व्याख्यान ::
टोनी मॉरीसन
अनुवाद : सरिता शर्मा

टोनी मॉरीसन

‘‘एक समय की बात है। एक बूढ़ी औरत रहती थी—अंधी, लेकिन बुद्धिमान।’’ या यह कोई बूढ़ा आदमी था? या फिर कोई गुरु या बेचैन बच्चों को सुकून देने वाली कोई आत्मा। मैंने यह कहानी या बिल्कुल ऐसी कहानी कई संस्कृतियों की परंपरा में सुनी है।

‘‘एक समय की बात है। एक बूढ़ी औरत रहती थी—अंधी, लेकिन बुद्धिमान।’’

मुझे जिस संस्करण का पता है; उसमें औरत दास की बेटी, ब्लैक, अमेरिकी है : और शहर के बाहर एक छोटे-से घर में अकेली रहती है। बुद्धिमान के रूप में उसकी ख्याति बेजोड़ और संदेह से परे थी। अपने लोगों के बीच वह क़ानून और उसका उल्लंघन भी है। उसको दिया जाने वाला सम्मान और उसका रोब उसके पड़ोस में ही नहीं, दूर-दूर शहरों तक पहुँचा हुआ था, जहाँ ग्रामीण भविष्यवक्ता को मनोरंजन का साधन माना जाता है।

एक दिन उस औरत के पास कुछ जवान लोग आते हैं जो उसकी अतींद्रिय दृष्टि का खंडन करने और उसे ढोंगी साबित करने पर आमादा लगते हैं, जैसा कि वे उसे समझते हैं। उनकी योजना सीधी-सी है : वे उसके घर में घुसते हैं और एक सवाल पूछते हैं जिसका जवाब सिर्फ़ उसके उन लोगों से अलग होने पर निर्भर करता है, ऐसा अंतर जिसे वे बहुत बड़ी विकलांगता के रूप में मानते हैं : उसका अंधापन। वे उसके सामने खड़े हो जाते हैं, और उनमें से एक कहता है, “बूढ़ी औरत, मैंने हाथ में एक पक्षी को पकड़ा हुआ है, बताओ वह ज़िंदा है या मुर्दा?”

वह जवाब नहीं देती है, और प्रश्न दुहराया जाता है : “मैंने जो पक्षी पकड़ा हुआ है, वह ज़िंदा है या मुर्दा?”

वह फिर भी जवाब नहीं देती है। वह अंधी है और उनके हाथों में क्या है क्या बताए, मुलाक़ातियों तक को नहीं देख सकती है। वह उनके रंग, लिंग या मातृभूमि नहीं जानती है। वह बस उनके मक़सद को समझती है।

बूढ़ी औरत की चुप्पी इतनी लंबी है कि युवक अपनी हँसी बहुत मुश्किल से रोक पाते हैं।

अंत में वह बोलती है और उसकी आवाज़ नरम, लेकिन कर्कश है। वह कहती है, “मैं नहीं जानती कि जिस पक्षी को तुमने पकड़ रखा है, वह मर गया या ज़िंदा है, मगर मुझे यह पता है कि वह तुम्हारे हाथों में है। वह तुम्हारे हाथों में है।”

उसके जवाब का यह अर्थ लगाया जा सकता है : अगर यह मर चुका है तो तुम्हें या तो यह मरा हुआ मिला है या तुमने इसे मारा है। अगर यह ज़िंदा है, तो तुम अभी भी इसे मार सकते हो। इसे ज़िंदा रखना है या नहीं, यह तुम्हारा निर्णय है। जो भी स्थिति हो, यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।

अपनी ताक़त को दर्शाने और बूढ़ी औरत की असहायता के कारण मुलाक़ाती युवकों को फटकारा जाता है और उन्हें बताया है कि वे न सिर्फ़ मज़ाक़ उड़ाने के लिए, बल्कि अपने मक़सद को पाने के लिए छोटी-सी जान की बलि लेने के लिए भी ज़िम्मेदार हैं। अंधी औरत ने शक्ति के दावे से ध्यान हटाकर उस औज़ार की ओर ध्यान दिलाया है, जिसके माध्यम से शक्ति का इस्तेमाल किया जाता है।

