सलमा की कविताएँ ::
अनुवाद : जे सुशील
देखना
मैं उलटी खड़ी होकर
बालों में कंघी करती हूँ।
मैं टेढ़ी-मेढ़ी होकर
खाना बनाती हूँ,
तो खाती भी वैसे ही हूँ।
मैं सिर के बल पालथी मारती हूँ
बच्चे को दूध पिलाने के लिए,
एड़ियाँ ऊपर करके
मैं अपनी किताबें पढ़ती हूँ।
ऊपर से नीचे,
मैं ख़ुद को देखती हूँ।
डरे, सहमे और मुझे घूरते हुए देखती हूँ
एक चमगादड़,
जो बग़ीचे के एक पेड़ पर
पका हुआ-सा लटका है।
यह शाम
हर वक़्त की बनिस्पत,
यह शाम इतनी भारी क्यों है?
यह शाम—
मानो सैनिटरी पैड
पर मेरे मासिक धर्म की नमी का बोझ हो।
दहशत
फिर से, मैं देखती हूँ ख़ुद को
आईने में।
मेरी काया बिल्कुल ऐसी नहीं
जिससे दहशत पैदा हो
उनमें जो मेरे आस-पास हैं।
यह वह नहीं है, जिससे सभी को, ज़रूर डरना चाहिए।
ऐसा कुछ नहीं है जिससे तुम बेचैन हो जाओ
टेलीकॉन पर अपनी दोस्त से मेरी बातचीत देखकर।
मेरे हाथ नहीं हैं,
फिर भी तुम आश्वस्त नहीं हो।
जब मैं सोती हूँ,
तुम डर से जगे रहते हो।
मेरे हिलने-डुलने से भी
घबरा जाते हो तुम;
तुम्हारी लोहे की काया पिघल जाती है।
अब तक,
मुझे हराए रखा है
तुम्हारी ताक़त ने नहीं,
तुम्हारी दहशत ने।
बुराई
शहर की सड़कें
जहाँ दग़ाबाज़ी पसरी है।
बस के भीतर बहती गरमी।
पसीने से तरबतर देहों के बीच
एक लिंग मेरी तरफ़ है
बुराई की तरह
अंकुरित होता, फूलता हुआ
कहीं पर।
आज रात
आज की रात,
मेरी उँगलियों पर गिरे
चाक़ू से फैलते
ख़ून की गंध
खोज रही है
मेरी यादों की पगडंडियों में छुपी
थका देने वाले
सेक्स की बदबू।
सलमा (जन्म : 1968) समकालीन तमिल कविता की सुपरिचित हस्ताक्षर हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविताएँ मूल तमिल से रिज़ियो योहानन्न राज कृत अँग्रेज़ी अनुवाद पर आधृत हैं और ‘सदानीरा’ के बहुभाषिकता अंक में पूर्व-प्रकाशित हैं। जे सुशील से परिचय के लिए यहाँ देखें : ‘भक्ति अपने आपमें एक कलेक्टिव अवधारणा है’