बातें ::
अदूनिस
से
माया जग्गी
अनुवाद : आग्नेय
‘‘एक रचनाकार को हमेशा, जो क्रांतिकारी है उसके साथ होना है, लेकिन वह क्रांतिकारियों जैसा नहीं हो सकता. वह न तो उनके जैसी भाषा बोल सकता है और न वह उनके जैसे राजनीतिक परिवेश में काम कर सकता है.’’
— अदूनिस
लिखने में जीवन
अरब संसार के महानतम कवि अदूनिस मुझे पेरिस की एक शानदार इमारत के भूल-भुलैया वाले गलियारों के अंदर ले गए. यह इमारत Champs-Elysées के निकट है. उसके भव्य दफ्तर, उनके एक प्रशंसक सीरिया में जन्मे एक व्यापारी के हैं. वह कवि के इस जोखिम भरे काम, अरबी भाषा में एक सांस्कृतिक पत्रिका के प्रकाशन के लिए धनराशि दे रहे हैं. इस पत्रिका का संपादन अदूनिस कर रहे हैं. उसके तीसरे अंक की भारी-भरकम पांडुलिपि उठाते हुए उन्होंने उत्तेजित होकर उसे कॉफी की मेज पर रख दिया, यह गिनाते हुए कि उसमें पूर्व और पश्चिम दोनों का अवदान है और उनमें से कई ऐसे भी लेखक हैं जो उनके नाती-पोतों की पीढ़ी के हैं. अदूनिस इस माह 82 के हो चुके हैं. उनकी आंखें यह कहते हुए चमक रही थीं, ”हम नए विचारों की नई प्रतिभाओं को चाहते हैं.”
सीरिया में जन्मे कवि, आलोचक और निबंधकार अदूनिस एक प्रबल धर्म-निरपेक्षवादी हैं, जो अपने को एक ‘काफिर पैगंबर’ कहते हैं. वह 70 वर्षों से कविता लिख रहे हैं. उन्होंने बीसवीं सदी के दूसरे अर्द्ध में एक आधुनिक क्रांति का नेतृत्व किया, जिसका एक भूकंपीय प्रभाव अरबी कविता पर पड़ा. उसकी तुलना आंग्लभाषी संसार में टी.एस. एलियट के प्रभाव से की जा सकती है. 17 साल की उम्र में उन्होंने उर्वरता के ग्रीक देवता का नाम ग्रहण किया, जिसका उच्चारण एडोन-ईस होता है और उसके आखिरी शब्दों पर स्वराघात होता है. उन्होंने अदूनिस होकर ऊंघते हुए संपादकों को सावधान कर दिया कि उनके पास एक अपरिपक्व प्रतिभा, पूर्व-इस्लामी और अखिल भूमध्यसागरीय कविता है.
2008 में फिलस्तीनी कवि महमूद दरवेश की मृत्यु के बाद एक और दूसरे श्रेष्ठतम कवि के पक्ष में तर्क देना कठिन होगा, जहां की साहित्यिक संस्कृति में कविता की सर्वाधिक प्रतिष्ठा है और इसके साथ ही वह लोकप्रिय भी है.
अदूनिस 1985 में पेरिस चले गए और उनको वहां 1997 में फ्रांस के ऑर्डर ऑफ आर्ट्स एंड लैटर्स के कमांडर से नवाजा गया. पिछले वर्ष, वह पहले अरबी लेखक हैं जिनको जर्मनी में गोएथे सम्मान मिला और प्रत्येक शरद-ऋतु में विश्वसनीय रूप से नोबल पुरस्कार के लिए उनको नामांकित किया गया. अभी तक मिस्र के उपन्यासकार नगीब महफूज के अतिरिक्त किसी अरबी लेखक को यह पुरस्कार नहीं मिल सका है. उनको पिछले वर्ष स्वीडन के कवि टॉमस ट्रांसट्रोमर को यह पुरस्कार दिए जाने का अफसोस नहीं है. वह अरब देशों में उनके दौरे के समय उनको परिचित करा चुके हैं.
