बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : बकुल देव

इधर बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कविताओं के कई तर्जुमे पढ़ने में आए जो बेशतर हिंदी और अँग्रेज़ी में थे।

मैंने उर्दू ज़बान में ये तर्जुमे किए हैं, लेकिन इन नज़्मों को सीधे तौर पर तर्जुमा कहा जाना ठीक नहीं है। इन्हें भावानुवाद कहना ज़ियादा ठीक रहेगा।

ब्रेष्ट की कविता का मूल भाव पकड़कर, मैंने यह कोशिश की है कि कोई उर्दू शाइर अगर इस क़िस्म के ख़याल से दो-चार होता तो उसका रद्दे-अमल क्या होता।

उर्दू की जो क्लासिकल शे’री रिवायत है, जो तहज़ीब है, जो आहंग है, जो ज़बान है… उसमें ढलने पर वो ख़याल कैसा लगता।

इन पाँच नज़्मों के साथ मूल कविता के अँग्रेज़ी अनुवाद का शीर्षक भी दिया गया है।

देखा जाए तो लुग़वी मानों में ये नज़्में भले ही तर्जुमा न हों, लेकिन ख़याल की सतह पर तर्जुमा ही हैं; और ख़याल की सतह पर तर्जुमा होने के बाद भी इनका अपना उस्लूब है, अपनी ज़मीन है।

— बकुल देव

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

नहीं… सिकंदर से मुझको कोई गिला नहीं है

ज़मीं को सर करना चाहता था
तिमूर कोई
सुना है मैंने

अजीब लगता है शग़्ल1शौक़ ऐसा
कि हम ज़मीं क्या
भुला भी सकते हैं आसमाँ को
ज़रा-सी मय से…

नहीं… सिक़ंदर से मुझको कोई गिला नहीं है!

मगर करूँ क्या
कि मैंने देखे हैं फ़र्द2लोग ऐसे
जो सिर्फ़ होने प ख़ुश थे अपने

ज़रा तवक़्क़ो3उम्मीद के मुस्तहिक़4पात्र हैं
वो लोग सारे
तमाम दुश्वारियों के होते
जो जी रहे थे
जो जी रहे हैं

मैं सोचता हूँ
अज़ीम5महान होना भी शाप है क्या?

कि मैंने देखा है अक्सर-अक्सर
अज़ीम लोगों को
मुत्तफ़िक6संतुष्ट जो नहीं थे ख़ुद से

दरूँ7भीतर, अंदर में जिनके कोई ख़ला8ख़ालीपन था
ख़ला जिसे भरने की क़वायद को लोग अज़्मत9प्रतिष्ठा, आदर, सम्मान, इज़्ज़त पुकारते हैं…

इक ऐसी अज़्मत
कि जिसमें सिगरेट का कश भी लो तो
सुकूँ न आए

कि जिसमें हाथों में जाम हो पर
न दर्द कम हो न लुत्फ़ आए

कि जिसमें महबूब की जबीं पर
नज़र पड़े तो
किसी इलाक़े की कोई सरहद
उभरती जाए उभरती जाए…

कोई बताए
कि ऐसी अज़्मत का मोल क्या है?

नहीं… सिकंदर से मुझको कोई गिला नहीं है!

I’M Not Saying Anything Against Alexander

आने वाली नस्लों के लिए

मुझे ये ऐतराफ़10अपराध की स्वीकृति है
कि अब मफ़र11बच निकलना की राह भी नहीं बची
मुझे ये ऐतराफ़ है
कि दिल में अब उमीद तक नहीं रही
मुझे ये ऐतराफ़ है
मैं अपनी ग़लतियाँ भी ख़र्च कर चुका
मुझे ये ऐतराफ़ है
मैं मर चुका मैं मर चुका मैं मर चुका

सो मेरी ओर से बयाँ है आख़िरी
ख़ला हमारा हमक़िराँ12साथ बैठने वाला है आख़िरी

Future generations

शैतान का मुखौटा

एक नक़्क़ाशी टँगी है
घर की इक दीवार पर

और नक़्क़ाशी
मुखौटा है किसी शैतान का
सुर्ख़ी माइल13गहरे लाल रंग सदृश सोने का पानी चढ़ा

और मैं हस्सास दिल
तकता हूँ हमदर्दी से
उसके माथे की नसें
फूली हुईं उभरी हुईं

और फिर ये सोचता हूँ
कितना मुश्किल है
जहाँ भर के अँधेरे का कोई उन्वान14शीर्षक होना

सख़्त अज़ीयत…15कष्ट सख़्त अज़ीयतकुन16कष्टप्रद है इक शैतान होना!

