चिट्ठियाँ ::
पियर बेरजे

पियर बेरजे और ईव सांलौरा

ईव के नाम पत्र
पियर बेरजे, ईव सांलौरा को

21 मार्च 2009

कल वसंत ऋतु का पहला दिन था। लालान लोग अक्सर एक पार्टी आयोजित किया करते थे और लगभग हर बार हम ठंड से मर रहे होते थे। कल मैं मैडिसन के साथ बेनरवील जाऊँगा—दाचा का कुछ काम करने। मुझे नहीं पता दाचा के चारों तरफ़ की दो हेक्टेयर भूमि को क्या नाम दूँ। वह न तो पार्क है, न ही बग़ीचा, बल्कि वह एक क़िस्म का परिवर्तित किया हुआ ज़मीन का टुकड़ा है जिस पर सेब के पेड़ लगे हैं, किनारों पर हॉर्टेसिया के पेड़ हैं जो कि स्पेन में बहुत होते हैं। जो भी हो उसको ख़ूबसूरत दिखना चाहिए।

मैं यानिक हेनेल की एक किताब पढ़ रहा हूँ। इस लेखक को मैं पसंद करता हूँ और मैं एक किताब फ़्रांस्वा मेरोनिस की भी पढ़ रहा हूँ। शृंगारिकता, देह, कामुकता क्या होती है? यह वाक्य बिल्कुल सटीक है : ‘‘जिसे कामुकता कहा जाता है, उस चीज़ को सुलभ बनाने से कामोत्तेजकता की विलासिता तक जाने वाले सब रास्ते निश्चित रूप से बंद हो गए हैं।’’ मुझे कामोत्तेजकता की विलासिता की यह संकल्पना बहुत पसंद है। देह को काम से अलग करने का यह विचार मुझे अच्छा लगता है, जैसे मुझे इस किताब में आया देलज़ का यह वाक्य अच्छा लगता है : ‘‘प्रेम की यह संकल्पना बड़ी दुखद होगी कि अगर उसे सिर्फ़ दो लोगों के बीच का संबंध ही कहा जाए।’’

मैं तुम्हें यह सब सिर्फ़ इसलिए बता रहा हूँ, क्योंकि मुझे विश्वास है कि कभी तुम और मैं उस क्षण तक पहुँचे थे जो हमें मुक्ति तक ले गया था। यह सिर्फ़ इसी कारण है कि मुझे समलैंगिकता पसंद है और जबकि तुम यह बात जानते हो कि मुझे धर्म-परिवर्तन से नफ़रत है।

मुझे समलैंगिकता पसंद है, क्योंकि मेरी नज़र में एक समलैंगिक स्वयं को दूसरे में ढूँढ़ता है। वह अपना सामना ख़ुद से ही करता है और कभी-कभी ख़ुद को पा लेता है। द्यूरास से चूक हो गई थी, ‘ला मालादी द ला मार’ से साबित होता है कि समलैंगिकता उससे नज़रअंदाज़ हो गई थी। ‘मिश्रण’ की यह संकल्पना मेरे लिए अपरिचित है, उतनी ही जितना कि नार्सिसस और सुंदर नवयुवती इको की शिक्षाप्रद कहानी जो ओविद ने बताई है। इसका कोई वजूद नहीं है। न तो समलैंगिकों में और न ही विषमलैंगिकों में। किसी भी क़ीमत पर एक रिश्ता बनाना जो सिर्फ़ सामाजिक हो, इसका कोई मतलब नहीं है। प्रेम का पहला क़दम स्वयं के आदर से होकर गुज़रता है। स्टरनर भी यही बात कहता है और इस विषय पर वह हेगेल से भिन्न है।

वास्तव में हम, हम दोनों ने दो समानांतर जीवन बिताए हैं और तुम्हारा अभिमान इस हद तक था कि तुम्हारी यूक्लिडियन ज्यामिति में तुम कभी भी मुझसे नहीं मिलने वाले थे। हाँ, दो समानांतर जीवन किंतु जिन्होंने एक दूसरे को पूरा किया। हम दोनों स्वच्छंद शारीरिक रिश्तों के ख़तरों से बचे रहे। यह हमारी ख़ुशक़िस्मती रही!

