मणिलाल देसाई की कविताएँ ::
गुजराती से अनुवाद : सावजराज
मैं
तारों में
किसी की टकटकी लगायी आँखें ढूँढूँ
वैसा कवि नहीं हूँ मैं
जाड़े की ठंड से
सिगड़ी सुलगाकर बच जाता हूँ मैं
लेकिन
उस रात के अकेलेपन पर कविता करना
नहीं आया है मुझे अब तक
आपकी ही तरह मैं भी
घड़ी में छह बजता देखकर ही सुबह पाता हूँ
क्षीण होती रातरानी की गंध में
मुझसे सुबह का आगमन भाँपा न गया
किसी के ईंरमीश1ईंरमीश के बहुत सारे अर्थ होते हैं। यहाँ इसे मूल रूप में लिया गया है। ईंरमीश का अर्थ स्वर्ग का वासी भी होता है और इरम के फूल को भी ईंरमीश कहते हैं। सूरजमुखी को भी ईंरमीश कहा जाता है। यह गुजराती शब्द नहीं है, और गुजराती के किसी शब्दकोश में नहीं मिलता। यह सिंधी और फ़ारसी में है, लोकबोलियों में है। मणिलाल देसाई ने शायद इसे किसी लोकभाषा से लिया है। मैंने इस शब्द को हिंदी में वैसे ही रहने दिया है और इसके दो अर्थ ग्रहण किए हैं, एक : प्रकाशित और दूसरा : फूल।—अनुवादक समान प्रेम को
संगमरमर से गढ़ा सकूँ वैसा धनाढ़्य नहीं हूँ
और इसलिए…
इसलिए मैं मणिलाल भगवानजी देसाई हूँ।
समय
समय
सड़क पर पड़े किसी पत्थर पर चिपकी हुई धूल नहीं है
शायद धूप होगा
समय
किसी वृद्ध की हड्डियों में जमी चरबी नहीं है
शायद मौन होगा
समय
किसी सतत चलते-दौड़ते रथ का पहिया नहीं है
शायद अश्व होगा
समय
किसी सूरज या चाँद को डुबाने का ज्वार नहीं है
शायद दरिया होगा
समय
किसी बेज़ार कुएँ के लील पथरे पानी पर सोया अँधेरा नहीं है
शायद कुआँ होगा।
जब आप
जब आप
गंगा के गंदे पानी में आँख बंद करके खड़े रहकर
अपने पिता का श्राद्ध कर रहे होंगे
जब आप
हरिद्वार में पसीने से गंधाते पंडे से
गृह-शांति करवा रहे होंगे
जब आप
दफ़्तर से सत्य-नारायण की कथा की छुट्टी लेकर
फॉरश रोड़ की मशहूर रंडी के साथ सो रहे होंगे
जब आप
कृष्ण को राधा के चीर के तौर पर
चार उंगल भर कपड़े से चूतिया बना रहे होंगे
तब
स्वर्ग में जिसके नाम से सारे देवता डर रहे होंगे
वह चवन्नी छाप ख़ुदा
दाढ़ी करने के बाद फिटकरी लगाते-लगाते
अपने पाप का प्रायश्चित कर रहा होगा।
आप लोग
आप लोग जिसकी पूजा करते हैं वह ईश्वर
पिछली रात को
मंदिर की दीवार में पड़ी दरार में से
भाग निकला है
मंदिर के पीछे वाली कँटीली बाड़ में
उलझकर अटक गया उसका पीताम्बर
अब ध्वजा की तरह फड़फड़ा रहा है।
वह
सुबह
मेरे होंठों पर चुंबन करती है
मुझे लगता है
कि वह होंठों के ज़रिए मेरा सारा रक्त चूस लेगी
संध्या
अपने सख़्त, ऊष्ण स्तन
मेरी खुली छाती पर दबाती है
मुझे लगता है
कि मैं अभी जल जाऊँगा
निशा
कामांध भील-कन्या की तरह
अपनी दोनों जाँघों के बीच
मुझे क़ैद कर लेगी
मेरा जीवन…
पीड़ा, पीड़ा, पीड़ा
मुझे अब जीने के प्रयत्न छोड़ देने चाहिए।
अहमदाबाद
करुणा केवल यहाँ ऊँटों की आँखों में है
मनुष्यों के पास तो आँखें ही नहीं हैं
उबलते डामर की सड़कों पर चल-चलकर
उनकी बुद्धि को मोतियाबिंद हो गया है
और मैं भी इसी अहमदाबाद नगर में बसता हूँ
मेरे आस-पास भी एक हल्की-सी मोतियाबिंदी परत छाने लगी है
निरोझ-क्वालिटी का एयरकंडीशनर भट्ठीयार गली2अहमदाबाद शहर में एक जगह। की साँसें छीनने को प्रयासरत है
और यह भट्ठीयार गली3अहमदाबाद शहर में एक जगह। मणीनगर4अहमदाबाद शहर में एक जगह। की रंडियों की परछाइयाँ सँवारती है
साबरमती नदी की रेत यहाँ के प्रत्येक मार्ग पर पथराई हुई है
जबकि सारे रास्ते बाढ़ के इंतज़ार में हैं
साबरमती आश्रम गांधी ने मछलियाँ पकड़ने हेतु नहीं बनाया था
और न उसे घाट पर नहाने आती अहमदाबादी सुंदरियों के साथ रास-लीला करनी थी
उसे तो साइकिल-रिक्शा चलाते अहमद शाह को ऑटो रिक्शा दिलानी थी
किंतु यह अहमदाबाद बलवंतराय मेहता5गुजरात के एक पूर्व मुख्यमंत्री। की कार के मार्ग पर थूकने से
और इंदुलाल याज्ञिक6एक विद्रोही नेता जिन्होंने महागुजरात आंदोलन चलाया और गुजरात को अलग राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाई। की टोपी में सिर जमाने से ही बाज़ नहीं आ रहा
कल सरखेज7अहमदाबाद शहर में एक जगह। की क़ब्र में से अहमद शाह8गुजरात का एक बादशाह जिसने अहमदाबाद शहर बसाया। का घोड़ा हिनहिनाया था।
कल आदम जब मेरे दरवाज़े पर दस्तक देकर पूछेगा कि मेरी दी उन संवेदनाओं का क्या हुआ?
तब मैं लाल दरवाज़े9अहमदाबाद शहर में एक जगह। पर एक रुपए में बूट-पॉलिश कर देने को सहमत हुए लड़के की उँगली पकड़कर
अहमदाबाद से फ़रार हो जाऊँगा।
मणिलाल देसाई (1939-1966) असमय दिवंगत समादृत गुजराती कवि हैं। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ हिंदी अनुवाद के लिए उनके एकमात्र कविता-संग्रह ‘रानेरी’ से चुनी गई हैं। सावजराज हिंदी कवि और अनुवादक हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : दीवानगी, पिया-बोल और इच्छाएँ