कविताएँ ::
सुमित त्रिपाठी
एक
इस दुपहर
समय के गुज़रने की
मुझे चिंता नहीं
बहुत-सी चीज़ों में से
नींद और प्रेम
मैंने चुन लिए हैं
समय को गुज़रने देना
भय से मुक्ति है
कई सूक्ष्म विचार और अवसर
मैं जाने दूँगा
धरती फिर भी
कुछ न कुछ ले आएगी
दो
मर्द नहीं हैं
सो औरतें
अपने स्तनों से लापरवाह हैं
वे महत्त्वहीन होकर
लटक रहे हैं
जाँघे यूँ खुली हैं
मानो उनके बीच
कुछ भी न हो
औरतें ख़ुश हैं
उन्हें बहुत भाते हैं
बिना स्तन
बिना योनि वाले दिन
तीन
कहाँ हैं वे शब्द
जिनसे मक्खियाँ शहद बनाती हैं
जिनसे कटार ज़हरीली हो जाती है
जिनसे नमक खारापन लेता है
जंगली घास की एक चटाई
काश मैं शब्दों से बुन पाता
चार
मेरी माँ
शहर में
चलना नहीं सीख पाईं—
वह सारा जीवन
खिड़की पर बैठी रहीं
मेरी माँ
शहर में
खाना नहीं सीख पाईं—
काँटा-छुरी पकड़ते ही
उनका सारा शरीर तन गया
शहर की भाषा
माँ नहीं सीख पाईं—
खाँसते हुए
उन्होने मुँह ढँक लिया
मेरी माँ
शहर में
पेड़ की तरह अवाक् खड़ी रहीं
पाँच
प्रेम के बदले
जो मिला
लौटा देना चाहता हूँ
प्रेम की जगह
जो कुछ है
हटा देना चाहता हूँ
चाहता हूँ
घास के फूल उगें
घास के जंगल
छह
पापा जब मुझे मिले
वह खो गए थे
इस कारण
वह हँस नहीं पाते थे
मैंने उनकी उँगली खींची
उन्होंने ध्यान नहीं दिया
पापा और सीरियस होते गए
मैं उन्हें पहचान भी नहीं पाता था
मैं अक्सर घर के बाहर होता
पापा की तलाश में
देर हो जाती
पापा ग़ुस्सा करते
मैं उन्हें बताना चाहता था
कि सब ठीक है
पर वह समझ नहीं पाते थे
बुद्धू पापा
मुझे पीटते थे
सात
खिलने में
व्यर्थ समय गवाँएगा
गुलाब
खिलकर भी
वह सिर्फ़
गुलाब होगा
वह जान नहीं सकेगा
सिर्फ़ गुलाब होना
काफ़ी नहीं
आठ
इस ऊँचाई पर
पंख काम नहीं आते
बस लटके रहो
चाँद बनकर
नौ
एक फूल
यहाँ खिल जाएगा
किसी को अंदेशा न था
आवारा संदेश लिए
यह तैर रहा है
किसी हल्की-फुल्की कविता में
इसे नष्ट कर देना होगा
वरना एक्सीडेंट हो सकते हैं
बदल सकता है
सनसेट का रंग
अनार्किस्ट फूल से
सुमित त्रिपाठी हिंदी की नई पीढ़ी से संबद्ध कवि हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : धूल है प्रेम जिसे तुम लापरवाही से झाड़ दोगे
शानदार कविताएँ हैंl
बहुत उम्दा कविताएं।
बहुत अच्छी कविताएं हैं।बधाई।
बहुत ख़ूब