कविताएँ ::
प्रमोद पाठक

प्रमोद पाठक

जूतियाँ

लगता है दो पंखुड़ियाँ हैं किसी फूल की
जिनके बीच उगे दो पुंकेसर
मनुष्य के पाँव
अक्सर हिलते रहते हैं

कभी लगता है छोटी किश्तियाँ हैं
ज़मीं पर जिन्हें
मनुष्य के दो पाँव खेते हैं

नहीं नहीं यह तो चम्पा की पत्तियाँ हैं
जो अभी अभी झर गई हैं किसी दरवाज़े पर

बारिश के रंग

बारिश के रंग जिस तरह
फूल-पत्तियों और घासों में खिलते हैं
ठीक उसी तरह
हमारे हाथों में खिलते हैं
जिस तरह भीगती लकड़ी पर
कुकुरमुत्ते उग आते हैं
हमारे भीगे हुए हाथों में छाते उग आते हैं
इस तरह भीगती लकड़ी से मुलायम हुए हाथ
अपना छाता लिए
दूसरे भीगते हुए हाथों की तरफ़ झुक जाते हैं
फिर एक छाते में दो जोड़ी हाथ साथ-साथ चलते हैं
कुछ-कुछ भीगते कुछ कुछ मुलायम होते
बारिश उन हाथों में भीगने का रंग भरती है
और वे हाथ
फूल-पत्तियों और घासों की तरह खिल उठते हैं

दुख

मेरा दुख मेरा रहेगा
तुम्हारा दुख रहेगा तुम्हारा ही
कब कोई ढो पाया है किसी और का दुख अपने कंधे पर

हाँ प्रेम में बस गुबरैला बन
हम लुढ़का सकते हैं
एक-दूसरे के दुख को छोटी-छोटी पृथ्वियाँ बनाकर
और उपजाऊ बना सकते हैं

मिलन

वही तुम
वही मैं
सदेह उपस्थित
और कॉफ़ी की टेबिल पर
पूरा का पूरा प्रेम का एक फ़ासला
बच्चे कुछ और युवतर से युवा हो चुके हमारे

मैं मोटा होने लगा हूँ
यह तो तुम जाने से पहले कहने लगी थी

बहुत दिनों बाद मिलने आई थी
और मुझे कमतर न महसूस हो
इसलिए एक हल्की-सी परत वज़न की ओढ़ कर आई थी

मेरे बालों में सफ़ेदी कुछ और बढ़ गई है
इसे तुम्हारी नज़रों से जाना
शायद हम अगली बार जब मिलें
तो एक-दो झुर्रियाँ भी हों चेहरे पर
तब तुम अपने लिए झुर्रियों की कामना के साथ लौटो
अगली बार मिलने के लिए

तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ

मेरे इन कंधों को
खूँटियों की तरह इस्तेमाल करो
स्पर्श, आलिंगन और चुंबन जैसी ताज़ा तरकारियों भरा
प्यार का थैला इन पर टाँग दो
अपनी देह की छतरी समेटो और गर्दन के सहारे यहाँ टाँग दो
मेरी गोद में सिर रख कर लेटो या पेट की मसनद लगाओ
आओ मेरी इस देह की बैठक में बैठो, कुछ सुस्ताओ
तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ

एक स्त्री के समंदर में बदलने की कथा

कभी सुबह ने शाम से कहा था
हमारे बीच पूरा का पूरा दिन है
हमारा साथ संभव नहीं
वैसे ही उसने उससे कहा
हमारे बीच पूरी की पूरी दुनिया है

यह सुनते ही
वह भागा उससे दूर
दूर बहुत दूर
भागता रहा भागता रहा
और भागते-भागते नदी में बदल गया

बहुत दिनों बाद किसी ने
एक स्त्री के समंदर में बदलने की कथा सुनाई
वह स्त्री एक पुरुष का नदी में बदलना सुनकर
समंदर में बदलने चली गई
और तब से नदियाँ समंदर की ओर बहने लगीं

प्रमोद पाठक हिंदी कवि-लेखक हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : मेरे पास एक ख़्वाब है

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