25 मार्च 2009

मैं चाहे जितना ढोंग कर लूँ कि कुछ नहीं हुआ, मैं तुम्हें टेलीफ़ोन करने जा रहा हूँ : जैसे सारा जीवन हम करते रहे, तुम मेरे दफ़्तर का दरवाज़ा खोलोगे—हर बार की तरह बड़ी सावधानी से, तहज़ीब से, और मैं ख़ुद को नहीं सँभाल पाऊँगा : तुम्हारी अनुपस्थिति से मैं हमेशा संघर्ष करता हूँ। वह मेरे ऊपर कहीं भी और कभी भी हमला कर देती है। तुम सर्वव्यापी थे और अभी भी हो। मेरा विश्वास करो, इस नीलामी और वारहोल घटना ने कुछ भी नहीं बदला।

मैं तुमसे आध्यात्मिक अनुपस्थिति नहीं, बल्कि इसके विपरीत शारीरिक अनुपस्थिति की बात कर रहा हूँ—वास्तविक अनुपस्थिति की—एक विरोधालंकार की तरह। मैं जानता हूँ कि तुम मुझे समझ रहे हो। तुम जो स्वयं को जीवन से दूर कर लेते थे, जिसने यथार्थ से इतनी दूरी बना ली थी। क्या यह तुम्हारे लिए एक खेल नहीं था? लोग यह जानने के लिए उत्सुक हो सकते हैं। इसके विपरीत तुम्हारा हर वस्त्र-संग्रह क्या यह साबित नहीं करता था कि दुनिया के लिए तुम्हारी एकाग्रता खोई नहीं थी, तुमने सब कुछ देखा था, सब कुछ समझा था। तुम्हारी दूर की नज़र के चश्मे के पीछे तुम सच्चाई छिपाकर रखते थे। लेकिन हमारी अपनी गुप्त बातें थीं, जिनसे वह सच्चाई एकाएक सामने आ जाती थी।

8 मई 2009

मैं पेरिस वापस आ गया हूँ। मैं तुम्हें और जल्दी लिखना चाहता था। लेकिन सब कुछ इसके विरुद्ध होता गया। मई महीने के घोषित अवकाश। कब हम यूरोप में यह दिखावटी स्मरणोत्सव बंद करेंगे?

मराकेश में मुझसे एक फ़्रांसीसी नागरिक ने कहा कि हमारी जोड़ी को देखकर उसे स्वयं की समलैंगिकता स्वीकार करने में और उसको जीने में मदद मिली। यह पहली बार नहीं है कि जब मुझे किसी ने यह बात कही है।

जॉन-पॉल गोलतीये भी मुझसे इसी तरह की बात पहले कह चुका है। हर बार मैं ख़ुश हो जाता हूँ, जबकि तुम तो जानते हो कि मैं किसी भी प्रकार के संप्रदायवाद के विरुद्ध हूँ। ऐसी सारी बस्तियों के विरुद्ध हूँ, जैसे कि मारेस, जहाँ पर सारे लोग समलैंगिक है; क़साई, रंगरेज़, ब्रेड बनाने वाला। मैं स्त्रीविहीन सड़कों को बड़े अचरज से देखता हूँ। यह मेरे लिए उतना ही विचित्र है कि यहूदी सिर्फ़ यहूदी के साथ ही रहना चाहता हो और अरब सिर्फ़ अरब के साथ। जिन्होंने रंगभेद के विरुद्ध लड़ाई की, जो समलैंगिकों और यहूदियों के हक़ के लिए लड़े, वे यह तो कभी नहीं चाहते होंगे। और मैंने तो बिल्कुल नहीं चाहा था। हमारी समलैंगिकता, न तो हमने कभी छिपाई, न ही प्रदर्शित की। इस पर न तो शर्म आनी चाहिए, न ही गर्व होना चाहिए। यह अलग बात है कि ‘प्राइड परेड’ आयोजित की जाती है। लेकिन मैं जानता हूँ कि यह गौरव-यात्रा क्या है? गौरव इस बात का है कि समलैंगिक होने के अधिकार की लड़ाई जीत ली गई है।

