कविताएँ ::
सुनीति नामजोशी

Suniti Namjoshi at the Bowring Institute in Bangalore. Photo : Aniruddha Chowdhury/Mint

जैसे ही घूमती है पहली पत्ती

जैसे ही घूमती है पहली पत्ती
घास-झुरमुट बुदबुदाता है :
‘मैं झुकता हूँ, लेकिन टूटता नहीं हूँ।’
क़दम
नीचे आते जाते हैं।

कामुक घास की पत्तियाँ
अभियान चलाती हैं
कि उनका अस्तित्व काँच का बने
और पाँव
बिना जूतों की यात्राएँ करें
लोग बिफर जाते हैं—
क्यों चोटिल हों!

चीड़ के पेड़ बूझते हैं,
‘पैर प्रासंगिक नहीं’।

स्नो वाइट और रोज़ ग्रीन

एक समय की बात है : जब दो बहनें थीं। एक की शादी हो गई और दूसरी की नहीं। या एक बार दो घेंटें (सूअर के बच्चे) थे। एक बाज़ार चला गया और दूसरा नहीं। या एक स्ट्रेट था और एक नहीं। बात यह कि जो भी कर सकने में वे सक्षम-असक्षम हुए, वे अपनी माँ के लिए निराशा साबित हुए। अच्छी बात यह कि दोनों बहनें एक दूसरे से प्रेम करती थीं। जब उन्होंने देखा कि माँ दिन-ब-दिन और निराश होती जा रही थी, उन्होंने प्रस्ताव रखा कि वह उन्हें बीच-बीच से काट ले और दो अच्छे हिस्सों को जोड़कर एक संपूर्ण या कुछ शानदार-सा बना लें। ग़ज़ब रोष में भी माँ ने मना कर दिया, पर बेटियाँ इतनी दुःखी थीं कि वे सर्जन के पास चली गईं।

सर्जन ने कृपा कर उन्हें बीच से काट दिया, फिर आधे-आधे हिस्से बदले और उन्हें एक-एक में जोड़ दिया। लेकिन अब भी ये दो बहनें ही थीं। यह एक समस्या थी। इसीलिए वे घर आए और माँ से कहा, “अब अच्छा वाला चुन लो।’’ लेकिन माँ ग़ुस्से में थी कि उन्होंने ऐसी किसी स्कीम के बारे में सोच भी कैसे लिया। “ऐसा तुमने मेरा मज़ाक़ उड़ाने के लिए किया,” ग़ुस्से से माँ ने कहा। “तुम दोनों गंदे बच्चे हो।” जब दोनों बहनों ने माँ को यह कहते हुए सुना… अच्छी वाली रोई, लेकिन बुरी वाली ने दाँत निपोड़ लिए।

ऊँचाइयाँ

“और फिर, बिल्कुल”
वह कह रही थी,
“हम इतने महान पले
कि अब हम सपने देखते हैं
जो केवल मुमकिन हैं”

कवि होना

ऐसा कहना कि यह ऐसा महसूस हुआ था
मानो दाहिना क़दम आगे बढ़ाना, फिर बाँया, कहते हुए
कि यह नाश्ते के दलिए का स्वाद है,
दूध का, और यह दूसरा टुच्चे
लेकिन आग्रही एक पीड़ा का, कहते हुए
कि मैं मानती हूँ, क्या वह जो ख़ास था—
मेरा मुँह बंद रखने में असमर्थ हुआ,
मेरा दिमाग़ चलने से रोकने में।
लेकिन एक कवि जीता है
किसी भी दूसरे प्राणी की तरह, बोलता है शायद
साधारण से ज़्यादा, उसकी क़यामत कोई चमकती चीज़ नहीं,
न उसकी मौत किसी दूसरे की मौत से कम दारुण।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : रिया रागिनी

शगुन की एक शीर्षकहीन कृति

मैं उसे गुलाब देती हूँ

मैं उसे गुलाब देती हूँ,
जिसकी पंखुड़ियाँ खुली हुई हैं
वह मुस्कुराती है
और अपनी एक टाँग दूसरी पर चढ़ा लेती है
मैं उसे सूजे होंठों वाला एक घोंघा देती हूँ
वह हँसती है।

मैं उसके स्तनों पर काट लेती हूँ,
उनमें धँसा देती हूँ अपने नथुने।
मैं उससे कहती हूँ—
फूलों को मेरी तरफ़ बढ़ाओ
बिल्कुल खुले हुए मुखों से
और एकदम आहिस्ते,
वह मेरा सिर नीचे करती है।

सोया हुआ मूर्ख

एक स्वप्नद्रष्टा पुरुष अपने सपनों से पीछा छुड़ाता है
अपनी पत्थर की दुल्हन को उस नदी के पास टिका रखता है
जहाँ वह नहाता है, धोता है और डेज़ी के फूल इकट्ठे करता है।

उसकी औरत इससे इनकार कर देती है,
उस आदमी को संतोष नहीं होता।

वह दौड़ता है, भागता है, कूदता है और चिल्लाता है
वह अपने छंदों का पाठ करता है; किंतु,
उसकी औरत पूरी तरह चुप रहती है—शालीन और शांत।

वह चीख़ता है, ‘‘क्या चाहती हो तुम?’’
‘‘वही जो तुम नहीं दोगे :
होना, होने की परछाई भर नहीं
स्वप्नद्रष्टा होना, केवल स्वप्न भर होना नहीं।’’

ऊँचाई

हाँ, बिल्कुल ऐसा ही है
वह कह रही थी :
हम सब इतनी ऊँचाई पर पहुँच चुके हैं
कि अब हम सपना देखते हैं
सिर्फ़ संभव चीज़ों का।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अखिलेश सिंह


सुनीति नामजोशी का जन्म मुंबई (बॉम्बे), भारत में 1941 में हुआ और मॉन्ट्रियल (कनाडा) में बसने से पहले वह भारतीय सिविल सर्विसेज और एकेडेमिया में कई पदों पर रहीं। वह अपनी कविताओं, कथाओं और चिल्ड्रेन बुक्स के लिए जानी जाती हैं। इन दिनों वह इंग्लैंड के डेवोन शहर में रहती हैं। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के क्वियर अंक में पूर्व-प्रकाशित। अनुवादकों से परिचय के लिए यहाँ देखें : रिया रागिनीअखिलेश सिंह

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