बातें ::
उम्बेर्तो ईको
अनुवाद और प्रस्तुति : आग्नेय

उम्बेर्तो ईको इतालवी भाषा के अत्यंत लोकप्रिय उपन्यासकार हैं. पांच विश्वभाषाओं के ज्ञाता ईको ज्ञान के भंडार रहे आए. उनके निजी पुस्तकालय में तकरीबन सत्तर हजार किताबें थीं. वह कथाकार के अलावा इतिहासकार, साहित्य-आलोचक एवं लक्षण वैज्ञानिक भी थे. उनके उपन्यास ‘द नेम ऑफ द रोज’ की अब तक लगभग एक करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं, और इस पर एक फिल्म भी बन चुकी है.

इको ने अपने देहावसान से पहले पेरिस के लूव्र में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया था, जिसका विषय ‘ब्यौरों की जरूरी प्रकृति’ रखा गया था. उन्होंने संस्कृति के इतिहास में ब्यौरों की क्या जगह है, उनके माध्यम से हम मृत्यु के बारे में सोचने से कैसे बचते हैं? और Google युवाओं के लिए खतरनाक क्यों साबित हो रहा है, जैसे विषयों पर ‘स्पीगल’ से बातचीत की, जो जर्मन भाषा का समाचार-पत्र है. 11 नवंबर 2009 को प्रथमतः प्रकाशित यह बातचीत अपने हिंदी अनुवाद में वहीं से साभार है.

उम्बेर्तो ईको

आपको संसार के प्रकांड विद्वानों में से एक माना जाता है, और अब आप लूव्र में प्रदर्शनी का उद्घाटन कर रहे हैं. जैसा आप जानते हैं लूव्र संसार के महानतम संग्रहालयों में से एक है, लेकिन प्रदर्शनी का विषय थोड़ा-सा सामान्य लगता है, यद्यपि उसमें ब्यौरों की प्रकृति, कवि जो अपनी कृतियों में सूचियां बनाते हैं और वे कलाकार जो अपने चित्रों में चीजों को एकत्र करते हैं, भी शामिल हैं. आपने इन विषयों को क्यों चुना?

सूची संस्कृति का उद्गम है, वह कला और साहित्य का हिस्सा है. संस्कृति क्या चाहती है? असीम को बोधगम्य बनाना. वह व्यवस्था भी बनाए रखना चाहती है, हमेशा नहीं, लेकिन अधिकांश समय. और मानवीय होने के नाते, कोई कैसे असीम का सामना करे. कैसे कोई अगम्य को पकड़ने की कोशिश करे? ऐसा हम ब्यौरों, तालिकाओं, संग्रहालयों, विश्वकोशों और शब्दकोशों के जरिए करते हैं. दोन जोवान्नी कितनी औरतों के साथ सोया था, उसको गिनने में एक मोहकता है. मोत्जार्ट के वाद्य सहयोगी लोरेन्जो द पोन्टे के अनुसार उनकी संख्या 2063 है. हमारे पास पूरी तरह व्यावहारिक फेहरिस्तें भी हैं, जैसे खरीददारी की सूचियां, वसीयतें, मेन्यू. ये सब अपने ढंग से हमारी सांस्कृतिक उपलब्धियां हैं.

क्या सुसंस्कृत व्यक्ति एक ऐसा रखवाला है, जो वहां व्यवस्था रखना चाहता है जहां अराजकता का बोलबाला है?

सूची संस्कृति को नष्ट नहीं करती है, वह उसे बनाती है. जब भी हम सांस्कृतिक इतिहास की ओर देखते हैं, वहां हमें सूचियां ही सूचियां दिखाई देती हैं. वे इतनी घटाटोप हैं कि सिर चकराने लगता है. संतों की सूचियां, सेनाओं की सूचियां, औषधीय पौधों की सूचियां, खजानों की सूचियां और किताबों के शीर्षकों की सूचियां, सोलहवीं सदी के प्रकृति से संबंधित संग्रहों के बारे में सोचो. मेरे अपने उपन्यास भी सूचियों से भरे पड़े हैं.

लेखाकार सूचियां बनाते हैं, लेकिन आप होमर, जॉयस और टॉमस मान की कृतियों में सूचियां ढूंढ़ लेते हैं?