उस हाथ में पक्षी के बारे में परिकल्पना (उसके अपने कमज़ोर शरीर के अलावा) मेरे लिए हमेशा दिलचस्प रही है, लेकिन विशेष रूप से अब जब मैं उस लेखन के बारे में सोच रही हूँ, जिसकी वजह से मैं विजेताओं की सोहबत में आ सकी हूँ। इसलिए मैं उस पक्षी को भाषा के रूप में और उस स्त्री को एक अनुभवी लेखक के रूप में पढ़ना चुनती हूँ। उसे फ़िक्र है कि जिस भाषा में वह सपने देखती है, जो उसे जन्म से मिली है, उसका कैसा प्रयोग होता है, उसकी देखभाल कैसे की जाती है, यहाँ तक कि उसे घृणित उद्देश्यों के लिए उससे दूर रखा जाता है। लेखक होने के कारण वह भाषा को एक पद्धति मानती है, जो आंशिक रूप से जीवित वस्तु है, जिस पर व्यक्ति का नियंत्रण है, लेकिन मुख्यतः भाषा एक साधन के रूप में–परिणाम वाले कार्य के रूप में है।

अत: बच्चे उससे प्रश्न करते हैं : ”यह जीवित है या मृत?” यह असत्य नहीं है, क्योंकि वह भाषा को मृत्यु, विलोपन के प्रति अतिसंवेदनशील मानती है; जोकि संकट में है और जिसे केवल इच्छा से ही बचाया जा सकता है। वह समझती है कि यदि उसके आगंतुकों के हाथ में मृत पक्षी है तो अभिरक्षक उसके शव के लिए ज़िम्मेदार हैं। उसके लिए एक मृत भाषा वही नहीं है जो अब बोली या लिखी नहीं जाती है, बल्कि भाषा का जिद्दी तत्त्व है जो अपने ह्रास की प्रशंसा करके संतुष्ट है। अंकशास्त्री भाषा सेंसर की तरह, नियंत्रित और नियंत्रण करने वाली है। अपने नियंत्रण करने के कर्त्तव्यों में क्रूर, उसकी इच्छा या उद्देश्य अपने मादक अहंकार, अपनी ही विशिष्टता और महत्त्व के निर्बाध विस्तार को बनाए रखने के अलावा और कुछ नहीं है। हालाँकि वह मरणासन्न है, वह प्रभावशाली है क्योंकि यह बुद्धि को सक्रिय रूप से नाकाम बनाती है, विवेक को कुंद करती है, मानव क्षमता को दबाती है। पूछताछ करने पर अग्रहणशील, यह नए विचारों को बना या सहन नहीं कर सकती है, हमारे विचारों को आकार नहीं दे सकती है, और कहानी नहीं कह सकती है, घबरा देने वाली चुप्पी को नहीं भर सकती है। अज्ञान को मंज़ूरी देने एवं विशेषाधिकार की रक्षा करने के लिए गढ़ी गई आधिकारिक भाषा चौंकाने वाला चमकदार कवच का सूट है, वह भूसी जिसमें से योद्धा बहुत पहले निकल चुका है। फिर भी यह ऐसी है—गूँगी, हिंसक, भावुक। स्कूली बच्चों में श्रद्धा उत्पन्न करने वाली, आततायियों को आश्रय प्रदान करने वाली, जनता में स्थिरता, सद्भाव की भ्रामक यादों को पुकारने वाली।

वह आश्वस्त है कि भाषा लापरवाही, अप्रचार, उदासीनता और असम्मान से मर जाती है, या उसे हुक्म द्वारा मार दिया जाता है, वह न केवल ख़ुद को मार देती है, बल्कि सभी उपयोगकर्ता और निर्माता उसकी मृत्यु के लिए जवाबदेह हैं। उसके देश के बच्चों ने अपनी जीभें काट ली हैं और वे वयस्कों की भाषा, मूक और विकलांग लोगों और अक्षम लोगों की आवाज़ को दुहराने के बजाय गोलियों का उपयोग करते हैं और वयस्कों ने भाषा को अर्थ के साथ जूझने, मार्गदर्शन प्रदान करने, या प्यार को व्यक्त करने के एक उपकरण के रूप में पूरी तरह त्याग दिया है। लेकिन वह जानती है कि जीभ कटवा लेना बच्चों की ही पसंद नहीं है। यह राष्ट्र के बचकाने प्रमुखों और सत्ता के व्यापारियों के बीच आम बात है, जिनकी निष्क्रांत भाषा उन्हें उनकी मानव प्रवृत्ति से पूर्णतः वंचित कर देती है; क्योंकि वे सिर्फ़ उनसे बात करते हैं जो उनका पालन करते हैं, या भाषा का इस्तेमाल आज्ञाकारिता के लिए मजबूर करने के लिए करते हैं।

