कथाएँ ::
कमल जीत चौधरी
उस समय की कथा
एक समय की बात है। एक समझदार आदमी था। यह कथा उस समझदार आदमी की नहीं, उस समय की है जिसमें समझदार आदमी चुप रहकर समझदार बना रह सका। समझदार आदमी शतायु होकर मरा और जिसमें वह किसी तरह रहता रहा; वह समय स्वर्ण-काल कहलाया।
पागल
गाँववाले उसे पागल समझते थे। एक दिन वह तेज़ धार नहर के पनघट पर बैठकर कुछ कर रहा था। गाँव वालों ने उससे पूछा कि क्या कर रहे हो?
उसने उत्तर दिया—नाव बना रहा हूँ। इस पर बैठकर खेतों तक जाऊँगा।
लोगों ने सवाल किया कि वापस कैसे आओगे?
उसने कहा—पैदल।
लोगों ने चुहल करते हुए कहा कि तुम तो हर दिन खेतों में जाते हो, तुम्हें तो रोज़ नई नाव बनानी पड़ेगी।
उसने कहा—बना लूँगा। आप भी तो रोज़ कुआँ खोदकर पानी पीते हैं, और मैं आपको पागल भी नहीं समझता…
घोड़ा
मैंने कहा : आप तो एकदम घोड़े पर सवार हैं।
यह सुनकर उसने दो कटी उँगलियों वाले हाथ जोड़कर कहा : बाबू जी, घोड़ा मर गया है। उसी के लिए कर्ज़ लेने आया हूँ।
दो दिन
पिता ने बेटे से पूछा : वापसी की फ़्लाइट कब है?
बेटे ने कहा : दो दिन की छुट्टी ली है, परसों लौटना है।
पिता : चलो, तुम अपनी माँ का दाह संस्कार अपने हाथ से कर चले। तुम्हारा भाई क्यों नहीं आ सका?
बेटे ने उत्तर दिया : वह कह रहा था कि इस बार तुम चले जाओ, पिता जी के मरने पर मैं चला जाऊँगा।
इतना सुनते ही पिता ने पिस्तौल निकाला। एक गोली चली, जिसने विदेश के दो दिन बचा लिए।
मक्खियाँ
मैंने कहा : तुम्हारे घाव पर मक्खियाँ बैठी हैं। तुम इन्हें उड़ाते क्यों नहीं?
उसने कहा : उड़ा दूँगा तो नई बैठेंगी।
अप्रधान
वह एक घोर था। उसने अपनी गाड़ी के पीछे ‘प्रधान’ लिखवाया और उसे मोहल्ले के बीचोबीच लगाना शुरू कर दिया। फिर अगली कई दुपहरों, शामों और रातों में वहाँ प्रधान ही प्रधान था।
कहानी में एक मोड़ आया। एक अघोर आया। उसने अपनी गाड़ी पर ‘अप्रधान’ लिखवा लिया, और अपनी गाड़ी प्रधान की गाड़ी के साथ लगाना शुरू कर दी…
उसके बाद क्या हुआ?
दोस्तो, यह जानने चाहते हैं तो आप अपनी-अपनी गाड़ी के पीछे ‘अप्रधान’ लिखवाकर देख लीजिए।
कमल जीत चौधरी हिंदी कवि-लेखक-अनुवादक हैं। उनके दो कविता-संग्रह और कविताओं का एक चयन प्रकाशित है। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखिए : कमल जीत चौधरी
कमलजीत जी जिस तरह के कवि हैं उसकी तस्दीक उनके ये गद्य भी कर रहे हैं। इसे पढ़कर एक साहित्यिक कसौटी प्रस्तावित करनी पड़ेगी कि “किसी कवि के गद्य से पता चलता है कि वह कैसा कवि हो सकता है”
अखिलेश सिंह जी ने कुछ कहा है। यह कहा मेरे लिए मायने रखता है। प्रिय अखिलेश जी, आभार!
: कमल जीत चौधरी
मैंने कहा : तुम्हारे घाव पर मक्खियाँ बैठी हैं। तुम इन्हें उड़ाते क्यों नहीं?
उसने कहा : उड़ा दूँगा तो नई बैठेंगी।
नमस्कार आदरणीय ,
कहानी में एक नए मोड़ को देखकर यह महसूस हुआ कि कमलजीत चौधरी की गद्य पर आंतरिक पकड़ जबरदस्त रही है। जो सदानीरा पर प्रत्यक्ष रूप से प्रकट हुईं है। इन्होंने बहुत सुंदर
और सशक्त कविताएं समाज को दी हैं अब एक कवि ने उनके लिए नया किबाड़ भी खोल दिया है। इस गद्य को पढ़कर कमल जी की संवेदनाओं की धार का सूक्ष्म बोध होता है।
सदनीरा और कमलजीत चौधरी को बहुत – बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
धीरे से मक्खियों वाला प्रकरण पंचतंत्र से उठा लिया गया है। वहां पर मच्छर होते हैं। एक लोमड़ी के शरीर पर बैठे रहते हैं। लोमड़ी कांटों के जाल में उलझी हुई है।