कविताएं ::
राजेश कमल
पटना में दोस्तों की बैठकी के बीच का एक परिचित नाम है— राजेश कमल. लोग जानते हैं कि राजेश कविताएं लिखते हैं, गोष्ठियों में कभी-कभार सुनाते भी हैं. कहने को कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुए हैं. लेकिन कभी किसी ने ठहर कर उन्हें पढ़ा हो, ऐसी कोई सूचना अभी तक कहीं शाया-साझा नहीं हुई है. फेसबुक पर तो इन दिनों हिंदी के लगभग सारे कवि हैं, कुछ तो दैनिक अखबार की तरह दैनिक काव्य-प्रसारण में भी जुटे हैं. राजेश कमल भी फेसबुक पर हैं, लेकिन अपनी कविता को फेसबुक का ग्रास बनाते उन्हें कभी नहीं देखा गया है. यह पहला अवसर है जब उनकी ये चार कविताएं ऑनलाइन संसार में सार्वजनिक रूप से कहीं शाया-साझा हो रही हैं.
[ उदय शंकर ]
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प्रेमपत्र
कहानियां अक्सर अनकही रह जाया करती थीं
शायद अनसुनी भी
कुछ दुआएं कुबूल हुईं
मुहब्बत हुई
कहानियों के दस्तावेज जमा हुए
उन्हें प्रेमपत्र कहा गया
अब भी उतने ही प्रेमी हैं
अब भी उतनी ही कहानियां
कलम की जगह की-बोर्ड ने ले ली
पोस्टमैन की जगह इंटरनेट ने
एक दिन एक नए प्रेमी से पूछा
कितनी चिट्ठियां हुईं अब तलक
उसने मुस्कुराते हुए कहा
सब डिलीट कर दीं
जयंती
कायस्थ राजेंद्र बाबू की
राजपूत महाराणाप्रताप की
भूमिहार दिनकर की
ब्राह्मण चाणक्य की
मनाते हैं जयंती
वर्षों तक भगत सिंह को राजपूत समझ
एक राजनेता मनाता रहा उनकी जयंती
इल्म हुआ तो वह आजकल
बाबू वीर कुंवर सिंह की मनाता है जयंती
शुक्र है कि जातियां बची हुई हैं
इसीलिए बची हुई है जयंती
महापुरुष
धान गेहूं सूरज चांद मिट्टी पानी
बाद में आता है यहां
आंसुओं के लिए मशहूर
मगरमच्छ पहले आता है
हम बड़े शातिर हैं
कई दिनों से पत्नी की चप्पल टूटी है
हम मुस्कुराकर कहते हैं
तुम कितनी हसीन हो
बड़े शातिर हैं हम
और हमारा निजाम नामर्द थोड़े ही है
महापुरुष है भाई महापुरुष
पहली बार
पहली बार
पिता की जेब से रुपए निकालते हुए हाथ कांपे थे
पहली बार
साइकिल की फुल पैडल लगाते पांव कांपे थे
पहली बार
किसी स्त्री को चूमते हुए होंठ कांपे थे
पहली बार
निरोध खरीदते पूरा जेहन ही कांप गया था
धीरे-धीरे डर जाता रहा
बेहतर है कि डर को रोमांच पढ़ा जाए
पहली बार होने वाली चीजों का इंतजार किया जाए
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राजेश कमल से rajeshkamal09@gmail.com पर बात की जा सकती है. कवि की तस्वीर शशांक मुकुट शेखर के सौजन्य से.