भाषा की सुनियोजित लूटपाट को उसके उपयोगकर्ताओं द्वारा ख़तरे और अधीनता के प्रति उसकी सूक्ष्म, जटिल, धात्री जैसे गुणों को छोड़ देने की प्रवृत्ति से पहचाना जा सकता है। दमनकारी भाषा हिंसा का प्रतिनिधित्व करने से भी ज़्यादा नुक़सान करती है; यह हिंसा है; यह ज्ञान को सीमित करती है। चाहे वह राज्य की अस्पष्ट भाषा हो या नासमझ मीडिया की अशुद्ध भाषा हो; चाहे वह अकादमी की गर्वोन्मत्त मगर सख़्त भाषा हो या विज्ञान की वस्तु प्रेरित भाषा हो; चाहे वह क़ानून की अनैतिक बदनाम भाषा हो, अल्पसंख्यकों को अलग-थलग करने के लिए बनाई गई भाषा हो जिसने अपनी नस्लवादी लूटपाट को साहित्य के वेश में छुपा लिया है, उसे अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए, बदल दिया जाना चाहिए और उजागर किया जाना चाहिए। यह भाषा जो रक्तपिपासु है, कमज़ोरियों को अपनाती है, आधार-रेखा के अंदर और बाहर लगातार घूमते हुए सम्मान और देशभक्ति की आड़ में अपने फ़ाशीवादी उद्देशों को दबाए रखती है। लैंगिकवादी भाषा, जातिवादी भाषा, ईश्वरवादी भाषा—सभी आधिपत्य की नियंत्रक भाषाओं की प्रतीक हैं, और नए ज्ञान की अनुमति या विचारों के आपसी आदान-प्रदान को प्रोत्साहित नहीं कर सकते हैं।

बूढ़ी औरत भली-भाँति जानती है कि उसके विचारों से न किसी बौद्धिक स्वार्थी, और न ही लालची तानाशाह, किसी ख़रीदे हुए राजनीतिज्ञ या जनोत्तेजक नेता या किसी नक़ली पत्रकार को समझाया जा सकता है। नागरिकों को हथियारों से लैस और हथियार रखने के लिए, मॉल्स, अदालतों, डाकघरों, खेल के मैदानों, शयन-कक्षों और रास्तों में क़त्ल होने और क़त्लेआम करने के लिए उत्साहपूर्ण भाषा होगी; दया और अनावश्यक मौत की व्यर्थता को छिपाने के लिए जोशीली और यादगार बनाने वाली भाषा होगी। बलात्कार, अत्याचार, हत्या पर दिलासा देने के लिए और अधिक कूटनीतिक भाषा होगी। स्त्रियों को कुचलने और उनके गलों को स्वयं के अकथनीय, उल्लंघन करने वाले शब्दों से मांस का लोथड़ा बनने वाली बतख़ों की तरह कसकर बाँधने के लिए और भी और अधिक मोहक, उत्परिवर्ती भाषा है और होगी और अनुसंधान के वेश में निगरानी की भाषा और बढ़ जाएगी; लाखों की पीड़ा को मूक करने के लिए सुविचारित राजनीति और इतिहास की भाषा होगी; असंतुष्ट और महरूम लोगों को अपने पड़ोसियों पर हमला करने के लिए रोमांचित करने की आकर्षक भाषा; रचनात्मक लोगों को हीनता और निराशा के पिंजरों में बंद करने के लिए बनाई गई अभिमानी छद्म भाषा होगी।

चाहे कितनी भी उत्तेजक और मोहक वाक्पटुता, ग्लैमर, विद्वत्तापूर्ण संसर्ग हो—उनके नीचे, इस तरह की भाषा का दिल सड़ रहा है, या शायद बिल्कुल धड़क नहीं रहा है—पक्षी पहले ही मर चुका है।

उसने इसके बारे में सोचा है कि किसी भी क्षेत्र का बौद्धिक इतिहास क्या हो सकता था, अगर इसने समय और जीवन की बर्बादी पर जोर नहीं दिया होता, या इसके लिए मजबूर नहीं किया गया होता जो अपेक्षित प्रभुत्व के निरूपण की बुद्धिसम्मत व्याख्या करता है। अलग करने वाले और छोड़ दिए गए, दोनों तरह के लोगों के लिए ज्ञान की पहुँच को रोकने वाले निषेधों के घातक विमर्श हैं।

