शक्ति चट्टोपाध्याय की कविताएँ ::
बांग्ला से अनुवाद : रोहित प्रसाद पथिक

तुम्हारा हाथ
तुम्हारा हाथ पकड़ा था
इसलिए नहीं जान पाया
इस देश में रहकर बोलते हैं
शांति, शांति, शांति…
तुम्हारा हाथ पकड़ा था
इसलिए नहीं जान पाया
सफलता की लंबी सीढ़ियों के नीचे हैं
बहुत सारी—
भूलें-भ्रांतियाँ
कुछ जान नहीं पाया हूँ आज
कल तक जो जानता था
क्या दोनों के बीच घुला-मिला रहता था
हमारा दुःख
दोनों व्यक्ति
दोनों हाथों से
एक दूसरे को
जोड़े रहते थे
क्या इसलिए थी हममें शांति?
तुम्हारा हाथ पकड़ा था
इसलिए तो नहीं जान पाया!
ठीक ही
कुछ दिन समय था
कष्ट के समय को तोड़ने के लिए
कुछ गढ़ना है
गढ़ना-तोड़ना है
क्या इसी का नाम है शौर्य?
क्या यह
अवचेतन के देश में एक संक्रांति है?
तुम्हारा हाथ पकड़ा था
इसलिए जान नहीं पाया।
नदी के सामने हरा पेड़
दुःखी है वह
पास के हरे पेड़ की तरह
दुःखी है वह
आलोक के नज़दीक
किसी छाया की तरह
दुःखी है वह
दुःखी है वह
जैसे कुछ बोलता वह आया
ऐसे में
सुख की आँधी आई
सच में काँटा उड़ ही गया
उड़ गई धूल
उड़ गए पड़े केश
होंठ से बज उठी बाँसुरी
उस दुःख के चेहरे पर
चमक उठी सुख की हँसी
नदी के पास हरे पेड़ पर
क्या कोई फूल प्रस्फुटित हुआ
लंबे समय बाद…?
अवनी घर पर हो!
अवनी घर पर हो?
अवनी घर पर हो?
आँगन पर से
घूम आया हूँ पूरा मुहल्ला
केवल सुनता हूँ रात्रि का शोर—
‘अवनी घर पर हो?’
यहाँ पर वर्ष भर वर्षा होती है
यहाँ पर मेघ गंभीरता से चलते हैं
पराङ्मुख हरी-भरी घास
आँगन पर खड़ा होकर कहता हूँ—
‘अवनी घर पर हो?’
अर्धलीन हृदय जो कि है दूरगामी
दर्द के मध्य सो जाता हूँ
तभी हठात्
सुनता हूँ रात्रि का शोर—
‘अवनी घर पर हो?’
एक बार तुम
एक बार तुम भी प्रेम करने की कोशिश करो—
देखना, नदी के भीतर
मछलियों के हृदय से पत्थर झड़ने लगेंगे।
पत्थर, पत्थर, पत्थर
और नदी और समुद्र का जल
नीले पत्थर लाल हो गए हैं
लाल पत्थर नीले
एक बार तुम भी प्रेम करने की कोशिश करो।
हृदय के भीतर कुछ पत्थरों का होना अच्छा है
ध्वनि करने पर प्रतिध्वनि मिलती है
संपूर्ण क़दमों से चलने पर
जब सारे रास्ते पीछे छूट जाते
तब वही पत्थरों के कण
एक के बाद एक पीछे होते हैं
जैसे कविता का नग्न व्यवहार, जैसे लहरें
जैसे कुम्हार टोली की सलमा द्वारा लीपी गई मूर्ति
बहुत दूर हेमंत के पशुओं के क्षेत्र के
दरवाज़े तक देखकर आ सकता हूँ
हृदय के भीतर कुछ पत्थरों का होना अच्छा है।
चिट्ठी-पत्री के बॉक्स बोलने से कुछ भी तात्पर्य नहीं
पत्थरों की दरारों के मध्य रख आने पर काम संभव है।
बहुत समय तो घर बनाने को मन चाहता है
मछलियों के हृदय के पत्थर क्रम से
हम लोगों के हृदय के पास जगह बना लेते हैं
हम लोगों को सब कुछ की आवश्यकता है
हमें घर तैयार करना है
सत्य के स्थायी स्तंभ को धर पकड़ना है
रूपोली माछ के पत्थर झड़ते चले जाएँगे
एक बार तुम भी प्रेम करने की कोशिश करो।
अँधेरे में
अँधेरे में
हाथों में है हाथ
कौन है जिसने पकड़ा अकस्मात्
कौन है?
बातें करो
मुझसे बातें करो!
कोई शब्द नहीं
शब्द नहीं
कोई शब्द नहीं
निःशब्द हूँ।
कविताओं की रूई उड़ती है
कविताओं की रूई उड़ती है
सारी रात मन के भीतर
हवा भी लगती है खिलते हुए।
भोले-भाले बच्चे
एक खेल छोड़ देते हैं
वह नया ऊपर की ओर खिलौना
समर्पित करता है सब
अश्रु, हँसी, स्वप्न और परिश्रम।
कविताओं की रूई उड़ती है
सारी रात मन के भीतर।
तब क्या उड़ते नहीं?
बच्चे स्पर्श करते रहते हैं
माटी की वास्तविकता…
किंतु यह कैसे होगा?
वह तो नाख़ूनों से
रूई से भरे तकिये को नोचता है।
क्यों
क्यों असमय जाओगी?
समय होने दो
तोड़कर जाओ सभी संबंध।
जैसे पेड़ों से लताएँ गई हैं टूट
एक विषाद से भरा मनुष्य
रहता है हमेशा हास्यमय भीड़ में।
क्यों असमय जाओगी?
समय होने दो
तोड़कर जाओ सभी संबंध।
उसके पास
यह पथ पश्चिम में गया है
वह पथ पूर्व की ओर
तुम किस पथ से
द्वार पर पहुँचोगे?
सोचकर रखो—
जहाँ भी रहो
तुम्हें उसके पास
जाना ही होगा।
शक्ति चट्टोपाध्याय (1934-1995) समादृत भारतीय कवि हैं। वह बांग्ला साहित्य के भूखी पीढ़ी आंदोलन के नेता माने जाते हैं। उन्होंने वर्ष 1961 में एक घोषणापत्र के ज़रिए कोलकाता को आश्चर्यचकित कर दिया था। अपने जीवनकाल में उन्होंने 34 काव्य-ग्रंथ प्रकाशित करवाए। शांतिनिकेतन में आधुनिकता की शिक्षा देते हुए 23 मार्च 1995 को उनकी मृत्यु हुई। मरणोपरांत उनकी बहुत सारी अप्रकाशित कविताओं को उनके मित्र समीर सेनगुप्ता ने संपादित-संकलित किया। 1983 में ‘जेते पारि किंतु केनो जाबो’ काव्य-ग्रंथ के लिए उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ़ से उन्हें आनंद पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ बांग्ला से हिंदी में अनुवाद के लिए ‘शक्ति चट्टोपाध्याय की श्रेष्ठ कविताएँ’ से चयनित हैं। रोहित प्रसाद पथिक से परिचय के लिए यहाँ देखें : पानी के भीतर कितने मुक्तिपथ हैं | सब सबसे अपरिचित हैं | शैतान तुझे नर्क भेजने पर मैं बचूँगा