सुकांत भट्टाचार्य की कविताएँ ::
बांग्ला से अनुवाद : मनीष कुमार यादव

सुकांत भट्टाचार्य

रवींद्रनाथ की ओर

मुझे आपकी शानदार उपस्थिति अभी भी याद है,
हमेशा की तरह, हर एकांत में नशा फैलता है,
मैं अभी भी आपके गीत से अभिभूत हूँ,
मैं चुपचाप पेट के मूक भ्रंश को अनदेखा करता हूँ।

अभी भी जीवन के स्तर पर,
आपके उपहार की मिट्टी एक सुनहरी फ़सल देती है।
अभी भी सुकून के मूड में हैं,
आपकी रचनाएँ मन के गहन अंधकार में जागृत रहती हैं।

फिर भी भूख के दिन धीरे-धीरे साम्राज्य बनाते हैं,
मुझे आक्रामक लोगों द्वारा गुप्त रूप से अपमानित किया गया था;
हालाँकि ख़ूनी दिन, अभी भी अपनी रचना को दृढ़ करते हैं
फिर भी मेरे मन में स्थापित है।

फिर भी निश्चित उपवास
मेरे मन के कोनों में लगातार आहें फैलती रहती हैं :
मैं एक अकाल कवि हूँ,
मैं हर दिन बुरे सपने देखता हूँ, मौत का एक स्पष्ट प्रतिबिंब।

भोजन की क़तारों के जवाब में मेरा वसंत कट गया,
मेरी नींद की रात अलार्म मोहिनी लगता है,
मैं रक्तपात से रोमांचित हूँ,
मैं दोनों हाथों में क्रूर शृंखला पर चकित हूँ।

तो आज मुझे विश्वास है,
‘‘झूठे चुटकुलों से शांति का सुंदर संदेश जाएगा।’’
तो मैं घर में तैयार वादे को देखता हूँ,
आज मैं राक्षसों से संघर्ष कर रहा हूँ।

सेवानिवृत्ति से पहले

कमज़ोर पृथ्वी जटिल विकार में रोती है,
अमर धमनियों का जलता हुआ प्रलाप;
अवरुद्ध छाती में उसकी पागल बिजली;
देखने के लिए भयानक पूर्व अभिशाप।

भयभीत रक्त-नेत्र में काली छाया,
ख़ूनी आघात मूर्त झटके लाता है :
दूर पर विलाप करने वाले हँसे और चालक दल मुस्कुराया :
बीमार बच्चे की अजीब मौत

एक अंधे आकाश का क्रूर आराम :
धड़कन से चेरापूँजी-सहिष्णु दिल।
थके हुए यात्री का रोना :
रात में दानव की छाती में मृत्यु का भय जागता है।

बहुत किशोर तुकबंदी

मेरी बदनामी मत करो,
चाहे तुम मेरा कितना भी अपमान करो।
लेकिन मैं अपने गाल पर चूना रगड़ता हूँ,
मैं कोई भी काम कर सकता हूँ,
मैं कविता कह सकता हूँ,
मैं साइड रीडिंग नहीं पढ़ता,
मैं राख नहीं पढ़ता।
कड़वी दवा गिल्ली नाको, मीठी और खट्टी
भोजन करना मेरा शाश्वत शौक़ है।
दादा-दादी सभी के प्रति जिद्दी और बुरे हैं,
अच्छा होने के साथ संघर्ष है।
मेरी निगाहें पढ़ने पर टिकी हैं,
मैं रास्ते के लोगों की तुलना में अधिक झुकाव वाला हूँ।
शहद के लिए छुट्टी,
जहाँ भीड़ है, वहाँ भीड़ है।
जब आप किसी विद्वान को देखते हैं, तो अपना सिर हिलाएँ,
मुझे लगता है कि अगर मैं सलाह बैल का पालन करता हूँ,
तो मैं समझूँगा और जल्दी करूँगा।
इसलिए मैं वापस जाने से डरता हूँ।
मैं समझता हूँ कि यह केवल गाय का गोबर है,—कोई मधुकोश नहीं।
जब मैं ग़लती करता हूँ, भाई, चुकाने की ख़ुशी में
मैं सनकी तरीक़े से काम करता हूँ,
क्या मैं मुश्किल में पड़ जाता हूँ?
मैं समझता हूँ कि सीधा क्या है, भाग्य का चक्र!
कोई मुझे समझता नहीं है। दुनिया कुटिल है।

अठारह वर्ष की उम्र

अठारह वर्ष की आयु दयनीय है
प्रतिस्पर्धा सिर उठाने का जोखिम उठाती है,
हर अब और फिर अठारह साल की उम्र में
पीक जो महान साहस देता है।

अठारह साल के बच्चों को कोई डर नहीं है
तोड़ना चाहता है पत्थर बाधा,
इस उम्र में किसी को भी अपना सिर नहीं झुकाना चाहिए—
अठारह साल का रोना नहीं जानता।

यह युग रक्तदान के गुण को जानता है
यह भाप की गति से स्टीमर की तरह बढ़ता है,
जीवन देने वाला बैग ख़ाली नहीं है,
साँप आत्मा की क़सम खाने के शोर में।

अठारह साल की उम्र भयानक है—
ताज़ा—आत्मा में असहनीय दर्द,
इस उम्र में आत्मा तीव्र और उग्र होती है
इस उम्र में कानों को कितनी सलाह आती है।

अठारह साल के दरबार के रास्ते में
रेगिस्तान में कई तूफ़ान आते हैं,
आपदा राहत का बोझ
हज़ारों ज़िंदगियाँ घायल हो गईं।

चोट अठारह साल की उम्र में आई
अथक, एक-एक करके इकट्ठा करो,
इस उम्र में काले लाखों की आह
इस उम्र में, दर्द में काँपना।

फिर भी अठारह पर मैंने ख़ुशी के नारे लगाए,
यह उम्र आपदाओं और तूफ़ान से बचती है,
यह उम्र ख़तरे का सामना कर रही है,
यह उम्र अभी भी कुछ नया करती है।

इस उम्र में, ज़ेनो एक कायर है, कायर नहीं
इस उम्र में रास्ता नहीं रुकता,
इस उम्र में कोई शक नहीं है—
अठारह असुख इस देश की छाती पर उतरे।


सुकांत भट्टाचार्य (1926–1947) बांग्ला के असमय दिवंगत सुप्रसिद्ध कवि हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविताएँ बांग्ला से हिंदी अनुवाद के लिए kolkata-online.com से चुनी गई हैं। मनीष कुमार यादव हिंदी की नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : मेरे दुख में विसर्ग नहीं है

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