बेबल की टॉवर की कहानी की पारंपरिक सीख यह है कि पतन दुर्भाग्यपूर्ण था। यह सीख भी मिलती है कि व्याकुलता, या टॉवर की कई भाषाओं का वज़न उसकी असफल वास्तुकला का कारण बना था। एक अखंड भाषा भवन-निर्माण में तेज़ी ला सकती थी और स्वर्ग तक पहुँचा जा सकता था। किसका स्वर्ग, वह ताज्जुब करती है? और किस तरह का? अगर किसी के भी पास अन्य भाषाओं, औरों के विचारों, अन्य आख्यान काल को समझने के लिए समय नहीं था, तो शायद स्वर्ग की प्राप्ति समय से पहले थोड़ी जल्दबाज़ी में हो गई थी। अगर उन्होंने ऐसा किया होता तो वे जिस स्वर्ग की कल्पना कर रहे थे, वह उनके क़दमों पर मिल गया होता। यह बेशक जटिल और दक्षतापूर्ण है, लेकिन स्वर्ग को जीवन के बाद की वस्तु के रूप में नहीं, जीवन के रूप में समझता है।

वह नहीं चाहती थी कि उसके युवा आगंतुक मन में यह धारणा लेकर जाएँ कि भाषा को केवल बने रहने के लिए जीवित रहने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए। भाषा की जीवन-शक्ति अपने वक्ताओं, पाठकों, लेखकों के, वास्तविक, काल्पनिक और संभावित जीवन की रचना करने की क्षमता में निहित है। हालाँकि इसका संतुलन कभी-कभी अनुभव को विस्थापित कर देने में होता है, वह इसके लिए विकल्प नहीं है। यह उस स्थान की तरफ़ घूमती है, जहाँ अर्थ मिलने की संभावना हो सकती है। जब संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने क़ब्रिस्तान बन चुके उसके देश के बारे में सोचा था और कहा था, ‘‘हम जो यहाँ कहते हैं, दुनिया उस पर बहुत कम ध्यान देगी या उसे याद रखेगी। लेकिन उन्होंने यहाँ जो किया था, उसे कभी नहीं भूल पाएगी…” उनके सीधे-सादे शब्द जीवन को बनाए रखने के गुण के कारण सजीव हैं, क्योंकि वह एक विध्वंसक जाति युद्ध में छह लाग लोगों के मारे जाने की वास्तविकता को संपुटित करने से इनकार करते हैं। उनके शब्द स्मारक बनाने से इनकार करके, ‘अंतिम शब्द’, यानी सटीक ‘सार’ की अवहेलना करते हुए, उनकी ‘जोड़ने या घटाने की क्षीण शक्ति’ को स्वीकार करते हुए, उस जीवन को व्यक्त न कर पाने के प्रति सम्मान का संकेत हैं, जिसके लिए शोक व्यक्त किया गया है। यह सम्मान उसे झकझोरता है, यह स्वीकृति की भाषा कभी भी जीवन की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती है। न ही इसे ऐसा करना चाहिए। भाषा कभी ग़ुलामी, नरसंहार, युद्ध को ‘दबा’ नहीं सकती है। न ही इसे ऐसा करने में सक्षम होने के अहंकार के लिए लालायित होना चाहिए। इसकी ताक़त, इसका कल्याण शब्दातीत की ओर जाने में है।

चाहे वह भव्य हो या कमज़ोर हो, खुदाई करने वाली हो, विध्वंसकारी हो या पवित्र होने से इनकार करने वाली हो, चाहे वह पसंदीदा शब्द हो या चुनी हुई चुप्पी हो, बाधारहित भाषा ज्ञान की ओर आगे बढ़ती है; न कि उसके विनाश की ओर। मगर कौन इस वजह से प्रतिबंधित साहित्य के बारे में नहीं जानता है, क्योंकि वह सवाल उठाता है; उसे अपमानित किया जाता है, क्योंकि वह आलोचनात्मक है; उसे मिटा दिया जाता है, क्योंकि वह बदलाव करता है? और कितने ही लोग ख़ुद को उजाड़ चुकी भाषा के बारे में सोचकर नाराज़ हैं?

