पोलिना बर्स्कोवा की दो कविताएं ::
अनुवाद और प्रस्तुति : विपिन चौधरी

लेनिनग्राद में साल 1976 में जन्मी पोलिना बर्स्कोवा रशिया की नई पीढ़ी की सबसे प्रखर कवयित्री हैं. रशियन में उनकी कविताओं की अब तक छह किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. यहां प्रस्तुत पहली कविता पीटर गोलॉब के और दूसरी कविता इल्या कामिंस्की के किए अंग्रेजी अनुवाद पर आधृत है.

पोलिना बर्स्कोवा

स्त्री कलाकार के साथ सवाल-जवाब

कलाकार : पिछले दिनों मैं निरर्थक, क्षरणशील देह को लेकर काम कर रही थी, इसके अलावा, मेरी रुचि रिश्तों में रही है— खासकर अवैध रिश्तों में.

कला-प्रदर्शनी में अपने पिता की तस्वीरों को शामिल करने के पीछे यही कारण है. हां, वे यहां हैं. पूरी तरह से कमजोर, एथेरोस्क्लिरोसिस और एल्जाइमर से पीड़ित… उनके गले के नीचे तक लार बह रही है. लेकिन आजकल मैं नए प्रेरणास्रोत खोज रही हूं.

प्रश्न : क्या प्रकृति आपको प्रेरित करती है?

कलाकार : प्रकृति?

प्रश्न: हां, आप जानती हैं कि सर्दी के मौसम में यह बहुत सुंदर हो जाती है. पेड़ जम जाते हैं और उनकी शाखाओं पर शीशे जैसी शानदार आकृतियां बन जाती हैं. जैसे महीन बर्फ से बने देवदारु-शंकु और अगर आप उनके बीच में से देखेंगी तो आपको अंधेरा दिखेगा. इसमें शायद आपकी दिलचस्पी हो.

कलाकार : आकृतियां हुंह? देवदार के शंकु. मैं नहीं जानती. शायद… शायद… कौन जानता है.

अग्निकांड के समय नताशा रोस्तोव को मिला हाथ से लिखा हुआ एक पन्ना

तुम बिन मैं पृथ्वी पर जीने की कोशिश करूंगी

तुम बिन मैं पृथ्वी पर जीने की कोशिश करूंगी

मैं कोई भी वस्तु बन जाऊंगी
इसकी मुझे परवाह नहीं—
तेजी से चलने वाली रेलगाड़ी या धुआं
या बन जाऊंगी सामने की सीट पर बैठे हंसते हुए सुंदर समलैंगिक पुरुष

एक मानव देह पूरी तरह असहाय है
पृथ्वी पर

आग में भस्म होने वाला लकड़ी का एक टुकड़ा
समुद्र की लहरें इस पर चोट कर रही हैं
लेनिन इसे अपने आधिकारिक कंधे पर रखता है

और इसलिए इंसान की आत्मा कष्ट न सहने की कोशिश में
हवा और लकड़ी और एक महान तानाशाह के कंधे पर जीवित रहती है

लेकिन मैं पानी और आग नहीं बनना चाहती

मैं पलकें बन जाऊंगी
तुम्हारे गर्दन के रोयों को साफ करने वाला स्पंज
या एक क्रिया, विशेषण बन जाऊंगी या वैसा ही कोई शब्द

आपके गाल थोड़े से चमके
क्या हुआ? कुछ नहीं!
कोई आया? कोई नहीं!

वहां क्या था कि आप फुसफुसा नहीं सके
आग के बिना धुआं, वे फुसफुसाए
मैं इस खोए हुए मास्को शहर के ऊपर
झरती मुट्ठी भर राख हो जाऊंगी

मैं किसी भी व्यक्ति को दिलासा दूंगी
सेना की यात्रा में इस्तेमाल घोड़ा-गाड़ी के नीचे
मैं किसी भी पुरुष के साथ सो जाऊंगी

***

विपिन चौधरी हिंदी की सुपरिचित लेखिका और अनुवादक हैं. उनसे vipin.choudhary7@gmail.com पर बात की जा सकती है.

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