इम्तियाज़ महमूद

कुत्ता

पड़ोस के काले कुत्ते का नाम एम्ब्रोस है। अगर उसे इस नाम से
पुकारा जाता है तो वह बहुत उत्साहित होता है। पूँछ लहराता है। दौड़ता है।
रोटी खाने के कई बहाने बनाता है। रोटी खानी है। नए लोगों को देखकर वह
भौंकता है। नया कुत्ता देखता है तो हमला करता है। रोटी खानी है। दौड़ता है।
पूर्णिमा की रात में वह बहुत दुखी होता है। चाँद के काले धब्बे को देख
समझता है—चाँद के भीतर एक काला कुत्ता फँसा हुआ है।

निरर्थकता

आज तुम्हारी शादी है
मुझे आमंत्रित नहीं किया गया
न जाने क्या सोचकर मैं आया था
जिस चूहे से तुम्हारी शादी तय हुई थी कल
मैंने उस चूहे को मुँह में धान की बाली लेकर
दौड़ते देखा मिट्टी के रास्ते
तुम्हारे पिता की पसंद!
अस्ल में तुम्हारी माँ को
ख़रगोश-दूल्हा पसंद है
लेकिन इन दिनों
अच्छे ख़रगोश का अकाल है
और इस अवसर पर चूहे
मुँह से धान की बाली निकालकर
तुम्हारी बग़ल में खड़े हो जाते हैं
वह तुम्हारी नज़र का पीछा करते हुए
एक बार मेरी ओर देखता है
आज तुम्हारी शादी है
और आज मेरा मनुष्य जन्म व्यर्थ हो जाता है!

एक दिन

एक दिन सब लापरवाही दुगुना करके लौटा दूँगा। सब प्रतीक्षा।
कुर्सी होने पर भी न बैठने को कहना—लौटा दूँगा। मैं भी उस दिन
उभरी हुई भौंहों से देखूँगा तुम्हें। मैं ख़ुद को इस तरह से अभिव्यक्त
करूँगा कि मैं तुम्हें नहीं सुन रहा हूँ। जैसे मेरे पास तुम्हारे लिए कोई वक़्त
नहीं है। मैं तुम्हें सभी व्यस्त समय लौटा दूँगा—सारी लापरवाही को दुगुना करके।
एक दिन मैं कहीं नहीं जाऊँगा। एक दिन तुम मेरी क़ब्र के सामने से
गुज़रोगे : लेकिन मैं पीछे मुड़कर नहीं देखूँगा।

चिट्ठी

प्रिय, मैं यहाँ बहुत ही शोचनीय स्थिति में हूँ
उन्होंने मेरी सारी हड्डियाँ खींचकर निकाल लीं
और कहा ज़िंदगी ऐसे ही ख़ूबसूरत है
मैं अपना शरीर ज़मीन से रगड़ते हुए
उन हड्डियों के बारे में सोचता हूँ
जो कल भी मेरे साथ थीं
प्रिय तुम मेरी खोई हुई
अस्थियों का पता लगाना—
नदी में
फूलों के बग़ल में
थाने में या मुर्दाघर में
मुझे यहाँ कुछ भी अच्छा नहीं लगता
इस स्वर्ग में

कविपुत्र

माँ के लिए टोक्यो शहर ख़रीदना चाहते हैं
इसकी क़ीमत कितनी है कौन जाने
महँगाई इतनी बढ़ गई है
ढाई सौ ग्राम लहसुन की क़ीमत बीस रुपए
क्या तुम मानते हो!
पिता ग़ुस्से में बाज़ार नहीं जाते
उनकी उम्र बढ़ रही है
स्वास्थ्य कमज़ोर हो रहा है
बेहतर होगा
एक बार बॉम्बे जाकर चेकअप करा लेना
बॉम्बे जाने में कितना ख़र्च होगा
कौन जाने?
मेरे पास पैसे नहीं हैं—
काग़ज़ ख़रीदने के लिए
हवा में लिख देता हूँ :
पिता सौ वर्ष जीवित रहें।

