रवींद्रनाथ टैगोर के कुछ उद्धरण और चित्र ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद और चयन : गार्गी मिश्र
‘स्मृतियाँ’ एक अदृष्ट कलाकार की मूल कृतियाँ हैं।
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यदि स्मृतियों में बनी छवियों को हम शब्दों का रूप दे सकें तो वे साहित्य में एक स्थान पाने योग्य हैं।
एक आँसू या एक मुस्कान की तरह, कविता उसकी छवि है जो भीतर घट रहा है।
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बारिश होती है और पत्तियाँ काँपती हैं।1रवींद्रनाथ टैगोर के द्वारा लिखी गई प्रथम काव्य-पंक्ति।
कविता सुनने के बाद जब कोई यह कहता है कि उसे वह समझ नहीं आई तो मैं आश्चर्यचकित रह जाता हूँ। यदि एक फूल को सूँघकर कोई मनुष्य यह कहे कि उसे वह समझ नहीं आया, तो मेरा यही उत्तर होगा—यहाँ समझने को कुछ भी नहीं है। वह सिर्फ़ एक सुगंध है। फिर भी यदि वह कहे, “मुझे मालूम है, लेकिन इसका अर्थ क्या है?’’ तब किसी एक को संवाद का विषय बदलना होगा या फिर उसके अर्थ अव्यक्त करते हुए मैं कहूँगा, ”सुगंध सार्वभौमिक आनंद का आकार है जो कि एक फूल में उपस्थित है।”
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मेरा मानना है कि प्यार और सम्मान करने की क्षमता, मनुष्य को दिया हुआ ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है।
किसी भी वस्तु का सही तरीक़े से उपयोग करना सीखने का एकमात्र तरीक़ा उसके दुरुपयोग से है।
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होश में या अनजाने में मैंने ऐसे कई काम किए होंगे जो असत्य थे। लेकिन मैंने अपनी कविता में कभी भी कुछ भी असत्य नहीं कहा। यह वह अभयारण्य है, जहाँ मेरे जीवन के सबसे गहरे सत्य शरण पाते हैं।
जिसकी शुरुआत नहीं हुई हो, उसे ऐसा प्रतीत हो सकता है कि एक फूल अचानक आ गया है। बीज से उसकी यात्रा की कथा अज्ञात बनी हुई है। मेरी कविता का भी यही सच है। ऐसा मेरा अनुभव है।
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अंतिम परिणाम मात्र एक घटना है। यह स्वयं के भीतर का निर्माता है जो निरंतरता और दृढ़ता से भविष्य के आगमन को तैयार कर रहा है, बिना अंत को जाने; किंतु व्यापकता के लिए एक शाश्वत अर्थ लिए। बाँसुरी-वादक और उसकी बाँसुरी की तरह। वह धुन पैदा तो करता है, लेकिन संगीत एक चिरस्थायी संगीतकार की अभिरक्षा में है।
जैसे-जैसे लोग उम्रदराज़ होते जाते हैं, वे अपने विश्वास को खोना शुरू कर देते हैं। और तब ही वे कोई नया और साहसिक कार्य करने से कतराने लगते हैं।
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जैसे अँधेरे में घिरा एक तरुण पौधा प्रकाश में आने को अपने अँगूठों से उचकता है। उसी तरह जब मृत्यु एकाएक आत्मा पर नकार का अँधेरा डालती है तो यह आत्मा रौशनी में उठने की कोशिश करती है। किस दुःख की तुलना इस अवस्था से की जा सकती है, जिसमें अँधेरा अँधेरे से बाहर निकलने का रास्ता रोकता है।
स्वयं को जानना सरल नहीं है। कठिन है जीवन के अनगिनत अनुभवों को एक संपूर्णता में एकीकृत करना। यदि ईश्वर ने मुझे लंबी आयु न दी होती, यदि उसने मुझे सत्तर वर्ष की आयु तक पहुँचने की अनुमति न दी होती तो बहुत दुर्लभता से मुझे मेरी आत्म-छवि दिखती। मैंने अपने जीवन के होने का अर्थ अलग-अलग समयों में विभिन्न कार्यकलापों और अनुभवों से स्थापित किया है। अपने बारे में एकमात्र निष्कर्ष जो मैं निकाल पाया हूँ वह यह है—मैं एक कवि हूँ, और कुछ भी नहीं। कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मैंने अपने जीवन के साथ और क्या किया।
रवींद्रनाथ टैगोर (7 मई 1861–7 अगस्त 1941) प्रसिद्ध भारतीय-बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार हैं। गुरुदेव कहकर पुकारे जाने वाले रवींद्रनाथ विश्व के एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं। अपने प्रकृति-प्रेम के लिए विश्वविख्यात गुरुदेव की सबसे लोकप्रिय रचना ‘गीतांजलि’ है, जिसके लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यहाँ प्रस्तुत उद्धरण हिंदी अनुवाद के लिए उनकी आत्मकथात्मक पुस्तक My life in my words से चुने गए हैं। गार्गी मिश्र कविता और कला के संसार से संबद्ध हैं। उनकी अभिरुचियाँ व्यापक हैं, अनुवाद-कार्य भी इस व्यापकता का ही एक अंश है। वह बनारस में रहती हैं। उनसे gargigautam07@gmail.com पर बात की जा सकती है।