जब टयूनेशिया और मिस्र में आंदोलन प्रारंभ हुए अदूनिस ने छोटी-छोटी कविताएं लिखकर अपनी खुशी और उल्लास का इजहार किया, लेकिन खुशी ने सतर्कता का स्थान ले लिया और वह त्रासदी की चेतावनी में बदल गई. उन्होंने कहा, ‘‘ये अरब के युवा हैं जो यह वसंत लाए हैं और ऐसा पहली बार हुआ, जब अरब पश्चिम का अनुसरण नहीं कर रहा है. यह असाधारण है.’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘लेकिन इसके बावजूद इस्लामवादी, सौदागर और अमेरिकी हैं, जो इस क्रांतिकारी समय का फल चखना चाहते हैं.’’
उनकी इस धारणा से कुछ लोगों ने अपना धीरज खो दिया और उन पर व्यापक रूप से आक्रमण किए जाने लगे. सिनान अनतून जो एक ईराकी कवि, उपन्यासकार और न्यूयार्क विश्वविद्यालय में सहायक अध्यापक हैं, ने यह दावा किया कि आत्म-घोषित क्रांतिकारी कवि अदूनिस को ‘अरब वसंत’ ने अप्रासंगिकता में फेंक दिया है.
अदूनिस यह मानते हैं कि अरब संसार में कवियों और कलाकारों में राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध होने की प्रवृत्ति दिखाई देती है. मानवीय अधिकारों और फिलस्तीन के लिए उपनिवेशवाद, अरब निरंकुशता और कट्टरवादियों की जड़ सोच के खिलाफ संघर्ष करने के लिए बहुत कुछ है.
‘‘मैं प्रतिबद्धता के विरुद्ध नहीं हूं और न उनके विरुद्ध हूं, लेकिन मैं उन जैसा भी नहीं हूं. एक रचनाकार को हमेशा, जो क्रांतिकारी है, उसके साथ होना होता है, लेकिन वह कभी क्रांतिकारियों जैसा नहीं हो सकता. वह न तो उनके जैसी भाषा में बोल सकता है और न वह उनके जैसे राजनीतिक परिवेश में काम कर सकता है.’’
उन्होंने यह भी कहा कि वह गांधी के साथ हैं, ग्वेरा के साथ नहीं हैं… वी.एस. नायपॉल की तरह जो उनके प्रशंसक मित्र हैं और जिन्होंने अदूनिस को अपने समय का उस्ताद कहा है.
अदूनिस विरोधाभासी हो सकते हैं, लेकिन वह नायपॉल की तरह जिद्दी और तेज-तर्रार नहीं हैं. उनके आलोचक के लिए अरब संस्कृति और अरब मानस के लोप होने पर उनकी टीकाएं प्राच्य-रंग लिए हो सकती हैं, लेकिन उनके अनुवादक खालेद मत्त्तावा जो स्वयं एक अरबी कवि हैं, के लिए यह एक नपा-तुला मूर्ति-भंजन है. असहिष्णुता के अंदर गहराई से अपनी जड़ें जमाए शक्तियों के खिलाफ दृढ़तापूर्वक अपने को अभिव्यक्त करने के साथ-साथ अरब संस्कृति की पुनरोद्धारक परतों की उत्सवधर्मिता को भी वह नहीं बख्शते.
यद्यपि उनकी कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद फ्रेंच भाषा में किए गए अनुवादों से पिछड़ गए, पिछले दशक में उनके पांच संग्रह प्रकाशित हुए. मत्तावा द्वारा किए गए उनकी चयनित कविताओं के संग्रह ने अरबी अनुवाद के लिए सैफ घोबाश-बनीपाल पुरस्कार जीता. अदूनिस अगले माह सम्मान समारोह में भाग लेने के लिए लंदन आ रहे हैं. वह 3 फरवरी से प्रारंभ होने वाले दो माह तक चलने वाले उत्सव में भी शामिल होंगे. यह उत्सव पश्चिमी लंदन के मोजिक रूम्स में होगा और वह A Tribute to Adonis पर एकाग्र है. इस उत्सव में कवि की नवीन कलाकृतियों की प्रदर्शनी भी आयोजित की जा रही है. उन्होंने दस वर्ष पहले अरबी Calligraphy का उपयोग करते हुए कुछ छोटे-छोटे कोलाज बनाए.
यह समय उनके रचनात्मक अवरोध का समय था और उनके कुछ मित्रों के सुझाव पर उन्होंने उनको प्रदर्शित किया. इस तरह उन्होंने ‘‘वस्तुओं से शब्द को छोड़कर एक दूसरे माध्यम से अपने संबंधों को अभिव्यक्त किया.’’
