ज़ाहिदा ग़नी, नफ़ीसा अज़हर और नूज़र इल्यास की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद और प्रस्तुति : नीता पोरवाल

अफ़ग़ानिस्तान
ज़ाहिदा ग़नी

पर्चे आसमान से गिर रहे हैं
मैं बग़ीचे में हूँ, धूप खिली हुई है
पर्चे मेरे ऊपर धीमे-धीमे गिरते हैं
मैं तीन बरस की हूँ, मेरे पिता अक्सर हैरान होते हैं
कि मुझे बचपन की इतनी पुरानी बातें अभी तक कैसे याद हैं
पर मैं उनसे कहती हूँ कि ऐसी यादें कभी धुँधली नहीं पड़ सकतीं

पर्चे गिरते रहते हैं, कम्युनिस्ट सचमुच हम पर
अपने सिद्धांतों की बरसात कर रहे थे
हेलीकॉप्टर आसमान में इतनी ऊँचाई पर भी शोर करते हैं
मैं खड़े-खड़े ऊपर देखती रहती हूँ, मैंने अपनी बाँहें फैला रखी हैं
मैं गिरता हुआ हर पर्चा पकड़ना चाहती हूँ

पर्चे, पर्चे… सब तरफ़ पर्चे
हालाँकि पर्चों की ये बारिश गोलियों की बारिश से तो बेहतर ही है

माँ काम पर गई है
वह सड़क के पार वाले एक स्कूल में टीचर है
आप मेरे दादू-दादी की हवेली की बड़ी-सी चहारदीवारी के उस तरफ़
उसे देख सकेंगे

मुझे याद है कि दीवारें फूस और मिट्टी से बनी थीं
उनकी ऊँचाई मुझे सुरक्षित महसूस कराती थी
मुझे ऐसा लगता था कि
जैसे ये दीवारें मुझे रॉकेट से बचा सकती हैं
मैं घर के गेस्टरूम में बड़े-से काले सोफ़े के पीछे खेलने के लिए जाती हूँ
यही वो जगह है जहाँ हम आधी रात को सायरन की आवाज सुनकर छिपते थे

एक रात, मैंने अपने पिता को हम सबकी मौत की दुआ माँगते हुए सुना
कि मौत आए तो हम सबको एक साथ आए
उस रात वह माँ को कसकर पकडे हुए थे
मैं उनके क़रीब थी
मैं उनकी थरथराहट महसूस कर पा रही थी
मैं भी उनकी इस बात से सहमत थी
मैने इससे पहले अपने पिता को इतना भयभीत कभी नहीं देखा था

मैं एक बार अपनी बड़ी-सी लाल गुड़िया के संग खेल रही थी
कि तभी मुझे धमाके की तेज़ आवाज़ सुनाई दी
मैं जानती थी कि यह बम फटने की आवाज़ है
मैं बग़ीचे की ओर दौड़ पड़ती हूँ
मेरी काकी मुझे खींचते हुए अपने संग ले जाती हैं
मेरे छोटे-छोटे पाँव किसी तरह उनके संग चलने की कोशिश करते हैं

सभी लोग बाहर इकट्ठे हैं
धुआँ स्कूल की तरफ़ से उठ रहा है
मैं दीवार के ऊपर धुआँ उठते हुए देख रही थी
शोर से मेरे कान सुन्न पड़ गए थे
जहाँ मेरी माँ थी वहाँ से ख़ूब चीख़-पुकार सुनाई दे रही थी

हम गेट से बाहर गली की तरफ़ भागते हैं, पर मेरे पाँव आगे नहीं बढ़ते
क्योंकि मैं उसके टुकड़ों को अपने सामने छितरे हुए नहीं देख सकती थी
वह ज़रूर लंच के लिए घर आ रही होगी

चारों तरफ़ मुझे सिर्फ़ धुआँ ही धुआँ दिख रहा था
मेरे दिल की धड़कनें मुझे रुकती हुई मालूम हो रही थीं
मेरे घुटने काँप रहे थे
मुझे अब यक़ीन हो चला था कि वह अब इस दुनिया में नहीं रही
हर कोई रो रहा था
मेरी दादी मुझे सम्हाले हुए थीं
मैं उनके सीने से चिपकी चुपचाप धुआँ देखे जा रही थी
मेरी सिर्फ़ एक ही ख़्वाइश थी कि मेरी माँ धुएँ से बाहर निकल आए