हां, लेकिन वे लेखाकार नहीं हैं. ‘यूलिसीज’ में जेम्स जॉयस ने अपने मुख्यपात्र लिओपोल्ड ब्लूम के बारे में बताया है कि वह किस तरह अपनी दराजों को खोलता था और उनमें कितनी चीजों को पाता था. मैं उसे एक साहित्यिक फेहरिस्त मानता हूं और वह ब्लूम के बारे में बहुत कुछ कहती है. उदाहरणार्थ होमर को ही लें. इलियड में वह ग्रीक सेना के आकार का आभास देना चाहता है. पहले वह उपमाओं का उपयोग करता है ‘जैसे पहाड़ की चोटी पर जंगल की कोई प्रचण्ड आग भभक रही हो और दूर से ही उसकी रोशनी दिखती हो, उसी तरह जब वह प्रयाण करती थी, उसके सैनिकों के अस्त्रों की चमक आकाश तक कौंध जाती थी.’ वह इससे संतुष्ट नहीं था. वह उसके लिए उपयुक्त रूपक नहीं ढूंढ़ पाया, तब वह कवियों की मदद मांगने लगा, तब अचानक वह अनेकानेक सेनापतियों और उनके जहाजों के नाम देने लगा.

क्या ऐसा करने से वह कविता से छिटक नहीं गया?

सर्वप्रथम, हम यह सोचते हैं, सूची प्रारंभिक संस्कृतियों की एक विशिष्ट आदिम पहचान है जिसके पास ब्रह्मांड की कोई उचित अवधारणा नहीं थी जिसकी वजह से वे उन विशेषताओं की सूची बनाते हैं जिनको वे नाम देते हैं, लेकिन सांस्कृतिक इतिहास में सूची बार-बार उभरती है. वह आदिम संस्कृतियों की मात्र अभिव्यक्ति नही है. मध्यकाल में ब्रह्मांड की एक स्पष्ट छवि मौजूद है और वहां भी सूचियां हैं. पुनर्जागरण काल और बॉरोक युग में खगोल-शास्त्र पर आधारित एक नई विश्व-दृष्टि हावी है. यहां भी सूचियां हैं. निश्चितपूर्वक, उत्तर-आधुनिक काल में भी सूचियां प्रचलित हैं. उनमें एक अप्रतिरोध्य जादू है.

होमर जानता था कि वह सभी योद्धाओं और जहाजों को कभी नाम नहीं दे पाएगा, फिर भी उसने उनकी सूचियां बनाई?

होमर अपनी कृति में बार-बार अनाभिव्यक्ति के स्थलों को भेदता है. लोग बार-बार ऐसा ही करते हैं. हम सदैव दिक्-काल, अंतहीन नक्षत्रों और अनेकानेक आकाश-गंगाओं के प्रति मोहित होते रहे हैं. जब कोई आकाश की ओर देखता है, वह क्या महसूस करता है? वह यही सोचता है कि उसके पास इस सब कुछ के वर्णन के लिए पर्याप्त वाणी नहीं है, फिर भी वह आकाश का वर्णन करने से नहीं चूकता है. वह सहज रूप से जो देखता है, उसको सूचीबद्ध करने लगता है. प्रेमी भी ऐसी स्थिति में होते हैं, वे भाषा की अपूर्णता और अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करने के लिए शब्दों का अभाव अनुभव करते हैं. क्या प्रेमी ऐसा करने से कभी रुकते हैं? वे सूचियों को बनाने लगते हैं : तुम्हारी आंखें इतनी सुंदर हैं, उसी तरह तुम्हारा मुख और तुम्हारी गर्दन… वे ब्यौरे पर ब्यौरे देने लगते हैं.

यथार्थपूर्वक हम जिन चीजों को पूरा नहीं कर सकते हैं, उनको पूरा करने के लिए हम क्यों इतना सारा समय बर्बाद करते हैं?

हमारी एक निराशाजनक, अपमानजनक सीमा है— मृत्यु. हम चाहते हैं कि हमारे पास जो है, उसकी कोई सीमा न हो. अतः उसका अंत न हो. मृत्यु के बारे में सोचने से बच निकलने का यह एक रास्ता है. हम सूचियां बनाते हैं क्योंकि हम मरना नहीं चाहते.

लूव्र ने आपकी प्रदर्शनी में रूपंकर कलाओं की कृतियां भी प्रदर्शित हैं जैसे अचल जीवन. इन कृतियों के फ्रेम हैं, उनकी सीमाएं हैं और वे उससे अधिक चित्रित नहीं कर सकती हैं जो उनमें चित्रित हो चुका है.

ऐसा नहीं है, उल्टे, हम उनको इतना अधिक इसलिए प्यार करते हैं कि वह हमारा विश्वास है, कि हम उसमें और अधिक देख पाने के काबिल हैं. एक व्यक्ति जो चित्र गौर से देखता है, वह यह जरूर महसूस करता है कि वह फ्रेम को खोल दे और देखे कि चित्र के बाएं क्या है और दाएं क्या है? ऐसा चित्र, वस्तुतः एक सूची जैसा है— असीम का एक कटआउट.