लेकिन इस बात को सबके लिए नहीं कहा जा सकता। अगर तुमने और मैंने एक सामान्य जीवन बिताया है तो वह इसीलिए क्योंकि हम समलैंगिक ही थे; हमारे पास कोई और विकल्प नहीं था। यह कहना काफ़ी अपमानजनक है कि समलैंगिक लोग यह विकल्प अपनी इच्छा से चुनते हैं। मैं अपने किरदार को काफ़ी अच्छी तरह से जानता हूँ : जब मैं तुमसे मिला, तुम सिर्फ़ इक्कीस वर्ष के थे और तुम कभी किसी पुरुष के साथ नहीं रहे थे। यह आसान नहीं था, पर मैंने तुम्हें यह दिखाया कि यह संभव था, ज़रूरत सिर्फ़ ईमानदार होने की थी। लेकिन मैं उन लोगों को नहीं भूला हूँ जो खुले में नहीं जी सकते, छिपने के लिए बाध्य हैं; सामाजिक, पारिवारिक और व्यावसायिक कारणों से नक़ली जामा पहने हुए हैं। इन्हीं लोगों के लिए मैंने समलैंगिकता के हक़ में लड़ाई का बीड़ा उठाया। हमें इसकी ज़रूरत नहीं थी, हम भाग्यशाली थे। मैंने तुम्हें उस पत्र के बारे में बताया ही है जो मेरी माँ ने मुझे लिखा था, जब मैं अठारह वर्ष का था और पेरिस आने के लिए रौशेल को छोड़ चुका था। वह पत्र खो गया है, लेकिन मैं उसे भूला नहीं हूँ।

मुझे तरह-तरह की ख़बरें देने के बाद मेरी माँ ने कहा, ‘‘अब मैं तुम्हारी समलैंगिकता के बारे में बात करना चाहती हूँ। तुम जानते हो कि मुझे किसी चीज़ से धक्का नहीं लगता और मेरी पहली इच्छा यही है कि तुम ख़ुश रहो, लेकिन तुम्हारी संगत मुझे चिंतित करती है। अगर तुम किसी वर्ग की नक़ल करने के लिए या फिर महत्वाकांक्षा और अहंकार के लिए समलैंगिक होते तो यह समझ लेना कि मैं इसको अनुचित समझती।’’

मैं तो किसी की नक़ल नहीं कर रहा था और न ही उच्च वर्ग तक पहुँचने के लिए समलैंगिकता का सहारा ले रहा था। मैं उसी राह पर चल रहा था जो मैंने बग़ैर यह जाने पकड़ी थी कि वह मुझे कहाँ ले जाएगी। एक दिन वह मुझे तुम तक ले आई।

मैं विक्टर ह्यूगो को पढ़ रहा हूँ। ‘बूज़ औदौर्मि’ के इस अवतरण पर चिंतन कर रहा हूँ : ‘‘मैं विधुर हूँ, अकेला हूँ और मेरी साँझ हो रही है, और मैं झुक रहा हूँ, हे मेरे ईश्वर! मेरी आत्मा क़ब्र की तरफ़ है, जैसे प्यासा पशु अपना सिर जल की तरफ़ झुकाता है।’’


पियर बेरजे (1930-2017) फ़्रांस के प्रसिद्ध उद्योगपति थे और कला, फ़ैशन तथा अन्य सामाजिक-राजनीतिक कार्यों के प्रोत्साहन के लिए अपने संसाधनों का प्रयोग करते थे। ईव सांलोरा (1936-2008) के साथ मिलकर उन्होंने एक फ़ैशन-लेबल की स्थापना की। ईव बीसवीं सदी के अग्रणी फ़ैशन डिज़ाइनरों में गिने जाते हैं और माना जाता है कि उन्होंने फ़ैशन उद्योग को ही नहीं, फ़ैशन कला को भी एक नई दिशा दी। यहाँ प्रस्तुत चिट्ठियाँ ‘ईव के नाम पत्र’ (अनुवाद : अनामिका सिंह, राजकमल प्रकाशन, संस्करण : 2018) शीर्षक पुस्तक से चयनित और साभार, तथा ‘सदानीरा’ के क्वियर अंक में पूर्व-प्रकाशित।

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