कविताएँ ::
छगन कुमावत

छगन कुमावत

जीवन में

हमारा जीवन
देहात में फेरी लगाती
गँवारनी की गाँठड़ी था
जिसमें एक दुःख बिकता तो
बाज़ार से मर्द
दूसरा दुःख ख़रीद ले आता।

दुःख का कोई विकल्प न था

सुख केवल मंदिर के बाहर छूटा हुआ
उल्टे पैर का जूता था।

मुल्क में

जब मुल्क जंग की देहरी पर था
और उसे ज़रूरत थी
हथियार वाहकों की

तब हम व्यस्त थे
प्रेमिकाओं के ख़त पहुँचाने में

हमने शहादत के दौर में
कविताएँ लिखीं—

दोनों ओर के लिए

हमारी बहादुरी के क़िस्से नहीं गढ़े गए।

प्रेम में

छुट्टी का बहाना मारते हुए
सोचा तुमसे किए वादों के बारे में

घाट में उतरती सीढ़ियों पर नाम लिखा
और छोड़ दिया पैरों तले मिटने के लिए

तुम्हारे होंठों को याद किया
कॉकटेल बनाते हुए

प्रेम कोई पवित्र चीज़ नहीं थी
कि चौखट के बाहर
उतारनी पड़े चप्पल।


छगन कुमावत की कविताओं के प्रकाशन का यह प्राथमिक अवसर है। वह शौक़िया तौर पर फ़ोटोग्राफी और अनियमित विद्यार्थी के तौर पर स्नातक प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहे हैं। उनसे cgnkumawat91@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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