कविताएँ ::
राजेश कमल
आपदाग्रस्त
एक
अड्डेबाज़ी नहीं
दोस्त नहीं
अट्टहास मौत-सा
नहीं जीवन जेल-सा
भोजन है
चाय है
प्रेम है,
न्यूनतम ख़तरों-सा
चुम्बन है,
अधिकतम ख़तरों-सा
जमा सिर्फ़ शराब है
भय है कि भयावह
अगर इस तूफ़ान से निकल गया
और कोई दोस्त छूट गया
कोई नातेदार
कोई हमनवा
कोई प्यार
तो निकलना कितना साबुत होगा
कितना खरा होगा जीवन
दो
जिनके छत नहीं हैं
जो रोज़ कुआँ खोदते
रोज़ पीते पानी
आँसुओं को पी
कितने दिनों तक
कर पाएँगे गला तर
कितने दिनों तक
रोटियों का विकल्प बना
उँगलियों को चाटना होगा
कितने दिनों तक
सिर्फ़ लोरियाँ सुना
बच्चों को सुलाया जाएगा
तीन
कुछ लाड़ले
इसी मुल्क के
दिए हैं चल
ध्वस्त करते
मील के पत्थरों को
अपने घर की तरफ़
चट्टानी जीवटता के साथ
शायद घर पर रोटी होगी
उसी घर पर
जिसे छोड़ा था कभी
रोटी की तलाश में
हज़ारों मील फ़तह करने वाले
इन भारत पुत्रों के लिए
क्या कोई बजाएगा ताली?
राजेश कमल हिंदी कवि-लेखक हैं। उनसे और परिचय तथा ‘सदानीरा’ पर इससे पूर्व प्रकाशित उनकी कविताओं के लिए यहाँ देखें : बेहतर है कि डर को रोमांच पढ़ा जाए │ मोह कमज़ोरों की भावना थी
इस प्रस्तुति की फ़ीचर्ड इमेज़ : मानवी कपूर