तुर्गुत उयार की कविताएं ::
तुर्की से अनुवाद : निशांत कौशिक

turgut uyar poet
तुर्गुत उयार

आसमान देखने का ठिकाना

हम पल भर में पा सकते हैं ख़ुशी
इन भागती किरणों से
लहलहाते ऊख से
बच्चों के दुधमुंहे दांतों से
सूरज से
घास की छाजन से
तो आओ देखें आसमान को

पल भर की भी देर किए बग़ैर
ख़र्च होती मेरी इन नज़रों को अपने पास महफूज़ रख लो
हरेक पुकार से ठिठक जाने वाले इन हाथों को थाम लो
इस इमारत को लांघो
उन इमारतों को भी
और उन्हें भी
चलो देखें आसमान को

फलां-फलां कोई स्टॉप चलते हैं
चलो देखें आसमान को
‘यहां बस स्टॉप है’ कहने पर
रुकेगी एक बस
और हम उसमें बैठ जाएंगे
रात की यह तीरगी कमाल है, आफ़रीन ख़ुदा!
सो गए सब, सोने दो सभी को
चोर-पुलिस, अमीर-मुफ़लिस
सोने दो सभी को
सिवाय एक तुम्हारे और एक मेरे
जब सब नामौजूद हैं, तो हमें ही मौजूद होना है
मदहोश फिरेंगे यहां-वहां, चूमते फिरेंगे एक दूजे को सड़कों पर
मुझ पर से हटाओ ये नज़रें, चलो देखें आसमान को

नहीं जानता मैं
तुम्हारे इन हाथों में क्या है
थामने भर से मज़बूत हो जाता हूं
भरता चला जाता है कुछ भीतर-भीतर
ये क़दीम ज़माने की तुम्हारी आंखें
तन्हा हैं, दरख़्त-सी हैं
राह तकता था जिसकी वह वक़्त भी आन पड़ा
सो तुम्हें ले आया हूं या इन ख़ौफ़नाक राहों में
तुम्हारे अनगिनत दरीचों को
मैंने एक-एक कर बंद किया
ताकि लौट सको मेरी ओर
बंद कर डाले सारे झरोखे
बस आती ही होगी
हम चढ़ेंगे उसमें और चल पड़ेंगे
वहां, जहां से लौटना न हो
ठहरना अब मुश्किल होगा
न कोई चारा, न कोई सहारे
काफ़ी हैं साथ में
हाथ मेरे, हाथ तुम्हारे
तुम्हें ख़ुद के लिए बचा लिया है मैंने
रुको मत, याद दिलाती रहो ख़ुद को
रुको मत, याद दिलाती रहो ख़ुद को
रुको मत, चलो देखें आसमान को

एक ख़ुदकुश शाम की अफ़वाह

थोड़ा थक चुकी एक शाम
हरेक चेहरे से हर रोज़ टकरा कर
थक चुकी एक शाम
अस्पतालों में
किसी साहब-सा बर्ताव हुआ मेरे साथ
और ख़ुदकुशी की अफ़वाह
साहिल-साहिल फैल गई
छोटी-सी एक शाम

ज़रा-सी सर्द एक शाम
घोड़ों संग तितलियों की दौड़ में
थक चुकी एक शाम
डाकघर में मुहरबंद हो चुके सब ख़त
चौपालों पर चंद गीत गुनगुनाए गए
एक आदमी, एक औरत का दरवाज़ा पीटता रहा
छोटी-सी एक शाम

जिसका ज़िक्र करूं
बहादुराना लगता है
भीतर थोड़ा-बहुत घुल-मिल चुके
एक बादल और एक काग़ज़ी रूमाल के दरमियान
थोड़ा थक चुकी एक शाम
क्या करूं, कहां छोड़ दूं अपनी अफ़सुर्दगी?
एक तरफ़ पेड़ू में मेरे जमा है ताक़त अथाह
और दूसरी तरफ़
थक चुकी यह शाम

हर शै भुलाई जा चुकी थी
इस बीच
पागलों-सा चिपटाए हुए अपनी छाती से
गोली खाए एक ज़ख़्मी तेंदुए वाली
छोटी-सी एक शाम

कौन मिला है सच से
मेरे जिए हुए अनंत पर
चौपाल जमी, चर्चा हुई
छंद-बहर से कसे वाक्य
ख़र्च हुए उदासी पर
छोटी-सी एक शाम
जो भी काम लिया
झिझक में किया तमाम

कौन मिला है सच से
जल-तराज़ू का तंग पैमाना
फ़ोटोग्राफ़ खींचे गए
जश्न हुए, मैं नहीं गया
छोटी-सी एक शाम
इतनी छोटी
कि एक शाम
अपने चेहरे को मैंने
पानी पर पड़ा हुआ पाया
साहिल तो होते ही इसीलिए हैं

थोड़ा थक चुकी एक शाम
हल्की सर्द एक शाम

***

तुर्गुत उयार (4 अगस्त 1927 – 22 अगस्त 1985) बीसवीं सदी की तुर्की कविता में ‘द्वितीय नववादी’ आंदोलन के हिरावल थे. उनकी कविताएं वितृष्णा, उदासी, शहर से अलगाव, ऊब, आत्महत्या के इर्द-गिर्द घूमती हैं. तुर्गुत उयार अपनी एक कविता ‘आसमान देखने का ठिकाना’ से मक़बूल हुए और इतना हुए कि उनकी यही कविता इस्तांबुल के प्रसिद्ध गेज़ी पार्क आंदोलन में एक प्रोटेस्ट कविता बन उठी और हर ज़ुबान पर चढ़ गई. वह फ़ैज़, नाज़िम हिकमत या नेरुदा की तरह प्रेमिका को सामाजिक यथार्थ से परिचित कराते हुए आंदोलन में चले आने का निमंत्रण नहीं देते. वह ‘आसमान देखने का ठिकाना’ ढूंढ़ते हैं और शहर को, इमारतों को लांघते हुए उस ठिकाने तक पहुंचना चाहते हैं. उनके लिए यह पलायन नहीं मुक्ति है. यहां प्रस्तुत कविताएं तुर्गुत उयार के कविता-समग्र Buyuk Saat से ली गई हैं।
निशांत कौशिक जामिया मिल्लिया इस्लामिया से तुर्की भाषा में स्नातक हैं. फिलहाल पुणे में एक कंपनी में अस्थायी रूप से कार्यरत हैं. वह भाषा-विज्ञान में गैर अकादमिक पढ़ाई कर रहे हैं और उसमें ही भविष्य ढूंढ़ रहे हैं. तुर्की से उनके अनुवाद में जमाल सुरैया की कविताएं ‘सदानीरा’ के 19वें अंक में जल्द पढ़ी जा सकेंगी. उनसे kaushiknishant2@gmail.com पर बात की जा सकती है.

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