विकास वत्सनाभ की कविताएं ::
मैथिली से अनुवाद और प्रस्तुति : बालमुकुंद

विकास वत्सनाभ समकालीन मैथिली कविता के एक प्रतिभावान और प्रमुख हस्ताक्षर हैं. वह मधुबनी से हैं, पेशे से इंजीनियर हैं और इन दिनों हैदराबाद में रह रहे हैं. गए कुछ सालों में मैथिली काव्य-जगत में अपनी सृजनात्मक सक्रियता की वजह से कविता-प्रेमियों ने उन्हें बेहद सम्मान दिया है. मैथिली की समृद्ध काव्य-परंपरा में उन्हें आज वह स्नेह-अनुराग प्राप्त है, जो कभी मैथिली भाषियों द्वारा बाबा (यात्री-नागार्जुन) को प्राप्त हुआ.

विकास की कविताएं मैथिली कविता के विकास की कविताएं हैं. उनकी कविताओं में जो ताजापन और गहरी भावनात्मकता है, वह अपने अंडरकरंट से पढ़ने वालों को गंभीरता से प्रभावित करती है. इनमें एक विशिष्ट प्रवासीपन और मन है. यहां सामान्य जीवन प्रणाली के विविध चित्र दृष्टिगोचर होते हैं. इनमें जड़ों की ओर वापस लौटने की प्रक्रिया है और एक ऐसी व्याकुलता जो अन्याय और विसंगतियों का प्रतिरोध करते हुए मानवता का पक्ष बनती है.

विकास के पास अपना ग्रामर और सिंटेक्स है. इस वजह से उनके यहां एक अनूठी भाषा और विरल शब्द-संपदा नजर आती है. यहां प्रस्तुत हैं शब्द-संख्या के लिहाज से उनकी सात लघु कविताएं.

vikas jha vikas vatsnabh
विकास वत्सनाभ

उत्सव

कभी पढ़ने की कोशिश की है
अस्पतालों के आगे
गेंदे फूलों की माला बेचते
बच्चों की आंखों की भाषा (?)
मृत्यु भी एक उत्सव होती है.

नवतुरिया

तुम्हारे कंधों पर है मैथिली
अंजुली में है संस्कार
लेकिन मस्तिष्क पर एक बज्रलेप भी है
नहीं संभाल पाओगे ये सब कुछ (?)
अब मैथिल आंख1मैथिल आंख : मिथिला के ऐतिहासिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य को देखने की प्रवृत्ति. से देखो तुम लोग.

जड़

महसूस हुई है उसकी अकुलाहट
जब सारी रात
वह बात करता है दीवारों से
अपनी मातृभाषा में
कितनी गहरे धंसी हुई होती हैं :
स्मृति की जड़ें (?)

कविता

…और क्या कहना था
कुलानंद मिश्र को
क्यों फोड़ डाली यात्री ने सुहाग की पतीली
क्यों खोलते राजकमल टॉवर चौक पर पान की दुकान
क्यों देते हैं हरेकृष्ण झा आग की लपटों में धधकता हुआ चेला
ये सब प्रश्न नहीं हैं, परंपरा है :
मैथिली कविता के ‘विकास की परंपरा’

प्रेम

तुम्हारा प्रतिमान ढूंढ़ते हुए
अपनी कविताओं के पास पहुंचता हूं
शब्द, शिल्प, भाव और भाषा
जैसे प्रथम मिलन में,
तुम्हारी बिंदी, काजल, नेल पॉलिश और आंखें
एक तुम्हीं हो अपना प्रतिमान
मोनालिसा और तुम में अंतर है प्रिय!

व्यवसाय

मंदिरों के गर्भगृह में विराजित हैं स्वर्णमूर्तियां
चौखटों पर हैं दानपात्र
प्रकृतिमय है टेलीविजन का विज्ञापन
टूथपेस्ट में है हवन-सामाग्री
आस्था और व्यवसाय सहोदर हैं अभी.

शिक्षा

मेरी कल्पनाओं में मृत्यु नहीं
यात्राओं का संघर्ष है
जब तक
स्कूल जाते बच्चों के बस्तों तक
नहीं पहुंची है हमारी मातृभाषा.

***

बालमुकुंद मैथिली के ऊर्जावान रचयिता और कार्यकर्ता हैं. वह मैथिली और हिंदी में कविताएं लिखते और अनुवाद करते हैं. पटना में रहते हैं. उनसे mukund787@gmail.com पर और विकास वत्सनाभ से vikash51093@gmail.com पर बात की जा सकती है. कवि की तस्वीर समरजीत के सौजन्य से.

5 Comments

  1. Vijay Kumar Mishra जुलाई 28, 2018 at 12:53 अपराह्न

    बेहतरीन कविता विकास भैय्या और उन्नत अनुवाद बालमुकुन्द भाई का!

    Reply
  2. Mukund kumar जुलाई 28, 2018 at 2:55 अपराह्न

    सुंदर कविता एंव अतिसुन्दर अनुवाद |

    Reply
  3. नित्यानन्द झा अगस्त 14, 2018 at 1:47 अपराह्न

    गजब

    Reply
  4. रौनक ठाकुर अगस्त 14, 2018 at 4:19 अपराह्न

    badhiya

    Reply
  5. कृष्णा मिश्रा नवम्बर 9, 2018 at 2:10 पूर्वाह्न

    भैया लाजवाब

    Reply

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