लि पो की कविताएँ ::
अनुवाद : योगेंद्र गौतम

लि पो (या लि बाई) चीन के स्वर्ण युग के दो सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक हैं। दूसरे तू फ़ू (या दू फ़ू) हैं और दोनों ही चैंग वंश से हुए हैं। लि पो का जन्म 701 ई. में आज के सुयाब, किर्गिज़स्तान में हुआ माना जाता है और मृत्यु डांग्तू, चीन में 762 ई. में। लि पो अपने समय के तो उत्कृष्ट कवि कहे ही जाते हैं, आधुनिक काल में भी उन्हें कविता का जीनियस कहा जाता है। बीतते समय के साथ उनकी कुछ हज़ार कविताएँ बच सकीं। उनकी कविताएँ प्रकृति और एकांत की गहनता और मित्रता और मदिरा का उत्सव मनाती हैं। एक लोककथा के अनुसार उनकी मृत्यु नदी में चंद्रमा के बिंब पर रीझकर डूब जाने से हुई।

— यो. गौ.

लि पो | तस्वीर सौजन्य : hartethrobgraphics.com

एक पहाड़ी दावत

अपनी आत्माओं के युगों पुराने दुःख
धोने और खँगालने के लिए
हमने सैकड़ों सुराही मदिरा बहाई।
शानदार रात थी वह।
चाँद की साफ़ रौशनी में
निद्रा-विमुख थे हम,
आख़िरश: हमारी मदहोशी ने हमें लील लिया;
और हम एक ख़ाली पहाड़ी पर पसर गए—
पृथ्वी हमारा तकिया थी
और यह महाकाश कंबल।

प्रमाण

यदि स्वर्ग को मदिरा न भाती तो
स्वर्ग में मद्य-नक्षत्र न होता
यदि मदिरा को पृथ्वी नापसंद करती होती तो
पृथ्वी पर मद्य के सोते न होते
क्या ज़रूरत किसी पियक्कड़ को शर्मिंदा होने की?
मैंने सुना है : पारदर्शी मदिरा में
किसी संत के से शांतिप्रदायक गुण होते हैं
जबकि लोग कहते हैं,
मदिरा झागदार समृद्ध होती है—
किसी बुद्धिजीवी की उर्वर बुद्धि-सी
दोनों ही—संत और बुद्धिजीवी मद्यप्रेमी हुए
साथियों को देवताओं और बेताल-पिशाचों में क्यों खोजना?
तीन प्याले आनंद के महान द्वार खोल देते हैं
एक सुराही लो और यह ब्रह्मांड तुम्हारा।
मदिरा का मद ऐसा है
संयमी जिसका अधिकारी क़तई नहीं।

तू-फ़ू के लिए

मैं तू-फ़ू1एक अन्य सुप्रसिद्ध चीनी कवि-दार्शनिक। से एक पर्वत-शिखर पर
अगस्त में मिला
जब सूर्य अपने ताप में था।

उनके बड़े तिनकों से बने टोप तले
उनका मुख उदास था—

जबसे हम पिछली बार अलग हुए थे
वह ज़र्द हुए थे—शक्तिहीन।

तब मैंने सोचा : बेचारे उम्रदराज़ तू-फ़ू
कविता पर फिर से व्यथित होंगे।

एकाकी और चाँद तले मद्यपान

फूलों के बीच मैं
अकेला हूँ अपने मद्यपात्र के साथ
आप ही पीता, फिर उठाता
अपना प्याला और पूछता चाँद को
साथ पीने के लिए, उसका बिंब
और मेरा प्याले में, बस
हम तीन, फिर मैं आह भरता
चाँद के साथ न पी सकने के लिए,
और मेरी परछाई बस
मेरे साथ, बिना एक भी शब्द बोलती।
यहाँ और कोई साथी नहीं, मैं
आनंद के समय इन दोनों की संगत में,
मुझे भी उस सबसे ख़ुश होना चाहिए
जो मेरे चार ओर है।
बैठा मैं गाता हूँ और लगता है कि चाँद
मेरे साथ है; फिर मैं नाचूँ तो,
मेरी यह परछाई होगी जो मेरे साथ नाचेगी।
फिर बिना पिए भी
मैं ख़ुश हूँ कि मेरी परछाई और चाँद
मेरे दोस्त हैं; लेकिन फिर जब
मैं ज़्यादा पी लेता हूँ,
विलग हो जाते हैं हम।
फिर भी ये दो साथी जिन्हें मैं सदा गिन सकूँगा,
ये जो निर्भाव हैं।
ख़ैर, मैं आशा करता हूँ कि
हम तीन फिर मिलेंगे,
गहरी आकाशगंगा में।