कि अचानक मैं अपनी दादी से छिटक कर दूर जा पड़ी थी
मैं अकेली थी पर रो नहीं रही थी
फिर उसके बाद मुझे कुछ भी याद नहीं कि क्या हुआ
मुझे सिर्फ़ इतना याद है कि मेरी माँ धुएँ से बाहर दौड़ती हुई आई
वह मेरी ओर लपकी और उसने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया
मैं उसकी ख़ुशबू पहचान पा रही थी
हाँ, वह मेरी माँ की ही सुगंध थी
उसने मुझे कसकर चिपटा लिया था
वह रो रही थी
और दबी ज़ुबान में बुदबुदा रही थी
कि हमें यहाँ से बहुत दूर चले जाना चाहिए

मेरी ज़ुबान ख़ुश्क हो चली है।

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नूरोज़ की ईद
नफ़ीसा अज़हर

मेरी माँ ने मेरी बहन और मेरे हाथों में मेहँदी लगाई है
घुप्प अँधेरी रात में
हथेलियों पर लिपटी मेहँदी
वसंत के फूल की कली की तरह
सुबह खिल जाएगी
ईद का नन्हा फूल स्त्रियों के चेहरों पर मुस्कान लाएगा
मेरी माँ ने मेरी बहन और मेरे हाथों में मेहँदी लगाई है

उसके गर्म, प्यार भरे हाथ
और मेरा उदास दिल
ठंडी हवा हमें चोटिल करती है
दर्द से बेहाल पहाड़
अगर ईद आती है
तब ऐसा क्या होगा जिससे हमें ख़ुशी मिलेगी?

सब कुछ खंडहर में तब्दील हो चुका है
वसंत की शुरुआत हो गई है
पर टहनियों पर नन्हे-नन्हे फूल नज़र नहीं आते
युद्ध की वजह से बाग़ों में झीलें थम गई हैं
उनमें ख़ून जम गया है
मेरी माँ ने मेरी बहन और मेरे हाथों में मेहँदी लगाई है

ख़ुश है मेरी बहन
क्योंकि कल ईद है
वह नहीं जानती
कि लोग तड़प रहे हैं
मेरी माँ और मैं
हम शोक में डूबे हैं
क्योंकि सभी लोग दुखी हैं।

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प्यास
नूज़र इल्यास

हमारे भीतर एक प्यास है
प्यास जलते हुए साहसिक रेगिस्तान की
प्यास सुर्ख़ गुलाबी दिनों की
प्यास जंगली तूफ़ानों की
हमारी शाखाएँ कठोर हो चुकी हैं
हमारी जड़ें सूख चुकी हैं
हमारे बागान गुम हुए
हमारी झाड़ियाँ मुरझा गईं
हमारे भीतर एक प्यास है
प्यास कई बरसों की
गूँगे लंबे कई बरसों की
हमारे भीतर एक प्यास है—उत्कट प्यास!

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कवि परिचय

ज़ाहिदा ग़नी

ज़ाहिदा ग़नी का जन्म 1977 में अफ़ग़ानिस्तान के हेरात में हुआ। बचपन में ही उन्हें अपने देश से दूर भारत में निर्वासित जीवन जीने के लिए बाध्य होना पड़ा। फ़िलहाल वह सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में रहती हैं। उनके पास पत्रकारिता और रचनात्मक लेखन की डिग्री है। 1979 में, अफ़ग़ान सेना के विद्रोह के बाद हवाई बमबारी द्वारा हज़ारों हेराती मार दिए गए। यहाँ प्रस्तुत कविता में ज़हीदा ग़नी ने उनके बचपन में घटित हुई ऐसी ही दिल दहला देने वाली एक रात का सजीव दृश्य खींचा है।

नफ़ीसा अज़हर

नफ़ीसा अज़हर ने इतिहास और क़ानून की डिग्री लेने के बाद, काबुल में विज्ञान अकादमी में काम कर रही हैं। उनकी कविता पहली बार साल 1981 में प्रकाशित हुई थी। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविता साल 2000 में प्रकाशित हुई।

नूज़र इल्यास

नूज़र इल्यास हेरात, अफ़ग़ानिस्तान के चर्चित कवि हैं। उनकी कविताओं की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। एस. वली अहमदी द्वारा मूल ‘दरी’ से अनुवादित यहाँ प्रस्तुत कविता ‘मार्दोम नाम-ए बख़्तर’ (अगस्त 1997, अंक : 2-3) में प्रकाशित हुई थी।

नीता पोरवाल सुपरिचित और सम्मानित अनुवादक हैं। कई संसारप्रसिद्ध कवियों की कविताओं का अँग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद करने का श्रेय उन्हें प्राप्त है। उनसे neeta.porwal4@gmail.com पर बात की जा सकती है। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अँग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद के लिए afghanmagazine.com से चुनी गई हैं। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 23वें अंक में पूर्व-प्रकाशित है। इस प्रस्तुति की फ़ीचर्ड इमेज़ : Manija Adli

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