यान कोहनोस्कि की कविताएँ ::
अनुवाद : आदर्श भूषण
गीत
हमसे क्या चाहते हो, ओ महान ईश्वर,
जिसकी ख़ुद असीम कृपा है एक-एक सजीव पर?
गिरजाघर तुम्हें घेरकर नहीं रख सकते, तुम,
जल, थल, अनल के
एक-एक इंच में समाए हो
व्यर्थ है वह ऐश्वर्य तुम्हारे अकेले के लिए भी
जबकि दौलत का एक-एक मनका
जिसे आदमी अपना मानता है
सब तुम्हारा है
कृतज्ञता से भरा हृदय ही है बस, मेरे परमेश,
जो यह तुच्छ आदमी तुम्हें अर्पित कर सकता है
तुमने आसमान बनाया,
आकाश-गंगाएँ पिरोईं
और रची नींव ताकि
उनसे बनती रहे विशाल परिमितियाँ
जिन्हें मानव ढूँढ़ भी न पाए :
धरती की नग्नता पर ओढ़ा दी
हरे घास की चादर
सभी सृष्टियों के महान देव,
समुद्र तुम्हारी आज्ञा मानते हैं
और अपनी हदें समेटते हैं
नदियाँ भरती जाती हैं,
दिन जानते हैं—
अपने ढलने का समय
रात और साँझ रुकती हैं
और चली जाती हैं
वसंत अवलियाँ लेकर आता है
और ग्रीष्म गेहूँ की बालियों का मुकुट ऐसे पहनता है
जैसे मेले में नाचने वाली नर्तकियाँ
पतझड़ बाँटता है सेब, शराब और हुलास
फिर शीत करता है तैयार
धरती को सुस्तियों में भरते हुए
रातों में तुम्हारे माली
एक-एक पौधे पर ओस छिड़कते हैं
दिन होते तक तुम्हारी बारिश
नया प्राण फूँक देती है पौधों में
लद्दू जानवर तुम्हारे हाथों से खाते हैं निवाले
सारी इंद्रियाँ तुम्हारी ही उदारता से पोषित हैं
हे अमर्त्य ईश्वर!
निरंतर कृपा करो
यूँ ही रहो पूज्य
हमें वह जगह दो जहाँ
अब हम तुम्हारी सेवा में लीन हो सकें
और जब हम मरें
तब तुम्हारे फैले पंखों की छाँव में सुरक्षित हों।
शराबियों के हवाले से
धरती, पानी पीती है,
पेड़ तरोताज़ा हो उठते हैं :
समंदर पीते हैं नदियाँ :
सितारे घूँट-घूँट पी जाते हैं समंदर :
तो वे लोग फ़ालतू का बखेड़ा क्यों खड़ा कर देते हैं
हम जैसे टुटपुँजिये पियक्कड़ों के लिए?
एक गणितज्ञ के लिए
उसने सूरज की उम्र का पता लगाया
और वह जानता है
कि हवा सही और ग़लत दिशा में क्यों चलती है
उसने समंदर की फ़र्श के सारे ग़ोशे देखे हैं
लेकिन वह यह नहीं देख पाता
कि उसकी पत्नी एक वेश्या है।
यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के पोलिश कविता अंक में पूर्व-प्रकाशित। आदर्श भूषण से परिचय के लिए यहाँ देखें : समय से समय की ओर चलता हूँ