वह सोचती है कि शब्दों का काम उदात्त है, क्योंकि यह उत्पादक है; क्योंकि वह सोचता है, अर्थ बनाता है जो हमारे अंतर, हमारे मानव होने के अंतर को इस तरह सुरक्षित करता है जिससे हम किसी अन्य जीवन की तरह नहीं हैं।

हम मर रहे हैं। जीवन का अर्थ वह हो सकता है। लेकिन हम भाषा बनाते हैं। यही हमारे जीवन का उपाय हो सकता है।

‘‘एक बार एक समय पर…’’ आगंतुक बूढ़ी औरत से सवाल पूछते हैं। वे बच्चे कौन हैं? इस मुलाक़ात से वे क्या समझे? उन अंतिम शब्दों में उन्होंने क्या सुना : “पक्षी आपके हाथों में है?” यह ऐसा वाक्य है जो संभावना की ओर इशारा करता है या दरवाज़े को पूर्णतः बंद कर सकता है? शायद बच्चों ने सुना होगा : “यह मेरी समस्या नहीं है। मैं बूढ़ी, महिला, ब्लैक, अंधी हूँ। मेरे पास जो ज्ञान अब है, वह यह जानने में है कि भाषा का भविष्य तुम्हारे हाथों में है।”

वे वहाँ खड़े हैं। मान लीजिए उनके हाथ में कुछ भी नहीं है? मान लीजिए भेंट उनके बात करने, गंभीरता से लिए जाने का केवल एक छल या चाल थी, क्योंकि उन्हें पहले गंभीरता से नहीं लिया गया था? वयस्क लोगों की दुनिया, युवा पीढ़ी के बारे में उनके लिए प्रवचनों, जिन्हें वे खुद नहीं मानते, की सड़ाँध को बाधित करने, उसका उल्लंघन करने, का एक मौक़ा है? ज़रूरी सवाल दाँव पर लगे हैं, जिनमें से एक वह है जो उन्होंने पूछा है, ‘‘हमने जो पक्षी पकड़ा हुआ है, वह ज़िंदा है या मुर्दा?” शायद सवाल का मतलब यह था : “क्या कोई हमें बता सकता है कि जीवन क्या है? मौत क्या है?” कोई चाल; कोई मूर्खता नहीं चलेगी। एक सीधा-सा सवाल जिसका बुद्धिमान व्यक्ति ध्यान दे सके। बुज़ुर्ग व्यक्ति। और अगर वे बुज़ुर्ग और बुद्धिमान जिन्होंने जीवन जिया है और मौत का सामना किया है, वर्णन नहीं कर सकते हैं, तो और कौन कर सकता है? लेकिन वह जवाब नहीं देती है; वह अपने रहस्य रखती है; उसकी ख़ुद के बारे में अच्छी राय; उसके दुरूह कथन; उसकी प्रतिबद्धता रहित कला। वह अपनी दूरी बनाए रखती है, उसे पुष्ट करती है और एकांत में, परिष्कृत, विशेषाधिकार प्राप्त स्थान की विलक्षणता में लौट जाती है।

उसकी समर्पण की घोषणा के पश्चात कुछ नहीं, कोई शब्द नहीं है। वह मौन गहरा है, जो उसके द्वारा बोले गए शब्दों में उपलब्ध अर्थ से अधिक गहरा है। यह चुप्पी काँपती है, और बच्चे, नाराज़ होकर मौक़े पर आविष्कृत भाषा से भरते हैं।

“क्या कोई व्याख्यान नहीं देना है…” वे उससे पूछते हैं, “आप हमें कोई ऐसा शब्द नहीं दे सकती हैं, जो हमें आपकी विफलताओं की फ़ाइल को समझा सके? उस शिक्षा के माध्यम से जो आपने हमें अभी दी है क्योंकि हम इस पर अच्छी तरह ध्यान देते रहे हैं, आपने क्या किया है और क्या कहा है? उस अवरोध पर भी जिसे आपने उदारता और बुद्धि के बीच खड़ा कर दिया है?

