्फ ने आत्महत्या कर ली। आत्महत्या से एक दिन पहले लियोनार्ड उन्हें एक चिकित्सक के पास ले गए थे, पर वर्जीनिया ने सारी उम्मीदें खो दी थीं और इलाज लेने से मना कर दिया था। अगली सुबह वर्जीनिया ने अपनी जेबों में पत्थर भरे और ख़ुद को अपने घर के पास की Ouse नाम की नदी में डुबो दिया। वर्जीनिया को तेरह साल की उम्र से ही अक्सर मानसिक उन्माद और अवसाद के दौरे पड़ते थे। उनको यह रोग अपने परिवार से मिला था। यह पत्र हिंदी अनुवाद के लिए फिंगरप्रिंट पब्लिकेशन से प्रकाशित 50 World’s Greatest Letters से चुना गया है।
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अमित तिवारी हिंदी कवि हैं। उनसे और परिचय तथा ‘सदानीरा’ पर प्रकाशित उनकी कविताओं के लिए यहाँ देखें :