फूलों के बीच एक सुराही मदिरा

फूलों के बीच एक सुराही मदिरा,
मैं अकेले उड़ेलता हूँ
इसलिए प्याला उठाते चाँद को दावत देता हूँ,
फिर पलटता हूँ अपनी परछाई की ओर
जिससे हम तीन होते हैं।
क्योंकि चाँद अनजान है पीने से,
मेरी छाया बस मेरी देह-गति पर चलती है।
चाँद कुछ देर मेरा साथ देने लाया है छाया को,
इस उल्लास को वसंत तक चलना होगा।
मैं एक गीत का आग़ाज़ करता हूँ
और चाँद गोल-गोल घूमना शुरू कर देता है,
मैं उठता हूँ और नाचता हूँ
और छाया मज़ेदार तरीक़े से नाचती है।
जब तक मैं होश में हूँ आओ साथ मौज उड़ाएँ
जब मैं धुत्त हो जाऊँ तो चलें अपने-अपने रास्ते सब।
आओ सदा के लिए वीतरागी यात्राओं में बँध जाएँ
क़सम लें कि फिर मिलेंगे दूर आकाशगंगा में।

एकाकी पर्वत-शिखर को देखते हुए

सभी चिड़िया उड़कर चली गई हैं
एक अकेला बादल सुस्ताते हुए आता है।
हम कभी एक दूसरे को ताकते नहीं थकते–
बस वह पर्वत-शिखर और मैं।

स्वीकारोक्तिविषयक

सोने के प्याले में सुरा थी
और वू2एक चीनी प्रांत। से एक षोडशी,
उसकी भौंहे गहरी काली रँगी थी
और पादुकाएँ लाल बूटे कढ़ी

वह बातचीत में कुशल न थी, तो क्या
कितना भला तो गाती थी!
साथ ही हमने खाया और पिया
जब तक मेरी बाँहों में ही न वह सो गई

उसके पीछे पर्दे पर
कमल के फूल काढ़े गए थे
मैं कैसे टाल सकता था
उसको पाने की अपनी लालसा?

अनुत्तरित प्रश्न

तुम पूछते हो,
मैं पहाड़ी जंगल में
अकेला क्यूँ रहता हूँ

और मैं मुस्कुराकर चुप रह जाता हूँ
जब तक कि मेरी आत्मा भी मौन हो जाए।

आड़ू के पेड़ खिलते हैं
पानी बहता है

मैं ऐसे किसी और जगत में रहता हूँ
जो मनुजों के जगत से परे है।

पहाड़ी पर मद्यपान

तुम और मैं साथ पीते हैं।
पहाड़ी फूल हमारे चेहरों पर खिलते हैं।
हम एक के बाद एक प्याले ख़ाली करते जाते हैं,
जब तक मैं पीकर सो नहीं जाता।
अब तुम उठो और जाओ।
चाहो, तो भोर में अपनी वीणा के साथ
लौटना और ठहरना।

मिंग हाओ-यान3तत्कालीन चीनी कवि। के लिए

मुझे उस्ताद मिंग से प्यार है।
इतने स्वतंत्र जितनी बहती पवन,
दुनिया भर में मशहूर।

भरी जवानी में
उन्होंने तख़्त-ओ-ताज को ठुकराया
अब, धवल केशी वह,
चीड़ और बादलों के बीच झुकते हैं।

चाँद की रौशनी में पीकर
अक्सर वह संत हो जाते हैं।
फूलों में गुम
वह किसी देवता को नहीं पूजते।

ऐसे ऊँचे पर्वत तक
मैं कैसे पहुँच सकता हूँ?
यहाँ नीचे ही,
उनकी शुद्ध सुगंधि में,
मैं उन्हें नमन करता हूँ।