“हमारे हाथ में जीवित या मृत, कोई पक्षी नहीं है। हमारे पास केवल आप और हमारा महत्त्वपूर्ण सवाल है। हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है, क्या आप ऐसे सोचना भी सहन नहीं कर सकती थीं या अंदाज़ तक नहीं लगा सकती थीं? क्या आपको याद नहीं है कि जब आप युवा थीं, तब भाषा बिना अर्थ का जादू हुआ करती थी? जब आप जो कह सकती थीं, उसका अर्थ वह नहीं होता था? जब आत्मा अदृश्य को देखने की कोशिश करती थी? जब प्रश्न और उत्तर के लिए माँगें इतनी तेज़ हुआ करती थीं कि हम नहीं जानने पर रोष के कारण काँप जाया करते थे?

“क्या हमें चेतना शुरू करने के लिए नायिकाओं और नायकों की लड़ाई लड़नी पड़ेगी जिसे आप पहले से ही लड़ चुकी हैं और हार गई हैं और हमारे हाथ में कुछ भी नहीं छोड़ा सिवाय उसके जिसकी आपने कल्पना की है? आपका जवाब धूर्ततापूर्ण है, लेकिन इसकी चालाकी हमें शर्मिंदा करती है और आपको भी शर्मिंदा होना चाहिए। आपका जवाब स्वयं को बधाई देने में अशोभनीय है। मनगढ़ंत टेलीविजन स्क्रिप्ट का कोई मतलब नहीं है, अगर हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है।

“आपने आगे बढ़कर हमें अपनी नरम उँगलियों से क्यों नहीं छुआ, बात और सीख तब देतीं, जब आप हमें जान लेतीं? आपने हमारे छल, हमारे काम करने का ढंग से इतनी नफ़रत क्यों की? आप समझ नहीं सकीं कि हम आपका ध्यान पाने के लिए बेताब थे? हम युवा हैं। अपरिपक्व हैं। हमने अपने छोटे से पूरे जीवन में सुना है कि हमें ज़िम्मेदार होने की ज़रूरत है। इस दुनिया में जोकि तबाह हो गई है, संभवतः, इसका क्या मतलब हो सकता है जिसके बारे में एक कवि ने कहा है, “जहाँ कुछ भी उजागर करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि चेहरा ढका हुआ नहीं है।” हमारी विरासत अपमानित है। आप चाहती हैं कि हम आपकी बूढ़ी, भावशून्य आँखों से देखें और क्रूरता और सामान्यता को देखें। आप हमें इतना बेवक़ूफ़ समझती हैं कि हम राष्ट्रीयता की कल्पित कथा से बार-बार झूठ बोलें। आप हमसे कर्त्तव्य की बात करने की हिम्मत कैसे कर सकती हैं, जब हम आपके अतीत के विष में कमर तक गहरे डूबे हुए हैं?

“आप हमें और उस पक्षी को महत्त्वहीन बनाती हैं जो हमारे हाथ में नहीं है। क्या हमारे जीवन के लिए कोई संदर्भ नहीं है? कोई गीत, कोई साहित्य, पोषण से भरी कोई कविता, उस अनुभव से जुड़ा कोई इतिहास नहीं है; जिसे आप हमें मज़बूत शुरुआत करने में मदद करने के लिए आगे बढ़ा सकती हैं? आप वयस्क हैं, बुज़ुर्ग और बुद्धिमान हैं। अपना बचाव करने के बारे में सोचना बंद कीजिए। हमारे जीवन के बारे में सोचो और हमें अपनी दुनिया का विस्तृत विवरण दीजिए। कोई कहानी गढ़िए। वर्णन विलक्षण है, अपने सृजन के क्षण में हमें रच रहा है। अगर आपकी कोशिश आपके उद्देश्य को प्राप्त नहीं करती तो हम आपको दोष नहीं देंगे; अगर प्यार आपके शब्दों को इस तरह सुलगा देता है तो वे शब्द ज्वाला में गिरकर भस्म हो जाएँगे और उनके जलने के दाग़ के सिवाय कुछ नहीं बचेगा, और अगर आपके शब्द शल्य-चिकित्सक के संकोची हाथों की तरह केवल वहीं टाँके लगाते हैं, जहाँ ख़ून बह सकता है। हमें पूरी तरह पता है कि आप इसे कभी ठीक से नहीं कर सकती हैं। न पर्याप्त जुनून है और न ही कौशल। लेकिन कोशिश करो। हमारी और अपनी ख़ातिर अपने गली के नाम को भूल जाओ। हमें बताओ कि अँधेरे स्थानों और उजाले में आपके लिए दुनिया कैसी रही है। हमें मत बताओ कि किस पर विश्वास करें, किससे डरें। हमें विश्वास का लंबा-चौड़ा परिधान और डर के शीर्षावरण की सिलाई को उधेड़ने वाले टाँके दिखाओ। कैसे चित्रों के बिना देखे : आप, अंधेपन से ग्रस्त बूढ़ी औरत, वह भाषा बोल सकती हैं जिसे सिर्फ़ भाषा ही बोल सकती है। भाषा ही हमें बिना नाम की चीज़ों के ख़ौफ़ से बचाती है। सिर्फ़ भाषा ही चिंतन है।