वह इसमें चर्म-पत्रों, चिथड़ों और अन्य फालतू समझी जाने वाली चीजों के टुकड़ों का उपयोग करते हैं. वह रंगों का भी कभी-कभी उपयोग करते हैं.
‘‘मैं फाड़ दी गई चीजों का ही उपयोग पसंद करता हूं, मेरी अपनी कविताएं और क्लासिकल अरबी कविताओं की कुछ पंक्तियां उनके प्रति एक अर्पण होती हैं.’’
पिछले जन-सीरियाई जागरण में रक्तरंजित दमन के बीच अदूनिस ने लेबनानी अखबार ‘अलसाफिर’ में सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-अस्सद को एक नागरिक की हैसियत से एक खुला पत्र लिखा. सीरिया को एक क्रूर पुलिस राज्य मानते हुए उन्होंने सत्तारूढ़ बाथ पार्टी पर आक्रमण किया और राष्ट्रपति से अपना पद त्यागने का आग्रह किया. इसके साथ उन्होंने यह चेतावनी भी दी, ‘‘वे एक पूरे राष्ट्र को बंदीगृह में नहीं रख सकते.’’
फिर भी उनकी इस बात के लिए आलोचना की गई कि उन्होंने एक निरंकुश शासक को एक निर्वाचित राष्ट्रपति की तरह संबोधित किया और उनके कुछ विरोधियों को ‘हिंसक प्रवृत्ति वाले’ कहा.
इस पर अदूनिस ने कहा, ”मैंने इसलिए ही यह कहा था कि मैं क्रांतिकारियों की तरह नहीं हूं. मैं उनके साथ हूं, लेकिन मैं उनके जैसी भाषा में बोल नहीं सकता. वे पाठशालाओं के शिक्षकों की तरह हैं, जो यह बताते हैं कि किसी को कैसे बोलना है और कैसे उनके द्वारा कहे गए शब्दों को ही दुहराना है, जबकि मैंने 1956 में सीरिया छोड़ दिया था और मैं 50 साल से अधिक समय से विरोध कर रहा हूं. मैं कभी अस्सद (बशर या हफीज) से नहीं मिला. मैं उन लोगों में से हूं जिन्होंने सबसे पहले बाथ पार्टी की आलोचना की है, क्योंकि मैं विचारों की एकनिष्ठता पर केंद्रित विचारधारा के विरुद्ध हूं. वस्तुतः यह एक बेतुकापन है कि तानाशाहों का विरोध करने वाले अपनी किसी आलोचना को स्वीकार नहीं करते. यह दुष्चक्र है. अतः कोई जो तानाशाही के प्रत्येक प्रकार का विरोध करता है, न तो हुकूमत के साथ होता है और न उनके, जो उसका विरोध करने वाले कहलाते हैं, साथ हो सकता है. विपक्ष स्वयं avant la lettre सत्ता है.”
अदूनिस ने यह भी जोड़ा, ”हमारी परंपरा में दुर्भाग्यवश प्रत्येक वस्तु एकत्व पर — ईश्वर के, राजनीति के और जनता के एकत्व पर — आधारित है. इस तरह की मानसिकता को लेकर हम प्रजातंत्र की ओर कभी नहीं बढ़ सकते, क्योंकि प्रजातंत्र दूसरे को अपने से भिन्न समझने पर आधारित है. आप यह नहीं सोच सकते हैं कि आप ही सत्यवादी हैं, दूसरा नहीं हो सकता है.
अदूनिस की 107 वर्षीय मां अब भी सीरिया में रहती हैं. अपने देश को छोडऩे के बाद जब उनको एक विरोधी दल की सदस्यता के लिए एक वर्ष के लिए जेल में रखा गया था, अपनी रिहाई के बाद उन्होंने सीरिया को छोड़ दिया था. वह पिछले बीस वर्षों से अपनी मां से नहीं मिल पाए हैं. 1976 से वह हर साल सीरिया जाते थे. पिछले दो वर्षों से उनके मित्रों का आग्रह है कि उनका वहां जाना खतरे से भरा है, लेकिन वह इस बात पर अड़े रहे हैं कि पारिवारिक स्थितियां उनको वह कहने से कभी रोक नहीं पाईं, जो वह कहना चाहते हैं.