ये सूचियां, यह संचयन, विशेष तौर से आपके लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?

लूव्र के लोगों ने मुझसे कहा कि क्या मैं वहां प्रदर्शनी का आयोजन करना चाहूंगा? उन्होंने कहा कि मैं एक कार्यक्रम बनाऊं. संग्रहालय में काम करने का विचार ही मुझे अपील करता है. अभी हाल में वहां मैं अकेला ही था और मैं डॉन ब्राउन के एक पात्र की तरह महसूस कर रहा था. वह एक साथ आश्चर्यजनक और अलौकिक था. मैंने तत्काल निश्चित किया कि प्रदर्शनी सूचियों पर केंद्रित हो. मैं क्यों इस विषय में दिलचस्पी रखता हूं, यह सचमुच नहीं बता सकता. मैं सूचियों को उसी वजह से पसंद करता हूं जिस तरह दूसरे लोग फुटबाल या लौंडेबाजी पसंद करते हैं. व्यक्तियों की अपनी प्राथमिकताएं होती हैं.

तब भी आप अपने मनोभावों को स्पष्ट करने की योग्यता रखने के लिए प्रख्यात हैं.

लेकिन अपने बारे में बात करके नहीं. देखिए, अरस्तू के समय से हम सारतत्व पर आधारित चीजों को परिभाषित करने के लिए प्रयत्नशील हैं. मनुष्य की परिभाषा, एक ऐसा पशु जो जानबूझकर क्रियाशील होता है. अब देखें, अस्सी साल बीत जाने के बाद ही प्रकृति वैज्ञानिक प्लेटिपयस की परिभाषा लेकर आ सके. इस पशु के सारतत्व का वर्णन करने में बेइंतहा मुश्किल आई. वह पानी के अंदर भी रहता है और जमीन पर भी, वह अंडे भी देता है, तब भी स्तनपायी है, देखें कि यह परिभाषा कैसी लगती है? यह एक सूची है— विशेषताओं की एक सूची.

एक और अधिक अतिसामयिक पशु की परिभाषा करना संभव है?

शायद! लेकिन क्या वह उसे दिलचस्प बना देगी. शेर के बारे में सोचें जिसे विज्ञान शिकारी मानते हैं? एक मां अपने बच्चे को शेर का किस तरह वर्णन करेगी. संभवतः उसकी विशेषताओं की एक तालिका बनाकर ही. शेर बड़ा है, बिल्ली है, पीला होता है, धारीदार और मजबूत होता है. केवल केमिस्ट पानी को H2O कहेगा. लेकिन मैं कहूंगा कि वह द्रव्य है, पारदर्शी है, कि हम उसे पीते हैं और हम उससे अपने को साफ कर सकते हैं. अब आप आखिरकार समझ सकते हैं कि मैं किसके बारे में बात कर रहा हूं. ब्यौरे एक उच्चतर प्रगतिगामी सुसंस्कृत समाज की निशानदेही है, क्योंकि ब्यौरे जरूरी परिभाषाओं को चुनौती देते हैं. जरूरी परिभाषा सूची की तुलना में अधिक आदिम है.

ऐसा दिखता है कि आप यह कह रहे हैं कि हमें चीजों को परिभाषित करना बंद कर देना चाहिए, उसके बरअक्स प्रगति का यह अर्थ होगा कि हम चीजों को गिने और सूचीबद्ध करें.

यह मुक्तिकारी होगा. बॉरोक काल ब्यौरों का युग था. अचानक, पिछले युग में जो भी विद्वतापूर्ण परिभाषाएं की गईं, वे सब प्रमाणित नहीं रहीं. लोग संसार को एक दूसरे ही परिप्रेक्ष्य में देखने लगे. गैलीलियो ने चंद्रमा के बारे में नए ब्यौरे दिए और कला में स्थापित परिभाषाएं करीब-करीब नष्ट हो गईं और विषयों का क्षेत्र निरंतर विस्तृत होता गया. उदाहरण के लिए मैं डच बॉरोक चित्रकला को तालिका की तरह देखने लगा जहां अचल जीवन अपने फलक और कौतूहलों की विपुल पेटिकाओं के बिंबों से सज्जित था. सूचियां अराजक हो सकती हैं.

लेकिन आपने यह भी कहा है कि सूचियां व्यवस्था भी लाती हैं, तो क्या व्यवस्था और अराजकता दोनों ही लागू होते हैं? क्या इंटरनेट और गूगल के द्वारा बनाई जाने वाली सूचियां आपके लिए संपूर्ण हैं?

