पैट पार्कर, अड्रिएन रिच और ली मोकोबे की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद और प्रस्तुति : विपिन चौधरी
आज ट्रांसजेंडर समुदाय को ट्रांसजेंडर स्त्रीवाद के रूप में सशक्तीकरण और अपने दैहिक रुझान को लेकर सामाजिक मान्यता मिलने लगी है। उसके संघर्ष का रास्ता काफ़ी कठिन रहा है। इस यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव लेस्बियन कविता भी है। कभी सार्वजनिक मंचों पर सबसे अधिक सक्रिय समलैंगिक कवयित्री पैट पार्कर ने कहा था, “मैं उस क्रांति की प्रतीक्षा कर रही हूँ जिसमें मेरी देह के सभी हिस्से भी शामिल होंगे।’’ आज उनके इसी कथन के समर्थन में संसार भर की स्त्रियाँ प्रयासरत हैं और चाहती हैं कि उन्हें समाज में पूरा सम्मान मिले जिस पर हर व्यक्ति का प्राथमिक अधिकार है।
काफ़ी लंबे संघर्षों के बाद समलैंगिक, उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर समाज के अपने बुद्धिजीवियों का समाज बन सका जिससे समाज की कई नकारात्मक ऊर्जा अपने सकारात्मक रूप में प्रकट हो सकी। ऑड्रे लॉर्ड, अड्रिएन रिच, पैट पार्कर जैसी लेस्बियन कवयित्रियों की प्रखर स्वचेतना ने ही ली मोकोबे जैसे नई पीढ़ी के ट्रांसजेंडर कवियों को वह हिम्मत दी है जिसके बूते वे जेंडर आइडेंटिटी की तयशुदा परिभाषा को ख़ारिज करते हुए अपनी मनचाही परिभाषा का विकास कर सके हैं।
विल्लिस के लिए
पैट पार्कर
जब मैं करती हूँ तुमसे प्रेम
कोशिश करती हूँ
अपनी जीभ के हर प्रहार के साथ कहना
करती हूँ मैं तुमसे प्रेम
चिढ़ाते हुए
कि करती हूँ तुमसे प्रेम
परास्त करने के लिए
करती हूँ तुमसे प्रेम
तुम्हें द्रवित करने के लिए
करती हूँ तुम्हें प्रेम
और तुम्हारी आवाज़ डूबने लगती है
हे ईश्वर,
हे प्रभु!
और यहाँ पर सोचती हूँ मैं
फिर से यहाँ पर किसी पुरुष को मिल रहा है श्रेय
उसका किया है जो एक स्त्री ने
इक्कीस प्रेम कविताएँ
फ़्लोटिंग कविता, बिना पढ़े हुए
अड्रिएन रिच
घटता है जो कुछ हमारे साथ
तुम्हारी देह मेरी कोमल, नाज़ुक, देह को रहती है याद
तुम्हारा प्यार
जैसे सूरज से अभी-अभी धुले जंगलों में ताज़े, घुँघराले सेवन-योग्य
फ़र्न के आधे घुमावदार तालपत्र
यात्रानुभवी, उदार तुम्हारी जाँघे—मासूमियत और ज्ञान की जगह
रहती है जहाँ मेरी जीभ
बीच जिसके समाया मेरा समूचा चेहरा आता बारंबार
सजीव,
तुम्हारे स्तनाग्र का मेरे मुँह-भीतर नृत्य
मुझ पर तुम्हारा मज़बूत, सरपरस्त, खोजी स्पर्श
खींच लाती है मुझे बाहर,
तुम्हारी मज़बूत जीभ और पतली उँगलियाँ
पहुँचकर वर्षों से मैं कर रही थी
तुम्हारी गुलाब-गीली गुफा का इंतजार कर रही थी—
घटता है जो कुछ यहाँ
यही है
कैसा लगता है ट्रांसजेंडर होने पर
ली मोकोबे
काँच के बने एक गिरजाघर में की थी
मैंने प्रार्थना पहली बार
सारी सभा मंडली अपने पाँवों पर थी
हुजूम के अपने पाँवों पर टिके रहने के बाद भी
बहुत देर तक अपने घुटनों के बल बैठा रहा मैं
पवित्र जल में डुबोए अपने दोनों हाथ,
बनाया क्रॉस सीने पर
लकड़ी की समूची बेंच पर
एक सवालिया निशान की तरह
झूल रही थी मेरी नन्ही-सी देह
यीशु से कहा मैंने ख़ुद को स्थिर करने के लिए
और जब नहीं दिया उसने कोई जवाब
चुप्पी को बनाया मैंने अपना दोस्त इस उम्मीद से
कि झुलस जाएँगे मेरे पाप
और मेरे मुँह का लेप चीनी की तरह घुल जाएगा मेरे मुँह के भीतर
लेकिन शर्म ठहरी रही उतर गए स्वाद की तरह
और पवित्रता से दुबारा मेरा परिचय करवाने के लिए
मेरी माँ ने मेरे चमत्कार के बारे में बताया,
कहा उसने मैं जो चाहूँ बन सकता हूँ
मैंने लड़का बनने का फ़ैसला किया
बहुत प्यारा लड़का था वह
मेरे पास थी बेसबॉल की एक टोपी और दंतविहीन मुस्कराहट
घुटनों की चमड़ी को
मैं सड़क की लोकप्रिय शैली के रूप में करता था इस्तेमाल
मेरे निशाने से बच जाता था वह
जब खेलता था मैं उससे लुका-छिपी
मैं बनता था उस खेल का विजेता