जब लोग उन पर सीरियाई हुकूमत की भर्त्सना करने में सुस्ती और गोल-मोल बात करने का आरोप लगाते हैं, वह उदास होकर कहते हैं, मैंने अनेक लेख लिखे हैं. मेरी दो सौ पृष्ठों की एक किताब जल्द ही आने वाली है. दुख इसका है, ये लोग पढ़ते नहीं हैं.
वह ला डेफेंस के परे पेरिस के बाहरी इलाके में अपनी पत्नी खालिदा सईद के साथ — जो एक साहित्यिक आलोचक हैं — रहते हैं :
‘‘मेरे लिए वह एक अच्छी आलोचक हैं, शायद सर्वोत्तम में से एक हैं. हम कभी सहमत होते हैं और कभी असहमत भी होते हैं.’’
उनकी दो लड़कियां हैं, अरवाद जो पेरिस में House of World culture की निर्देशिका हैं और दूसरी बेटी तिनार है, जो पेरिस और बेरूत के बीच आती-जाती रहती हैं. अदूनिस इस बात का जरा भी एहसास नहीं होने देते हैं कि वह अपनी दो बड़ी शल्य-क्रियाओं के दौरान नौ माह लेबनान में गुजार चुके हैं. उसके पहले वह कविता से अवकाश लेने की घोषणा भी कर चुके हैं. उन्होंने यह उस समय किया जबकि वह एकेश्वरवाद पर अपनी एक लंबी कविता Concerto of Jerusalem लिख रहे थे. उनका कहना है कि जेरूसलम तीन प्रमुख एकेश्वरवादी धर्मों का शहर है :
‘‘यदि ईश्वर एक है, उसे सुंदर होना चाहिए, लेकिन ऐसे होने के स्थान पर वह संसार का सबसे अधिक अमानवीय शहर है, और मैंने चुनौती के रूप में कविता नहीं लिखने की घोषणा कर दी है.’’
लेकिन अपनी कविताओं की ओर संकेत करते हुए वह कहते हैं, ‘‘पूर्व एकेश्वरवाद की देवियां मुझे अवकाश नहीं लेने दे रही हैं.’’
उन्होंने अली अहमद सईद के नाम से 1930 में पश्चिमी सीरिया के Quaassbin, जो पहाड़ों में अलग-थलग पड़ा एक गरीब गांव था, में जन्म लिया. उनके माता-पिता किसान थे. उनकी कोई प्रारंभिक शिक्षा भी नहीं हुई.
‘‘जब तक मैं 13 साल का नहीं हो गया, मैंने न तो कार, बिजली और टेलीफोन देखा. मैं स्वयं अपने आपसे पूछता हूं कि मैं कैसे एक दूसरे व्यक्ति में रूपांतरित हो गया. यह एक चमत्कार ही है.’’
कविता के प्रति उनके प्रेम को उनके पिता ने पोषित किया, और जब वह कुरानी पाठशाला में पढ़ते थे, उन्होंने सीरियाई गणतंत्र के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को अपनी एक कविता से इतना अधिक प्रभावित किया कि उनको French Lycee में पढ़ने के लिए वजीफा मिलने लगा. आगे उन्होंने दमिस्क विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया और बाद में लेबनान से पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त कर ली.
साल 1960 में पेरिस में एक वर्ष रहते हुए उन्होंने अपनी एक कविता Mihyar of Damascus : His Song (1961) में अपनी आवाज को पा लिया. इस कविता में नोह, आदम, यूलीसीज, ओर्फियस की प्रतिध्वनियां थीं. अगरचे उनके लिए धर्म और कविता में बैर है, सूफी रहस्यवाद में उन्होंने नवोन्मेष को पाया. उनकी किताब Sufism and Surrealism में उनकी इसी कविता की विचाराभिव्यक्ति है.
अदूनिस के लिए यथार्थ मात्र एक चमड़ी है, जो स्पर्श किए जाने पर विदीर्ण हो जाती है. वह उस रहस्यवादी दृष्टि की ओर भी उन्मुख हुए, जो यह मानती है कि अस्मिता जड़ नहीं है : ‘‘मनुष्य अपनी कृति में अपनी अस्मिता की रचना करता है.’’ लेकिन उनके लिए सूफीवाद अतियथार्थवाद या अस्तित्ववाद से कहीं अधिक गहन है, क्योंकि वह एक ऐसे क्रांतिकारी विचार से जुड़ा है, जो यह स्वीकार करता है, ‘‘वह दूसरा मैं हूं और वह मैं दूसरा हूं. अगर मुझे अंतर्यात्रा करनी है तो मुझे दूसरे से ही जाना होगा.’’