हां, गूगल के मामले में दोनों चीजें घुल-मिल जाती हैं. गूगल सूची बनाता है, लेकिन जिस क्षण मैं गूगल-जनित सूची देखता हूं, वह बदल चुकी होती है. ये सूचियां खतरनाक हैं, केवल मुझ जैसे बूढ़ों के लिए नहीं, जिन्होंने दूसरे तरीकों से भी ज्ञान अर्जित किया है, बल्कि उन युवा लोगों के लिए, जिनके लिए गूगल त्रासदी है. पाठशालाओं को विभेद करने की कला की शिक्षा देनी चाहिए.

आप यह कह रहे हैं कि शिक्षकों को अच्छे और बुरे में भेद करने की शिक्षा देनी चाहिए? अगर ऐसा है तो यह उनको कैसे करना चाहिए?

शिक्षा को उसी रास्ते पर लौटना होगा जैसी वह रेनेसां की कार्यशालाओं में थी. जहां उस्ताद भले अपने शिष्यों को यह नहीं बता पाए कि सैद्धांतिक शब्दावली में कोई कलाकृति अच्छी है, तब भी व्यवहारिक रूप से वह ऐसा कहते होंगे कि देखो, तुम्हारी अंगुली कैसी लग सकती है? वह ऐसी लग सकती है. देखो, रंगों का यह संयोजन अच्छा है? ऐसा ही रुख शालाओं में अपनाया जाए. जब इंटरनेट का मामला हो. शिक्षक कहे, ‘‘किसी भी पुराने विषय का चयन करो, चाहे वह जर्मनी का इतिहास हो या चींटियों का जीवन हो. पच्चीस विभिन्न वेब पृष्ठों को ढूंढ़ों, उनकी तुलना करके यह आंको कि किसमें अच्छी सूचना है.’’ अगर दस पृष्ठ एक ही चीज का वर्णन करते हैं, यह इसका संकेत है कि दी गई सूचना सही हो सकती है. लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि कुछ साइट्स ने दूसरों की गलतियों की नकल की हो.

आप स्वयं किताबों के साथ काम करना चाहेंगे? आपके पास तीस हजार किताबों का ग्रंथालय है. बिना सूची या तालिका के वहां काम करना संभव न हो.

मुझे डर है, अब तक पचास हजार किताबें हो चुकी हैं. जब मेरा सचिव उसको सूचीबद्ध करना चाहता है, मैं उसे ऐसा करने से मना कर देता हूं. मेरी रुचियां लगातार बदलती रहती हैं, उसी तरह मेरी लाइब्रेरी भी. यह मुमकिन है, अगर आप निरंतर अपनी रुचियां बदलते हैं, इस स्थिति में आपकी लाइब्रेरी आपके बारे में कोई अलग राय रखने लगे. इसके सिवाय, बिना सूची के मुझे अपनी किताबें याद रखनी पड़ती हैं. मेरा साहित्य-कक्ष सत्तर मीटर लंबा है. एक दिन उसके कई चक्कर लगा लेता हूं. मुझे अच्छा लगता है कि जब मैं ऐसा कर लेता हूं. संस्कृति का यह अर्थ नहीं है कि नेपोलियन कब मरा. संस्कृति का अर्थ है कि यह मैं दो मिनट में कैसे पता लगा सकूं? इन दिनों में इस तरह की सूचना मैं तुरंत पा सकता हूं, लेकिन जैसा मैंने पहले कहा कि इंटरनेट पर आप भरोसा नहीं कर सकते.

अपनी किताब ‘द वर्टिगो ऑफ लिस्ट्स’ में आपने फ्रेंच दार्शनिक रोलां बार्थ की एक सौजन्य सूची शामिल की है. उसने उन चीजों की सूची बनाई है जिन्हें वह प्यार करता है और जिनको वह प्यार नहीं करता. वह सलाद, काली मिर्च, चीज और मसालों को प्यार करता है. वह बाइकर्स, लंबे पैंटवाली औरतों, स्ट्राबेरियों और हार्पसिकार्ड को प्यार नहीं करता. आपके बारे में क्या है?

मैं मूर्ख नहीं हूं कि इसका उत्तर दूं. इसका मतलब होगा कि आप मुझे पकड़ लेंगे. मैं जब तेरह साल का था, स्तान्धाल जब पंद्रह साल का था और टॉमस मान जब सोलह साल का था शोपां के प्रति आकर्षित था. अब शोपां फिर से शीर्ष पर है. अगर आप अपने जीवन में चीजों के साथ प्रतिक्रिया-बद्ध होते रहते हैं, तब सब कुछ बराबर बदलता रहता है, और अगर कुछ नहीं बदलता तो आप एक मूर्ख ही हैं.

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