कवितावार में मिरोस्लाव होलुब की कविता ::
अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

मिरोस्लाव होलुब

एक कवि से बातचीत

कवि हैं आप?
हां मैं हूं.
कैसे मालूम यह?
लिखी हैं कविताएं मैंने.
कविताएं लिखी हैं भर आपने इसका तो मतलब यह
कि कवि थे आप. लेकिन अब?
मैं लिखूंगा फिर कविता किसी दिन.
तो फिर उस हालत में संभव है कि फिर हों कवि आप
एक दिन. पर कैसे करेंगे मालूम जो
लिखी है वह कविता है?
कविता वह होगी उसी तरह जैसी कि पिछली थी.
तब फिर वह कविता तो नहीं होगी. कविता बस
एक बार होती है और ठीक वैसी ही
हो नहीं सकती है दुबारा वह.
उम्मीद है मुझे वह होगी उतनी ही अच्छी
जितनी कि थी पिछली.
कैसे कह सकते हैं यह निश्चयपूर्वक? अपने स्वभाव
की कविता बस होती है एक बार अंततः और वह भी
मुनस्सर नहीं आप पर, निर्भर वह होती है स्थितियों पर.
करता हूं आशा कि स्थितियां भी होंगी वही.
मानते भर आप हैं ऐसा तो आप कवि नहीं होंगे
फिर और पहले भी नहीं थे. फिर क्योंकर
मानते हैं कि कवि हैं आप?
अच्छा! …मुझे नहीं मालूम यह ठीक-ठीक. और आप हैं कौन?

***

मिरोस्लाव होलुब (13 सितंबर 1923 – 14 जुलाई 1998) प्रख्यात चेक कवि हैं. प्रयाग शुक्ल हिंदी के सुपरिचित कवि-अनुवादक हैं. यहां प्रस्तुत कविता जनवरी-मार्च 1989 के ‘साक्षात्कार’ के विश्व कविता अंक से ली गई है.

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