The Mask Of Evil

सामान-ए-मसर्रत17सुख के सामान

सुब्ह की पहली किरन, बादे-सबा
परबतों पर बर्फ़ की उजली क़बा

मौसमों के रंग उनके आबो-ताब
ताक़ पर मिल जाए इक खोई किताब

सग18कुत्ता का सुस्ताना गली की दूब पर
शाइरों से गुफ़्तगू उस्लूब19शैली, पद्धति पर

सुब्हदम अख़बार गिरना सेह्न में
कोई जुमला कौंध जाना ज़ेह्न में

रास्ते में इक घने बरगद की छाँव
ख़ुशतरक20आरामदायक और मख़्मली जूतों में पाँव

झाँकना बटुए से इक तस्वीर का
यक-ब-यक21अचानक खुल जाए मिसरा मीर का

हो के गुम फिर खोजना जंगल में राह
गुनगुनाना नज़्म अपनी गाह-गाह22रह रह कर, कभी कभी

कोह23पर्वत से गिरता हुआ इक आबशार
इक पुराने गीत में बजता सितार

दिल से भी दुनिया से भी मंसूब24संबंधित हैं
हमको सामान-ए-मसर्रत ख़ूब हैं

Pleasures

पामाल अश्या25पुरानी चीज़ें, दुर्दशाग्रस्त चीज़ें

पीतल का गुलदान पुराना
जिस पर खड्डा पड़ा हुआ है
मेज़ से गिर जाने के बाइस
जिसकी कोरें घिसी हुई हैं…

एक शिकस्ता बुत26टूटी हुई मूर्ति ऐसा बुत
जिसके बाज़ू कटे हुए हैं
और ढहाए जाने पर भी
जिसकी आँखें चमक रही हैं…

अनगिन हाथों से गुज़रे ये
चम्मच काँटे छुरी पतीले
मुब्हम-मुब्हम27धुँधले-धुँधले नक़्श हैं जिन पर
नर्म पड़ चुके जिनके हत्थे
हाथों से फिसले जाते हैं…

आईना तिमसाल28दर्पण की तरह चमकता हुआ हो चुका
घाट के ज़ीने29सीढ़ी का इक पत्थर
हँसते-हँसते
धूप को जैसे ठेल रहा है…

एक क़दीम30पुरानी इमारत जिसको
खंडर कहें तो ठीक रहेगा
खंडर कि जिसने
शक़्ल बना रक्खी है ऐसी
जैसे इक तस्वीर मुकम्मल31पूर्ण होना चाहे…

कब से है ये कैफ़ीयते-जाँ
ख़बर नहीं है
लेकिन सच है
इक अरसे से

अश्या जो पामाल हो चुकीं
मुझको वो अहसासे-सुकूँ32शांति का भाव हैं
मंज़र जो वीरान हो चुके
सामाँ हैं तस्कीने-नज़र33दृष्टि का सुख का

कारे-नुमू34निर्माण का कार्य से ऊब चुका मैं
एक चटान से पीठ टिकाए सोच रहा हूँ

पामाली का अपना हुस्न हुआ करता है
पामाली के ज़ब्त प दुनिया टिकी हुई है

Of all the works of man

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट (1898–1956) बीसवीं सदी के समादृत जर्मन कवि-लेखक और नाटककार हैं। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अँग्रेज़ी से उर्दू में अनूदित कविताओं का हिंदी लिप्यंतरण हैं। पाकिस्तान की मशहूर पत्रिका ‘लालटेन’ में प्रकाशित उर्दू अनुवाद के लिए ये कविताएँ Bertolt brecht : Plays, Poetry and Prose (Edited by : John Willett, Ralph Manheim, Erich Fried; Published in Great Britain, 1976) से चुनी गई हैं। बकुल देव सुपरिचित उर्दू शाइर और अदीब हैं। उनसे bakuldeo@gmail.com पर बात की जा सकती है। ‘सदानीरा’ पर इससे पूर्व प्रकाशित बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कुछ और कविताओं के लिए यहाँ देखें : क्या मैंने हमेशा नहीं लिखा है सच

1 Comments

  1. Neeraj Goswamy जुलाई 20, 2020 at 2:14 अपराह्न

    क्या कमाल का काम किया है बकुल एक भी लफ़्ज़ जाया नहीं किया और ये बहुत बड़ी बात है….ब्रेख्त जिंदा होता तो तुम्हारे सर पर हाथ रख कर कहता….. जियो
    ..

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