खेल नहीं सकते हैं जिसे दूसरे बच्चे
देह-रचना का रहस्य था
पूछे गए सवाल का अनुत्तरित जवाब
अनाड़ी युवक और क्षमायाचक युवती के बीच तनी हुई रस्सी-सा
और जब हुआ मैं बारह साल का,
नहीं मानी गई मेरी उम्र कुछ प्यारी
मिला मैं उन उदासीन चाचियों से,
वंचित रह गई थीं जो मुझे घुटनों तक की स्कर्ट की छाया में देखने से
जिन्होंने याद दिलाया मुझे कि
मेरे ऐसे रवैए के चलते नहीं मिल पाएगा मुझे पति का घर
कि मेरा अस्तित्व विषमलैंगिक विवाह और बच्चे पैदा करने से ही है
और मैंने इस अपमान और अपवाद को
उनकी उपेक्षा के साथ निगल लिया
स्वाभाविक ही था—
अपने कमरे से नहीं निकला बाहर मैं
मेरे स्कूल के बच्चों ने मेरी इजाज़त के बिना खोल डाला मेरा कमरा
पुकारा मुझे ऐसे नाम से जिससे नहीं था परिचित मैं
उन्होंने कहा मुझे—‘समलैंगिक’,
मैं मगर लड़की से अधिक लड़का था,
बार्बी से ज़्यादा केन
अपने शरीर से घृणा करने का नहीं था
इससे कोई लेना-देना
बस मुझे इसका ऐसा हो जाना है काफ़ी पसंद
घर जैसा मानता हूँ मैं अपनी देह को
और जब आपका घर गिर रहा हो,
मत करो इसे ख़ाली
आपको इसे पूरी
तरह से आरामदेह बनाना है—
अपने सभी आग्रहों को जगह देने के लिए
अपने मेहमानों को आमंत्रित करने के लिए
इसे बनाना है अधिक सुंदर
खड़े होने के लिए फ़र्श के तख़्तों को बनाना है बेहद मज़बूत
मेरी माँ डरती है कि
धुँधलाती चीज़ों के बाद ख़ुद को नाम देता हूँ मैं
कि वह गिनती है—
म्या हॉल, लीला अल्कोर्न, ब्लेक ब्रॉकिंगटन की पीछे छूटी हुई अनुगूँजें
डरती है माँ कि मर जाऊँगा मैं कभी—
बिना किसी फुसफुसाहट
कि बस स्टॉप पर मैं ‘कितनी शर्म की बात है’ वाली बातचीत में बदल जाऊँगा
मैं दावे के साथ कहता हूँ कि
ख़ुद को तब्दील कर लिया है मैंने एक मक़बरे में
कि मैं एक चलने वाली शव-पेटिका हूँ
समाचार की सुर्ख़ियों ने मेरी पहचान को एक तमाशे में तब्दील कर दिया है
ब्रूस जेनर हर किसी के होंठों पर है
जबकि इस शरीर में रहने की क्रूरता
समानता दर्शाने वाले पन्नों के नीचे चिह्नित हैं
कोई हमें भी सोचता इंसान के रूप में
क्योंकि हम मांस से अधिक प्रतिछाया हैं,
क्योंकि लोगों को डर है कि मेरी लिंग-अभिव्यक्ति एक छल है
यह विकारग्रस्त होने के लिए ही है अस्तित्व में
यह फुसलाती है उन्हें बिना उनकी अनुमति के
कि उनकी आँखों और हाथों के लिए मेरी देह एक पर्व है
और एक रोज़ वे तंग आ गए थे मेरी विलक्षणता से
वे मेरे सभी भागों को उगल देंगे—जो नहीं हैं उन्हें पसंद
वे वापस दूसरे कंकालों के साथ लटका देते हैं मुझे कोठरी में
मैं ही होऊँगा सबसे बढ़िया आकर्षण
क्या आप देख सकते हैं कि
कितना आसान है ताबूतों के भीतर करना बातें
समाधि के ऊपर रखे नामों का करना ग़लत उच्चारण
और लोग आश्चर्यचकित हैं अभी भी कि
यहाँ लड़के क्यों सड़ रहे हैं
चले जाते हैं वे हाईस्कूल की दालानों में
एक पल में वे दूसरा हैशटैग बनने से डरते हैं
डरते हैं कि कक्षा की चर्चाओं जैसे निर्णायक दिवस न बन जाएँ
और अब आने वाला बोझ माता-पिता की तुलना में
ट्रांसजेंडर बच्चों के गले पड़ता है
आश्चर्य होता है मुझे कि रहेगा कब तलक ऐसा
इससे पहले कि ट्रांस की आत्महत्या से पहले नोट्स लगने लगे निरर्थक
इससे पहले कि हम महसूस करें कि हमारी देह हो जाएगी—
पाप की राह का सबक़
इससे पहले कि हम यह जानें कि अपनी देह से कैसे किया जाए प्रेम
जैसे यीशु नहीं बचाएगा इन सभी साँसों और रहमत को
मेरा ख़ून उस शराब की तरह नहीं है
जिससे धोए जाते थे यीशु के पाँव
मेरी प्रार्थना अटक रही है अब गले में मेरे
आख़िरकार शायद मैं हो गया हूँ जड़
बस शायद मुझे नहीं है कोई परवाह
शायद आख़िरकार सुन ली है
यीशु ने प्रार्थना मेरी!
विपिन चौधरी सुपरिचित हिंदी कवयित्री-लेखिका और अनुवादक हैं। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के क्वियर अंक में पूर्व-प्रकाशित। इस प्रस्तुति की फ़ीचर्ड इमेज : Zanele Muholi