स्फटिक की सीढ़ियों की व्यथा

स्फटिक की सीढ़ियों पर
ओस की धवल बूँदें।
रेशमी पादुकाएँ
भीतर तक भीगी हैं।

वह पारदर्शी पर्दे गिरने देती है।

जाली से देखती है—पतझड़ का चाँद।

हो चिह्-चैंग4लि पो के समकालीन कवि।

हम जब पहले पहल
चांग-एन5पश्चिमोत्तर चीन का एक जनपद। में मिले,
उन्होंने मुझे ‘भटकता मनुष्य’ कहा।
फिर उन्होंने विस्मृति की कला को सराहा।
चीड़ के पेड़ों के नीचे
वे अब धूल हैं।
उनकी स्वर्ण-सुराही में हमने मदिरा ख़रीदी।
उन्हें याद करते,
मेरे गालों पर आँसू बहते हैं।

विषाद

ओस में डूबे फूल रोते हैं
प्रकाश में धुँधलाते हुए,
धवल रेशमी चाँद अनिद्रा में रोता है।
स्तंभित अमर-पंछी फड़फड़ाता है पंख।
छूता है मैंडरिन के तार।

यह गीत वे रहस्य बताता है
जिन्हें कोई नहीं जानता
सुदूर येनजान में बासंती पवन पर यह बहता है।
तुम्हारे लिए तैरता है यह
रात के आकाश में।

एक ओर को एकटक देखती आँखों में
अब तक कैसे सफ़ेद आँसू भरे हैं!
हृदय की पीड़ा?
आओ, इस दर्पण में देखो मेरे साथ।

अनंत विषाद

अनंत है मेरी
चांग-एन6वर्तमान में शियान के नाम से प्रचलित नगर। प्राचीन समय में दस से अधिक राजवंशों की राजधानी। में तुम्हारे साथ होने की तड़प।

सुदूर, जहाँ झींगुरों की झंकार के धागे से
कुएँ की सुनहरी जगत के गिर्द
बुने पतझड़ के गीत,
एक बाँस की नीली पपड़ाई चटाई पर
बैठा, ऐंठा हुआ मैं, बुझा हुआ।

मेरी इकलौती लालटेन की मद्धिम रौशनी,
तुम्हारी गहरी चाह उद्दीप्त करती है
पर्दा उठाकर, मैं घूरता हूँ

कठोरता से चंद्रमा को।
असहाय मैं आह पर आह भरता हूँ
उस स्त्री की सुमन-सुगंधि के लिए जो
मुझसे इस क़दर दूर है जैसे
आकाश की वह दूरस्थ बदली।
ऊपर, रात्रि चढ़ती है
अनंत श्याम में
नीचे, यह गहरे हरे रंग की
लहराती हुई सरिता उछलती है।

क्या स्वर्ग को इतना ऊँचा होना चाहिए,
और पृथ्वी को इतना विशाल?

उनके बीच मेरी अतृप्त आत्मा
एक पथ पर भटकती है,
जो मेरे स्वप्नों तक में
सभी पहाड़ी दर्रों में अवरुद्ध है।

यह अनंत विषाद
मेरा दिल तोड़ता है।

चुआंग-त्ज़ू और तितली

चुआंग त्ज़ू स्वप्न में एक तितली बन गए
और जागने पर तितली चुआंग-त्ज़ू।
सत्य क्या था—तितली या मनुष्य?
कौन कह सकता है—
चीज़ों के अनंत परिवर्तनों के अंत?
जल, जो सबसे दूर के सागर के गर्भ में बहता है;
फिर लौटता है एक उथली पारदर्शी जलधारा में।
नगर के हरे द्वार के बाहर तरबूज उगाता आदमी,
कभी पूर्वी पहाड़ी का राजकुमार था।
धन और ओहदे इसी तरह लुप्त हो जाते हैं।
ये सब तुम्हें पता है,
फिर भी तुम काम में पिले रहते हो—
आख़िर किसलिए?

एक भिक्षु को खोजना और न पाना

मैंने, घाटी को जाता
एक छोटा मार्ग लिया,
वहाँ एक मंदिर पाया,
जिसका द्वार, काई से ढका था
द्वार के सामने चिडियों के निशान थे;
बूढ़े भिक्षु के कक्ष में
कोई नहीं रह रहा था, मैंने
खिड़की से बाहर देखते हुए
एक बाल झाड़ने की कूँची को
दीवार से लटके हुए देखा, जो ख़ुद भी
धूल से ढकी थी, एक रिक्तता से आह भरकर
मैंने जाने का सोचा, लेकिन तभी
पलटते हुए मुझे दिखा
कैसे पहाड़ियों पर बर्फ़ उड़ रही थी,
और तभी हल्की-सी बारिश हुई, मानो
आकाश से फूल बरस रहे हों—
अपना ही संगीत रचते हुए;
अचानक दूर से एक बंदर की किलकारी
आती है, और दुनिया की परवाह मुझसे
छिटक जाती है;
मैं अपने चारों ओर की
ख़ूबसूरती से भर जाता हूँ—उसी पल।