यह कोई दार्शनिक रमणीयता नहीं है. उनका परिवार अल्पसंख्यक शिया समुदाय Alwites से संबंधित है. कभी-कभार यह कहा जाता है कि इसकी वजह से वह अपने को अलग मानते हैं. इसका विरोध करते हुए वह कहते हैं, ‘‘अलवाइट होने की वजह से उनमें उपेक्षा का भाव नहीं है, लेकिन अरब संसार की वर्तमान स्थिति के परिणामस्वरूप, वह ऐसा अनुभव करते हैं. कोई भी व्यक्ति प्रोटेस्टेन्ट, कैथोलिक, सुन्नी या शिया जन्म से नहीं होता है, उसकी धार्मिकता उन अवधारणओं और मार्गों पर निर्भर करती है जिनका वह अनुसरण करता है. मैं ऐसा नहीं मान सकता.’’
उन्होंने धर्मनिरपेक्ष सीरियाई समाजवादी राष्ट्रीय दल को चुना और सीरिया के विभाजन और औपनिवेशीकरण का विरोध किया, जिससे वह बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक की अवधारणा से निकल सकें. 1950 के मध्य में उन्हें बाकायदा उनकी सैनिक सेवा के दौरान जेल में डाल दिया गया. उन्होंने 1960 में पार्टी छोड़ दी, तब से वह किसी भी दल के सदस्य नहीं बने : ‘‘मैं उस समय 14 या 15 साल का था, जब मैं किसी दल का सदस्य बना. मैं बच्चा था.’’ बाद में मैंने कहा, ‘‘मैं एक कवि और एक राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध व्यक्ति एक साथ नहीं हो सकता.’’
साल 1956 में जब वह अपनी पत्नी के साथ निष्कासित होकर बेरूत भागे तो यह निष्कासन उनका पुनर्जन्म था. उन्होंने दो प्रभावशाली पत्रिकाओं को Shir (कविता) और Mawaquif (पक्ष) की स्थापना की और बोलचाल वाली अरबी भाषा को स्वीकार किया. उन्होंने अरब राष्ट्रवाद और कविता को प्रचार बनाने का विरोध किया. टी.एस. एलियट पहले कवि थे जिनका उन्होंने सर्वप्रथम साक्षात्कार लिया गया. अदूनिस ने The Waste Land के अनुवाद में सहयोग दिया. इसके साथ ही एजरा पाउंड, स्टीफन स्पेंडर, फिलिप लार्किन और राबर्ट लोवैल की कृतियों के भी अनुवाद किए गए. उन्होंने नए स्रोतों को अरबी क्लासिकों के विश्वकोषीय अक्षत पाठ से जोड़ा. उन्होंने कहा :
‘‘सच्चा सृजन, सदैव आधुनिक होता है, क्योंकि वह ओविड, हेराक्लाइटस, होमर और दांते की आवाजों को भी सुनता है.’’
उनकी लंबी कविता This is My Name (1970), 1967 की अरब पराजय के आघात से प्रेरित है. The Book of Siege (1982), 1975 में प्रारंभ हुए लेबनान के गृहयुद्ध और 1982 में लेबनान पर हुए इजरायल के आक्रमण का रचनात्मक प्रतिफल है. पेरिस जाने के पहले उन्होंने इन घटनाओं को जीवंत रूप से अनुभव किया. जैसाकि उन्होंने प्रारंभिक पंक्तियों में लिखा, ‘‘शहर विलुप्त हो गए, धरती मिट्टी से भरी एक गाड़ी हो गई, लेकिन कविता जानती है कि उसे इस जगह कैसे जुड़ना है. 6 दिन का यह युद्ध भयावह था, लेकिन मैं उसकी त्रासद प्रकृति के प्रति उतना सजग नहीं था, जितना मैं 1982 में था.’’
