कवितावार में जॉन मिल्टन की कविता ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : रीनू तलवाड़ और प्रचण्ड प्रवीर

जॉन मिल्टन

सॉनेट 19 : जब मैं विचारता हूँ किस तरह मेरा आलोक व्यय हुआ

जब मैं विचारता हूँ किस तरह मेरा आलोक व्यय हुआ
जीवन आधा बीतने से पहले ही, इस अँधेरी और बड़ी दुनिया में
और वह एक हुनर, जो है मृत्यु से बचना,
निरर्थक मेरे साथ विद्यमान रहा, यद्यपि मेरी आत्मा अधिक झुकी
उसके बाद मेरे निर्माता की सेवा में, और प्रस्तुत किया
अपना सच्चा बही खाता, इससे पहले कि वह उल्टा झिड़क दें;
“क्या ईश्वर दिन भर मज़दूरी करवाते हैं, रखते हैं आलोक से वंचित?”
मैं भोलेपन से पूछता हूँ। किंतु धैर्य—रोकने के लिए
यह बड़बड़ाहट—जल्द ही उत्तर देता है, “ईश्वर को नहीं चाहिए
मानव का श्रम या उनके उपहार; जो अच्छे-से
उठा लेते हैं उनका हल्का जुआ, वही करते हैं सर्वोत्तम सेवा। उनकी सरकार
शाही है। हज़ारों दौड़ते हैं उनके आदेश से
और तैनात रहते हैं भूमि और समुद्र पर अथक;
वे भी सेवा में रत हैं जो केवल खड़े होते हैं और प्रतीक्षा करते हैं।

जॉन मिल्टन (1608-1674) अँग्रेज़ी भाषा के महानतम कवि हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत रचना अँग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद के लिए poetryfoundation.org से ली गई है। रीनू तलवाड़ और प्रचण्ड प्रवीर से परिचय के लिए यहाँ देखें : दर्पण की तरह यह धरती तुम्हें भीतर ले जाती है

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