पतझड़ की हवा

पतझड़ की हवा साफ़ है,
पतझड़ का चाँद चमकीला।
गिरी हुई पत्तियाँ इकट्ठा होती
और फिर फैल जाती हैं,
जैकडॉ7एक प्रकार का छोटा कौआ। उतरता है और फिर उड़ान भरता है।
हम एक दूसरे के बारे में सोचते हैं—
हम कब मिलेंगे?
इस घड़ी, इस रात, मेरी भावनाएँ उमड़ती हैं।

रात में कौओं की काँव-काँव

दीवार के बग़ल में पीले बादल;
बुर्ज के पास कौए
पीछे उड़ते हुए, शाखों पर,
वे काँव-काँव करते हैं;
किन8चीन में शांग्शी के उत्तर-पूर्व में पीली नदी की सहायक नदी। नदी वाली वह लड़की,
करघे पर ज़री का कपड़ा बुनती है
पुखराज के धागों से,
धुँध की तरह खिड़की उसके शब्दों को ढक लेती है।
वह हाथ चलाना छोड़कर, दुःखी मन से,
सुदूर अपने प्रेमी के बारे में सोचती है
एकाकी कक्ष में वह अकेली ठहरती है,
उसके आँसू बरसते हैं—बारिश की तरह।

मदिरा लाते हुए

देखो कैसे आकाश से
पीली नदी का जल आता है,
सागर में प्रवेश करता है
कभी वापिस न लौटने के लिए।

देखो ऊँचे कक्षों के चमकीले दर्पणों में,
कितने सुंदर ताले,
सुबह रेशमी काले,
रात होते बदल जाते बर्फ़ में।

…ओह, उस मुक्त आत्मा को जाने दो
जहाँ उसे जाना है ख़ुशी-ख़ुशी
छूटने न दो उसका सुनहरा प्याला ख़ाली,
चाँद की ओर
दैव-कृपा से यह गुण मिला है,
उसे भरा रहने दो।
चाँदी के हज़ारों सिक्के लुढ़काओ,
सबके सब वापस आते हैं।
एक भेड़ पकाओ, गाय मारो, बढ़ने दो भूख,
और मुझे तीन हज़ार प्यालों का
एक बड़ा जाम पीने दो।

…बुज़ुर्ग उस्ताद सेन और
युवा विद्वान तान-चियू के लिए मदिरा लाओ!
अपने प्यालों को विश्राम न दो!
मैं तुम्हारे लिए एक गीत गाऊँ,
ध्यान से सुनो!
घंटे और नगाड़े क्या हैं,
क्या हैं अद्भुत व्यंजन और ख़ज़ाने?
मुझे मदिरा में सदा के लिए डूब जाने दो
न आने दो कभी होश में!
कौन पूछता है पुराने दिनों के संयमी और ऋषियों को,
बस विशुद्ध पियक्कड़ सदा याद रखे जाते हैं।
…राजकुमार चेन ने सिद्धि महल के भोज में
मदिरा के एक पीपे के लिए दस सहस्र मुद्राएँ हँसी
और चुटकुलों में उड़ा दीं।
मेरे हुज़ूर! क्यूँ कहते हो कि तुम्हारा धन चला गया?
जाओ मदिरा ख़रीदो और हम इसे साथ पिएँगे!
मेरा चितकबरा घोड़ा और मेरी छालें जिनका मोल सहस्रों में है
उस लड़के को ये सब पकड़ा दो अच्छी मदिरा के बदले
आओ हम अपने दसियों हज़ार पीढ़ी के दुःख साथ में डुबा दें।

पहाड़ों पर गर्मियाँ

हरे वन में खुली क़मीज़ में बैठे हुए,
हौले से मैं एक सफ़ेद पँखों का पंखा झलता हूँ।
अपनी टोपी उतारकर इसे
मैं एक पत्थर पर टिका देता हूँ,
चीड़ के पेड़ों से हवा का झोंका आता है
और मेरे अवसन्न सिर को गुदगुदाता है।


यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अँग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद करने के लिए allpoetry.com से ली गई हैं। योगेंद्र गौतम से परिचय के लिए यहाँ देखें : जब दो उस्ताद मिले

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