अदूनिस ने 1979 में ईरानी क्रांति का पहले स्वागत किया, बाद में शीघ्रता से उसके प्रतिक्रियावादी मोड़ को अस्वीकार भी कर दिया. उनकी किताब The Fixed and the Changing (1974), जो रचनात्मकता और असहिष्णुता के बीच होने वाले संघर्ष पर है, ‘अतीतवाद’ के अरबी रोग से पहचान कराती है, जिसको वह इस तरह परिभाषित करते हैं :
‘‘अतीत को इस तरह देखना, पीछे की ओर लौटना है जबकि नदी समय के साथ प्रवाहमान है. इस वृत्ताकार समय को तोड़ना है. अतीत की ओर लौट जाने के लिए क्रांति नहीं होती.’’
जैसे ही अरब जागरण फैला, अदूनिस ने टेलीविजन पर दिए एक साक्षात्कार में स्पष्ट कर दिया कि वह एक ऐसी क्रांति में शामिल नहीं हो सकते, जो मस्जिदों से संचालित हो रही है. उन पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह ऐसा कहकर हुकूमत का साथ दे रहे हैं और विद्रोह की प्रबल परिस्थितियों से नावाकिफ हैं. जब उनसे पूछा गया कि वह शांतिपूर्ण प्रतिरोध का समर्थन करते हैं, उन्होंने अपने हाथों को इस तरह फैलाया जैसे वह concertina को खींच रहे हों : ‘‘यदि तुम्हारा कोई प्रतिवेदन है तो उस पर मैं दस्तखत कर दूंगा.’’
क्या उनको इसकी चिंता है कि उनके शब्द अरब तानाशाहों को प्रतिध्वनित करेंगे, जो इस्लामवादियों को विरोधियों के रूप में पेश कर रहे हैं? अदूनिस ने कहा कि एक अंतर है, ‘‘मैं बेन अली और अस्सद की हुकूमतों का विरोधी भी हूं और इस्लामी विपक्ष का भी विरोधी हूं. क्योंकि मैं एक निरंकुशता का विरोध एक दूसरी निरंकुशता के लिए नहीं करता… यदि हम धर्म को राज्य से अहलदा नहीं करते और उसे शरीयत कानून से मुक्त नहीं करते, हम और तानाशाह बना देंगे. सैनिक तानाशाही आपके मानस को नियंत्रित करती है, लेकिन धार्मिक तानाशाही आपके मन और शरीर दोनों का नियंत्रण करती है.’’
यदि चुनाव-पेटी से इस्लाम सत्ता में आए तब क्या होगा?
‘‘इस प्रकरण में प्रजातंत्र प्रगति का मानदंड नहीं होगा, इसलिए प्रजातंत्र की अवधारणा पर पुनर्विचार करना होगा. सत्य सदैव प्रजातंत्र के पक्ष में नहीं होता, हम क्या कर सकते हैं?’’
लेकिन उन्होंने यह माना कि प्रजातंत्र अपनी सारी विफलताओं के बावजूद तानाशाही से कम बुरा है. प्रजातांत्रिक रूप से चुने गए इस्लामवादी अवश्य ही बेहतर होंगे, लेकिन मैं इसके खिलाफ ही रहूंगा.
सीरिया गृहयुद्ध के मुहाने पर खड़ा है, संसद के समक्ष बोलते हुए राष्ट्रपति अस्सद ने अरब लीग के पद-त्याग करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है. अदूनिस ने साफ-साफ कह दिया है कि वर्तमान सत्ता को पूर्णतः जाना ही होगा. बॉथ पार्टी को जाना होगा. उसकी जगह एक ऐसी सत्ता को आसीन होना चाहिए जो धर्म-निरपेक्ष, प्रजातांत्रिक, बहुलतावादी हो. फिर भी वह सशस्त्र विप्लव और विदेशी हस्तक्षेप दोनों के विरुद्ध हैं. बंदूकें इन समस्याओं का समाधान नहीं हैं. अगर हरेक हथियार उठा लेगा, तब तो गृहयुद्ध छिड़ जाएगा. बाहरी सैनिक हस्तक्षेपों ने ईराक से लेकर लीबिया तक को पूरी तरह नष्ट कर दिया है. जहां तक उसके मानवीय विवेक का प्रश्र है, वह सच नहीं, वह सब उपनिवेश बनाने के लिए हुआ है. यदि पश्चिम वास्तव में अरबी मानवीय अधिकारों की रक्षा करना चाहता है तो उसको फिलस्तीन के अधिकारों की भी रक्षा करनी होगी.