‘‘हमें बताइए कि औरत होना कैसा होता है ताकि हम यह जान सकें कि आदमी को कैसा होना चाहिए। हाशिए पर क्या बदलता है। इस स्थान पर कोई घर नहीं होना कैसा होता है। जिसे तुम जानते हो उससे दूर किया जाना कैसा लगता है। उन शहरों के किनारे पर रहना कैसा लगता है जो आपकी सोहबत को सहन नहीं कर सकते हैं।’’

‘‘हमें ईस्टर के दिन तटरेखा से हटा दिए गए जहाज़ों, खेतों में नाल के बारे में बताइए। हमें दासों के माल-भार के बारे में बताइए, उन्होंने किस तरह इतना धीरे से गाया कि उनकी साँस की आवाज़ बर्फ़ गिरने की आवाज़ में मिल गई। वे अपने पास के कंधे के उभार से कैसे जान लेते थे कि अगला पड़ाव उनका अंतिम पड़ाव होगा। उन्होंने घुटनों के बीच बँधे हुए हाथों से गर्मी, और फिर सूरज के बारे में कैसे सोचा होगा। अपने चेहरों को इस तरह उठाते हुए मानो वह आसानी से उपलब्ध है। इस तरह मुड़ते हुए मानो वह आसानी से मिलने वाला है। वे सराय पर रुकते हैं। चालक और उसका साथी उन्हें अँधेरे में गुनगुनाते हुए छोड़कर दीपक लेकर अंदर चले जाते हैं। बर्फ़ में घोड़ों के खुरों के तले उठती और पिघलती ख़ाली भाँप ठंड से जमने वाले दासों की ईर्ष्या का विषय थी।’’

“सराय का दरवाजा खुलता है : एक लड़की और लड़का उसके प्रकाश से पीछे हटते हैं। वे वैगन के बिस्तर में चढ़ते हैं। तीन साल में लड़के के पास बंदूक़ होगी, लेकिन अब उसने चिराग़ और गर्म साइडर का लिकर जग पकड़ा हुआ है। वे इसे एक के बाद दूसरे मुँह तक आगे बढ़ाते हैं। लड़की ब्रेड, मांस के टुकड़े और कुछ और चीज़ देती है। वह जिन्हें खाना परोस रही है, उनकी आँखों में झाँकती है। हर आदमी को एक कौर, हर औरत के लिए दो कौर। और फिर देखती है। वे भी देखते हैं। अगला पड़ाव उनका आख़िरी पड़ाव होगा। मगर यह नहीं। यह पड़ाव गर्म है।”

जब बच्चे बोलना ख़त्म करते हैं, तब मौन छा जाता है—जब तक कि महिला चुप्पी नहीं तोड़ती है।

अंत में, वह कहती है, “मुझे अब तुम पर भरोसा है। मैं तुम पर भरोसा करती हूँ कि पक्षी तुम्हारे हाथ में नहीं है, क्योंकि तुमने वास्तव में इसे पकड़ लिया है। देखो : यह कितना सुंदर है जो हमने मिलकर किया है।”

टोनी मॉरीसन (1931-2019) विश्वप्रसिद्ध अमेरिकी लेखिका हैं। उन्होंने अपने साहित्य के ज़रिए अफ़्रीकी-अमेरिकी ब्लैक औरतों को ख़ास पहचान दिलाने का काम किया और उनके दारुण दुख, उनकी आशा-निराशा को वाणी दी। साल 1993 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित टोनी मॉरीसन की ख्याति उनके उपन्यासों और निबंधों की वजह से है। यहाँ प्रस्तुत व्याख्यान उन्होंने नोबेल सम्मान ग्रहण करने के अवसर पर दिया था। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 23वें अंक में पूर्व-प्रकाशित। सरिता शर्मा से परिचय के लिए यहाँ देखें : यह फ़रवरी का महीना है

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