गुलाब

एक पेड़ पर खिले पाँच गुलाब
उनमें से एक जा रहा अस्पताल में—
मरीज़ की सेवा में
एक जा रहा कारावास नेता को रिहा कराने
एक सुहाग-सेज पर
और एक गुलाब मुर्दे के साथ
पाँच नंबर का गुलाब टहनी पर लटका है
बिका जो नहीं

मुक्त

घोड़े तब तक अधीन हैं
जब तक वे दौड़ सकते हैं
अचल हो जाएँ तो मुक्त

ईमानदारी

जब शेर को दस लाख रुपए की
रिश्वत प्रस्तावित की गई तो
उसने कहा कि वह रिश्वत नहीं लेता
लेकिन वह हिरण को
उपहार के रूप में स्वीकार करता है।

गणतंत्र

इस दुनिया में
मरे हुए लोग ही
बहुसंख्यक हैं

कार्यकर्ता

नेता से हाथ मिलाने के बाद
कार्यकर्ता जब अपने हाथ की ओर मुड़ता है
तब देखता है—
उसकी एक उँगली नहीं लौटी!

पहचान

पेड़ ने पूछा इंसान को,
तुम्हारी पहचान क्या है?

इंसान ने कहा,
मेरी पहचान ज़हर में है।

नमक

मुझे अपने चावल में
नमक नहीं चाहिए श्रीमान,
मेरे आँसुओं में काफ़ी है

जीवन की क़ीमत

लोगों को मारने में
कितना पैसा लगता है?—

बर्मा में दस रुपए,
बांग्लादेश में मुफ़्त।

अगर

अगर चोरी के आरोप में एक दुपहर तुम्हारी नौकरी चली जाए और अगले दिन हाथ में आए तुम्हारी पत्नी का तलाक़नामा। पूरा पत्र पढ़ने से पहले तुम सुनते हो—तुम्हारा बेटा ड्रग्स लेता आया पुलिस के हाथ और तुम्हारी बेटी का न्यूड वीडियो वायरल हो चुका इंटरनेट पर। अगर तुम मरना चाहते हो—रेलवे-लाइन पर सर रखकर और रेलगाड़ी तुम्हारे सर के बजाय दोनों पैर काट दे। अगर कुछ लोग तुम्हें दाख़िल करा दें—विकलांगों के अस्पताल में। अगर तुम अपनी आँखें खोलो और देखो कि तुम्हें देखने अस्पताल आए हैं—तुम्हारी पत्नी, पुत्र और कन्या। अगर वे तुम्हारे लिए अमरूद ले आएँ। अगर वे अमरूद टेबल पर रख दिए जाएँ। तब तुम यह सोच पाओगे कि अमरूद कितना हरा है! कितने लोगों को ऐसा जीवन मिलता है? हालाँकि कहीं ऐसा न हो कि वह अमरूद तुम्हारे खाने से पहले एक भूखा चूहा खा जाए।

आवर्त्तन

शून्य समय खाता है
सेकंड शून्य खाता है
मिनट सेकंड खाता है
घंटा मिनट खाता है
दिन घंटा खाता है
महीना दिन खाता है
साल महीना खाता है
युग साल खाता है
काल युग खाता है
महाकाल काल खाता है
शून्य महाकाल खाता है
समय शून्य खाता है


इम्तियाज़ महमूद (जन्म : 1980) इस समय बांग्लादेश के एक लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनकी कविता की अब तक आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अजीत दाश से परिचय के लिए यहाँ देखिए : मेरे काँपते हुए शब्दों की भाषा

1 Comments

  1. निशांत कौशिक अप्रैल 15, 2024 at 8:29 पूर्वाह्न

    अच्छी कविताएँ, अच्छा चयन और अनुवाद.

    Reply

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