कविताएँ ::
अंकिता रासुरी
अनवांटेड 72
सेक्स करना भी कितना ख़तरनाक साबित हो चुका है मेरे लिए
एक पीढ़ी जो मुझे डराती रही इज़्ज़त के ख़याल से
दूसरी पीढ़ी मुझे देती रही नसीहतें
और मैं हर सेक्स के बाद लेती रही
‘अनवांटेड 72’ प्रेम के नाम पर
रात दिन सड़ती-गलती मेरी ज़िंदगी
मेरा शरीर ख़तरनाक स्थिति तक टूटता रहा
कंपनियाँ कभी नहीं कहतीं कि यह दवा नहीं एक धीमा ज़हर है
और आज मैं एक हॉस्पिटल के बेड पर हूँ
आई.सी.यू. में जाते हुए मैं बस सोचती रही हमारे बारे में
और तुम थे कि ख़ुद को ही गुनहगार समझ रहे थे
हमारे सामने कितना कुछ था चुनौती के रूप में
एक परंपरा जो मुझे माँ के रूप में नहीं करती स्वीकार
इन अस्पताल वालों को नहीं फ़र्क़ पड़ता हमारे प्रेम से
जहाँ ज़िंदगी और मौत का फ़ासला
महज़ पचास हज़ार के एडवांस पर टिका था
न इन कंपनियों को
जो बहत्तर घंटे के ज़हर के साथ बेचती हैं प्रेम के सपने
मेरे शरीर में न जाने कितने इंजेक्शन लगे पड़े थे
तुम्हारी प्यार भरी और बेबस आँखों के सामने
और अंत क्या हो सकता है
सब कुछ तो ख़तरनाक बना दिया गया है—
एक स्त्री शरीर के लिए
पूश्किन-सा
तुम्हारी आँखों को देखा
तुम्हारे चेहरे को छुआ
और सीने से अपनापन पाया
पहली बार किसी को पाने जैसा कुछ नहीं
बस उसके बारे में सुनने जैसा ही
अभी ठीक अड़तालीस घंटे बाद भी
तुम्हें ठीक उसी तरह याद कर रही हूँ
तुम्हें सोच रही हूँ
एक बार फिर से तुम्हारी भिंची मुट्ठियाँ याद आ रही हैं
मैं महसूस कर रही हूँ
पिछले अड़तालीस घंटों में हुआ प्रेम
ज़िंदगी को बहुत कुछ देने लगा है
पर तुम जवाब क्यों नहीं देते
बिल्कुल सच बताना
एक दिन और चंद घंटे साथ गुज़ारने के बाद
अब मैं क्या रह गई हूँ तुम्हारे लिए?
और अब मैं जल रही हूँ
हालाँकि यह अकेले की तुम्हारी आग नहीं
तुमने बस ख़ुद को जोड़कर उसे और तेज़ कर दिया है
तुम्हारी पूश्किन-सी बढ़ी हुई दाढ़ी ख़ूब याद आ रही है
सच में लगने लगा है—तुम्हें प्रेम किया जा सकता है
मैं बार-बार तुम्हारी हथेलियाँ चूम लेना चाहती हूँ
कस कर लगा लूँ गले तुम्हें एक बार फिर
और बंद कमरे में देखूँ तुम्हें शराब का एक और पैग पीते हुए
सोच रही हूँ
एक मर्द-देह हमेशा मर्दवादी नहीं होती
उसमें हो सकता है ढेर सारा सम्मान
हालाँकि यह प्रेम होना अड़तालीस या बहत्तर घंटे होने भर का भी हो सकता है
और एक लंबे समय तक भी जिए जा सकते हो तुम
भारत-पाकिस्तान
सबसे ज्यादा प्रतीक्षित मैच में
अगर आ जाती बारिश
मैं ख़ुश होती
ख़ुश होता शायद कोई और भी
उन्मादों पर फिरती बारिश में
अबौद्धिक प्रेम
तुम कहते हो कि
इतना भावुकता भरा प्रेम ठीक नहीं
कुछ बौद्धिकता लानी होगी प्रेम में
प्रेम में वयस्क होना मुझे कभी नहीं आया
प्रेम की किशोरावस्था जीती रही सालों साल
और तमाम बौद्धिक प्रेम अपनी बौद्धिकता के साथ डूब गए
ऑटो चालक
रात के अँधेरे में
जब भी कभी ऑटो में बैठकर जाना होता स्टेशन
या कहीं और
हर बार अँधेरे कोनों में
कई घटनाएँ दिमाग़ में घूमने लगती हैं
दिल्ली, वर्धा, कलकत्ता, राँची जैसे तमाम शहरों में
कोई सुनसान जगह दिख जाने पर
ऑटो वाले को पूछ ही लेती हूँ—
भैया कहाँ ले जा रहे हो?
जैसे कि सारे अपराध इन्हीं के हिस्से हों
हम हर रोज़ शक करते हैं
और ये लोग सुनते हैं शक भरी आवाज़ों को
किसी गहरे संताप के साथ
और मैं हूँ कि हर बार सुरक्षित लौटती रही हूँ
इन बेहद असुरक्षित लगने वाले लोगों के बीच से
मौत की ख़बरें या ख़बरों की मौत
मौत की ख़बरें या ख़बरों की मौत
चीख़ती दुनिया में मैं बस खीझ भर जाती
दिमागी बुख़ार से मौत की बढ़ती संख्या
ख़बर अपडेट करना भर है
कोई घटना छोटी
कोई घटना बड़ी नहीं
वह सिर्फ़ ख़बर है
बड़ी ख़बर या छोटी ख़बर
कट, बाइट, हेडिंग…
मैं डेस्क के एक हिस्से में
बिहार के दुख को तो तब भी कर लेती हूँ महसूस
नाक पकड़कर किसी तरह से रोक लेती हूँ भावुकता
लेकिन कश्मीर में सरकारी क़ैद में जीते लोग
बस्तर में मारे जा रहे आदिवासी
चीन में बेची जा रही पाकिस्तानी बेटियाँ
सूडान में सैनिक हमले में मरते लोग
सऊदी अरब, अमेरिका, जाने कहाँ-कहाँ
मेरे लिए सिर्फ़ गोलीबारी या मुठभेड़ में मरे लोग हैं
खटाक-सा एक शब्द लगाना है
मुठभेड़, हमला, गोलीबारी, मौत, शहीद, ढेर…
तब्दील
लंबे अरसे बाद मिलते हो
और मेरे होंठों की ओर
तुम्हारे होंठ नहीं
बढ़ता है तुम्हारा लिंग
और मैं देह से कुछ और में
हो जाती हूँ तब्दील
अंकिता रासुरी (जन्म : 1991) की कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। वह पत्रकारिता से संबद्ध है। उनसे ankitarasuri@gmail.com पर बात की जा सकती है।
अपनी सरतो पर जीना बहुत कठिन होता है पुरुष और स्त्री दोनों के लिए पर स्त्री के लिए तो सांस तक लेना दुरूह है।ये कविताएं कितनी सच्ची है।
बेहतरीन रचनाएं।
अंकिता रासुरी जी आपने बहुत ही अच्छी कविताएं लिखीं है। इतनी सहजता से आपने अपनी भावनाएं कविता में उकेर दिया है, मैं इसका कायल हूं। मैंने आपकी बहुत सी कविताएं पहले भी अन्य माध्यमों पर पढ़ता आया हूं।
Sundar