अरब देशों में अंदर से बाहरी हस्तक्षेप की मांग करना अनुचित है. उसका कोई अर्थ नहीं है. आप किसी राज्य की नींव का कैसे निर्माण कर सकते हैं, जबकि पहले उसको उपनिवेश बनाया जा चुका है? पेरिस के कविता-सदन में अपनी वार्ता के दौरान अदूनिस ने Al-Quds में प्रकाशित एक तस्वीर दिखाई, जिसमें ईराक में अमेरिकी सैनिक मृतकों को अपवित्र कर रहे थे. उन्होंने क्रोधित होते हुए कहा, ‘‘अमरीकी सैनिक ईराकी शवों पर पेशाब कर रहे हैं. ये वे ही लोग हैं जो अपने को अरबों को मुक्त करने के लिए आमंत्रित कराना चाहते हैं, ताकि जीवितों पर पेशाब कर सकें.’’
लेकिन उनका यह भी तर्क है कि पश्चिम के अंतर्गत अनेक पश्चिम हैं. रिम्बो, व्हिटमैन, एलियट का पश्चिम… बुश, सरकोजी और कैमरून का पश्चिम. अरब-संस्कृति के तिरोहित हो जाने पर अपना मत प्रगट करते हुए उन्होंने कहा :
‘‘सभ्यता क्या है? यह एक कलाकृति की तरह नवीन की एक रचना है, जब लोग सृजन नहीं करते हैं तो वे दूसरों के जिंसों के उपभोक्ता बन जाते हैं. जब मैं कहता हूं कि अरब संसार समाप्त हो गया है, उसका यह अर्थ नहीं कि जनता समाप्त हो चुकी है, उसका एकमात्र अर्थ यही है कि उसकी रचनात्मक उपस्थिति नदारद है.’’
अदूनिस को यह आशा नहीं है कि कविता समाज को बदल देगी. यह करने के लिए समाज की संरचना को बदलना होगा— परिवार, शिक्षा, राजनीति सबको बदलना होगा. कलाएं यह काम नहीं कर सकेंगी. लेकिन उनका विश्वास है :
”वे वस्तुओं और शब्दों के रिश्तों को बदल सकती हैं, ताकि संसार की एक नई प्रतिमा बन सके. कविता का सिद्धांतीकरण करना, प्रेम के विषय में बोलने जैसा है. कुछ ऐसी भी चीजें होती हैं, जिनको समझाया नहीं जा सकता. संसार की सृष्टि समझाए जाने के लिए नहीं हुई, उसकी रचना मनन और प्रश्नों के लिए हुई है.”
यह साक्षात्कार अंग्रेजी में ‘गार्जियन’ में 27 जनवरी 2012 को प्रकाशित. आग्नेय हिंदी के समादृत कवि-अनुवादक और ‘सदानीरा’ के प्रधान संपादक हैं.
“मैं एक निरंकुशता का विरोध एक दूसरी निरंकुशता के लिए नहीं करता…”, “मनुष्य अपनी कृति में अपनी अस्मिता की रचना करता है”, “जब लोग सृजन नहीं करते हैं तो वे दूसरों के जिंसों के उपभोक्ता बन जाते हैं”, कविता का सिद्धांतीकरण करना, प्रेम के विषय में बोलने जैसा है”, ”हम नए विचारों की नई प्रतिभाओं को चाहते हैं”…. बहुत पसंद आईं अदूनिस की ये पंक्तियाँ। उनके इस साक्षात्कार के अनुवाद के लिए आग्नेय जी को बधाई।
राजनीति, समाज, सभ्यता, धर्म, साहित्य – इन सभी पर अदूनिस एक बेहद ईमानदार और संतुलित दृष्टि रखते हैं। वे कहीं भी अतिवाद के शिकार नहीं हैं। मनुष्य-केन्द्रित चिंतन, धर्मनिरपेक्षता, प्रजातंत्र की पक्षधरता, अहिंसक विचारधारा तथा न्यायसम्मत नजरिए के कारण उनसे लगभग सहमत हुआ जा सकता है। बेहद शुक्रिया यह अंश सदानीरा पर साझा करने के लिए।
bahut hee prabhavi behad shukriya isse sadanira par prastut karane ke liye..