टी.एस. एलियट की एक कविता ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : आदर्श भूषण
जेरॉन्शन
तुम्हारे पास न उम्र है न यौवन
लेकिन कुछ ऐसा कि रात के खाने के बाद की गहरी नींद में
दोनों के सपने देखता हुआ।
यह मैं हूँ, पतझड़ में फँसा एक बूढ़ा आदमी
जिसे एक लड़का कुछ पढ़कर सुनाता है,
बारिश के इंतज़ार में।
मैं न तो ग्रीष्म के दरवाज़े पर था
न उष्ण बारिश में लड़ा
न ही नमक के दलदलों में घुटने भर धँसा हुआ,
कटार को गरम करते हुए,
मक्खियों से दंशित, लड़ा।
मेरा घर अब एक खँडहर है
और इसके यहूदी मालिक खिड़कियों पर पालथी मारकर बैठते हैं,
ऐंटवर्प के किसी शराबख़ाने में पैदा हुए,
ब्रूसेल्स में घाव लगे, लंदन में साफ़ किए और सिले गए।
रात को मैदान में;
पत्थरों, काई, स्टोनक्रॉप, भंगार, गोबर पर खड़े होकर
खाँसती है बकरी।
एक औरत, चाय बनाती, शाम को छींकती, गंदले परनाले को कुरेदती,
रसोई में ही रहती है।
मैं, एक सुस्त बूढा,
इन तूफ़ानी जगहों में अटका हुआ हूँ।
चिह्नों में आश्चर्य
‘हमें कोई चिह्न दिखेगा!’
शब्द के भीतर एक शब्द, कह पाने को एक भी नहीं शब्द,
अँधेरे से लिपटे हुए में।
उस साल के चढ़े हुए यौवन में
ईसा आया बाघ की तरह
मई के ख़राबे में, डॉगवुड और शाहबलूत, जूडस,
खाने के लिए, बाँटने के लिए, मदहोश हो जाने के लिए
फुसफुसाहटों के बीच; मि. सिल्वेरो द्वारा
खुले हाथों से, लिमूज़ में
जो पूरी रात बग़ल के कमरे में टहलते रहे;
हकागावा द्वारा, सुनहरे केशोंवाले लोगों के बीच सिर झुकाते,
मैडम द टॉर्नक्विस्ट द्वारा, एक अँधेरे कमरे में
मोमबत्तियाँ इधर से उधर करते; फ्रॉलिन वॉन कल्प
दरवाज़े पर एक हाथ रखे, हॉल की तरफ़ मुड़ा।
ख़ाली जगहें हवा को बुनती हैं।
यहाँ कोई प्रेत नहीं,
बस एक बूढा आदमी इस जर्जर घर में
हवाओं की दस्तक के बीच।
इतने ज्ञान के बाद, कैसी क्षमा?
अब सोचो
अतीत-कथा के बहुत-से धूर्त चोर-दरवाज़े हैं,
काल्पनिक गलियारे
और मुद्दे, अपने गुप्त लक्ष्यों से भटकाते हुए,
असारत की ओर ले जाते हैं।
सोचो न
वह तभी पहुँचती है हम तक,
जब हम अपने ध्यान से भटके होते हैं
और जितना वह पहुँचती है,
इतनी विभ्रांतियों से भरा
कि पाना भी तृष्णा को भूखे मार दे।
इतनी देर से
वह जिसमें विश्वास नहीं रखा गया,
या वह जिस पर अब भी विश्वास है,
बस स्मृति में, जिसे शौक़ से फिर-फिर माना गया।
बहुत जल्द
अशक्त हाथों में भी, जो सोचा गया वह पाया जा सकता है
जब तक असम्मति डर में न बदल जाए।
सोचो
न भय न साहस हमें बचाता है।
अस्वाभाविक दोष
हमारी वीरता के नीचे पलते हैं।
गुण हम पर लादे गए हैं हमारे निर्लज्ज कुकर्मों द्वारा।
ये आँसू झरे हैं क्रोध से लदे पेड़ से।
बाघ फिर नए साल में लगाता है छलाँग। हमें भकोसता है।
अंततः सोचो
हम किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पाए हैं,
जबकि मैं एक किराए के मकान में फँसा हुआ हूँ।
अंततः सोचो तो
यह दृश्य मैंने निरुद्देश्य ही नहीं रचा
और न ही नेपथ्य के उत्पाती दैत्यों के उत्साह से।
कम-अज़-कम इस बाबत तो ईमानदार हूँ।
मैं जो तुम्हारे हृदय के सबसे क़रीब था, वहाँ से हटा दिया गया
सुंदर को भय में खोने को, भय को कट्टरता में।
अपना जीवन-राग खो दिया; क्यों बचाता आख़िर
जो बचा है सब मिलावटी ही तो है?
अपनी दृष्टि, घ्राण, श्रव्यता, स्वाद और स्पर्श खो दिए मैंने:
तुम्हारे सामीप्य को अब कैसे तलाशूँ?
हज़ारों छोटी-छोटी मंत्रणाओं के साथ ये
उनके मुक्त प्रमाद के लिए मुनाफ़े बढाती है,
त्वचा को निखार देती है,
जब सारी इंद्रियों को काठ मार गया हो,
शोरबे की तीखी खुशबू और वैविध्य
दर्पणों के जंगलीपने में।
मकड़ी क्या करे, अपना काम छोड़ दे और क्या घुन देर से लगेगा?
द बेल्हाची, फ़्रेस्का, मिसेज कैमेल,
अपनी काँपती हुई क्षमताओं के घेरे को तोड़ते हुए फाँद गए।
टूटे महीन कणों में।
हवा को चीरते हुए, बेले द्वीप की हवाइयों में,
भोंपुओं के इशारे पर दौड़ते हुए,
बर्फ़ में डूबे हुए सफ़ेद पंखों पर, दावा करती है खाड़ी,
और एक बूढ़ा आदमी बदले में
नींद का एक कोना चाहता है।
इस घर के किराएदार,
पतझड़ में किसी रूखे मन के विचार।
यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के वेस्टलैंड अंक में पूर्व-प्रकाशित। आदर्श भूषण से परिचय के लिए यहाँ देखिए : शराबियों के हवाले से