कविताएँ ::
बेबी शॉ
शैलपुत्री
जन्म
मैं आग पर बैठकर
सितारों की सघन सभा में
चलती हूँ
पक्ष प्रबल नहीं है
मद्धम साँस
मृदु मुस्कान
मंद बेचैनी…
पाखंडी आंदोलन में
खेत की हरियाली जल गई
ख़त्म हो गया पानी
और जीने का विश्वास
इसका मतलब—
यह पक्षी
पक्षी नहीं है
यह देवी
देवी नहीं हैं
यह पल
नहीं है पल
सत्य—
मिथ्या के आगे है
यह मिथ्या रचित है
सत्य के पीछे
सवालों की पोटली
धीरे-धीरे एक रोज़
ख़त्म हो जाती है
प्रश्नचिह्न मिट जाना
मतलब—
ख़त्म हो रहे हो तुम!
ब्रह्मचारिणी
विद्या
एक हिरणी घने जंगल के
रास्ते से गुज़र रही है
उसे बुला रहा है रास्ता
वह भी चाहती है रास्ता
कहाँ जाए!
अज्ञात है लक्ष्य!
साल-सागौन के घने जंगल के पार
धान के खेतों के पार
हरी घास की तरह
शरीर पर पड़ रही है जादुई धूप
हिरणी की आँखें चमकीली
और रोमांचकारी हो रही हैं
देवी उनके ही समीप हैं
जिनके पास है
ख़ुद को जीतने का कौशल!
चंद्रघंटा
रूप
देवी भी जानती है—
यह प्यार
उसे दु:ख पहुँचाएगा…
पीड़ा के बिंदु से ज्ञान
ज्ञान के बिंदु से बोध
बोध से चलते हुए निर्वाण
एक छोटी-सी अश्रु-बूँद
घास की एक छोटी-सी पत्ती ने
जिसे मोहित कर लिया
मरुस्थली पार करते हुए
कँटीले जंगल पार करते हुए
पर्वत पार करते हुए
उसने नज़रें ऊपर उठाईं
और ऊपर उठाईं
आसमान की तरफ़…
नीला सूना आकाश
खिल रहे हैं कास
बीच में सहज जलधार
साधारण स्त्री बनने के लिए
सिर्फ़ एक बार और
चाहती हूँ तुम्हें प्रेम!
कूष्माण्डा
सृष्टि
असहनीय सुंदरता ने
व्याकुल कर दिया
भ्रमित भी
दिशाभूली
अम्बर में फैल गई
सात रंगों की दुनिया
समुद्र की तेज़ लहरों से
रंग-बिरंगे मूँगे
और पत्थर छूट रहे थे
दयालु विधाता से
वे माँग रहे हैं
और भी प्रकाश, रंग, मिट्टी, धूप, पानी
जागरण ने उन्हें हेमवर्ण बनाया
जैसे भूली हुई एक जनजाति
सारी उपेक्षा भूलकर
शरीर को ही मानने लगे
ईश्वर!
स्कंदमाता
भ्रम
बाघिन के रूप में
नज़र आना चाहती थी
स्वयं को
मधुर जलधारा से ले आई
मछली का आधा सिर
पवित्र भूमि से उखाड़ दिए
मिथक और भ्रम
हृदय बदल गया
आँख, नाक, त्वचा भी
अट्टहास से भर गई पृथ्वी
कमर पर कृपाण लटकाए हुए
कान में लगाए जवा-कुसुम की अंजलि
लेकर आ गए ईर्ष्या और शैतान
भ्रमित क्षण
और भी भ्रम के साथ
समझा रहा था राष्ट्रनीति
रास्ते में केवल नीली अपराजिता
खिल रही है हरसिंगार के साथ
इस सुंदरता ने
एक बार फिर
माँ कहकर संबोधित किया
मिट्टी की देह को…
कात्यायनी
स्थैर्य
बहुत चाहत थी—
उसकी प्यारी आँखों में
डूब जाएँगे कई विशेष पुरुष
चुम्बन के लिए
वह एक गृहिणी बनने के लिए
और एक संसार
जिसके आँगन में खिलेंगी
लौकी-लताएँ
प्यार देगा
लड़ना-झगड़ना
देगा उसे आलता-सिंदूर
और वह चोटी खोलकर
बच्चे को पिलाएगी स्तन
स्थिर समय!
समय एक समय
स्थिर हो जाता है—
स्त्रियों के लिए!
कालरात्रि
मृत्यु
नागरिकों तक नहीं पहुँच सकी
उसकी नि:शब्द साँसों की आवाज़
आदिम पुरुष ने सोचा
यह शायद उषा है
वह लगातार सूर्य की ओर चलेगा
और वह ख़ुद ही दे देगी ख़ुद को
शहर के घने जंगल के जादू में
उल्लास करेंगे भालू-लोमड़ी
कहानी का हाथ पकड़कर
मनसा की झाड़ियों के बीच से
निकल रहा है काल
औरंगाबाद की सड़क पर पड़ा—
रक्त
पसीना
पानी
इबादत की आड़ में
राजनीति का मुद्दा उठाते हुए
देवी को पाने की इच्छा होगी
प्रतिहिंसावश—
हत्यारी…
गुप्तहत्यारी के रूप में…
महागौरी
दृष्टि
धूप और उग्र रास्ते पर कलंक लेकर
सड़क की ओर जा रही थी देवी
नंगे पैर,
शरीर…
गंगा-पुरुष की दृष्टि में
गाँजा का नशा
मन ही मन वह घृणा से भर उठी
रास्ता बन गया एक गहरी खाई
देवी समझ गई
भले ही सब कुछ खो जाए
स्त्री-शरीर का लोभ
कभी ख़त्म नहीं होगा पृथ्वी पर!
सिद्धिदात्री
लक्ष्य
मैं समझ गई
केवल देवी बनकर
जीवित रहना
संभव नहीं
इस संसार में
यह सब समझने के लिए
जले हुए श्मशान से
थोड़ी-सी खामोशी चाहिए थी मुझे
काई और शैवाल से भरे
क़ब्रिस्तान के पास चाह रही थी
जीवन की मधुकरी
गालों पर भूतकाल का रास्ता
दौड़ रहा था
चींटियों की क़तारें
और कीड़ों के झुंड
अद्भुत आँखों से देखा
मैंने पुरुषों को भी
दुनिया की—
नग्न आँख
नग्न पैर
नग्न अवस्था देखकर
वह दिन पहला था
या शेष
जब मैं ख़ुद के लिए
ख़ुद को ढूँढ़ पाई
किसी तरह मरण से पहले…
विजया
पुनर्जन्म
…और तब—
रंगीन हिरण हल लेकर
खेत में चला गया
उसके सफ़ेद कपड़े में—
दुपहर का खाना
और पीने का पानी
एक सुंदर सुबह आई हो जैसे
आश्चर्यजनक रूप से
तिमिर को चीरकर
ऐसी अद्भुत
गंध के लिए
हाथ जोड़ खड़े हैं समय
उसके स्तनों में जन्म ले रही है मधुर गंगा
उसके घने बालों में गा रही हैं
आदिवासी लड़कियाँ
योनि से नीचे आ रहा है जन्म
वह जन्म
जहाँ से
जन्म होता है
आदिम पिताओं का
दुनिया यह भूल चुकी है!
बेबी शॉ नई पीढ़ी की सुपरिचित-सम्मानित बांग्ला कवि-गद्यकार-अनुवादक हैं। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ बांग्ला मूल से स्वयं कवि द्वारा अनूदित हैं। ये कविताएँ अभी बांग्ला में अप्रकाशित हैं और प्रथमतः हिंदी में प्रकाशित हो रही हैं। बेबी शॉ ने इस वर्ष ‘सदानीरा’ के ग्रीष्म अंक के अंतर्गत ‘समकालीन बांग्ला स्त्री कविता’ अंक का संपादन भी किया है। इसमें 51 बांग्ला स्त्री कवियों की कविताओं को सम्मिलित किया गया है। अब वह एक ऐसा ही संकलन बांग्ला में ‘समकालीन हिंदी स्त्री कविता’ शीर्षक से पुस्तकाकार ला रही हैं, जिनमें उन्होंने लगभग 60 हिंदी स्त्री कवियों (महादेवी वर्मा से लेकर प्राची तक) की कविताओं को संकलित किया है। बेबी शॉ से और परिचय के लिए यहाँ देखिए : द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद | संपर्क : babyshaw36@gmail.com