कविताएँ ::
कमल जीत चौधरी

कमल जीत चौधरी

हिंदी के हरफ़नमौला

ऑर्थो सिर्फ़ हड्डियों का इलाज करता है
न्यूरो सिर्फ़ सिर का
ई.एन.टी. प्रसव नहीं कराता
यह सभी मिलकर भी
बीमार नवजात को इंजेक्शन नहीं लगाते

रोगियो,
चंदर केमिस्ट सब बीमारियों के लिए
दवाई अनुशंसित कर देता है

अभिभावको,
मिस रजनी अँग्रेज़ी के साथ-साथ
गणित, भूगोल और पर्यावरण-विज्ञान भी पढ़ा रही हैं

पाठको,
जम्मू-कश्मीर पर लिखी उन कविताओं को ख़ारिज कर दें
जो चंदर केमिस्ट और मिस रजनी की तर्ज़ पर
हिंदी के हरफ़नमौला लिख रहे हैं।

आपके जूते बहुत सुंदर हैं
दोस्त और प्रिय कवि देवी प्रसाद मिश्र जी के लिए

मैंने कहा
मनुष्य जन्म कैसे प्राप्त होता है
उसने कहा
पूर्वजन्म के पुण्य कर्मों से

मैंने कहा
कर्म बड़ा कि भाग्य
उसने कहा
कर्म भाग्य से और भाग्य कर्म से निर्धारित होता है

मैंने कहा
जनसंख्या बढ़ती जा रही है
उसने कहा
मुसलमान चार शादियाँ करते हैं

मैंने कहा
धरती पर पाप कर्म बढ़ते जा रहे हैं
उसने कहा
कलियुग का प्रभाव है

मैंने कहा
त्रेता युग में आबादी कम थी
उसने कहा
उस समय प्राकृतिक आपदाएँ और बीमारियाँ कम थीं

मैंने कहा
उत्तरोत्तर मृत्यु दर घटती जा रही है
उसने कहा
चिकित्सा विज्ञान ने काफ़ी तरक़्क़ी कर ली है

मैंने कहा
विज्ञान पूर्वजन्म नहीं मानता
उसने कहा
लोग अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं

मैंने कहा
क्या सब प्राणी चौरासी लाख योनियों के बाद मुनष्य बनते हैं
उसने कहा
कुछ लोगों को मोक्ष भी प्राप्त हो जाता है

मैंने कहा
जैसे डायनासोर प्रजाति लुप्त हो गई
हर बीस मिनट में धरती से एक प्रजाति लुप्त हो रही है
उसने कहा
ईश्वर की जैसी इच्छा…

मैंने कहा कि कुल आत्माओं के अनुपात में
सत्तासी लाख प्रजातियों को आरक्षण मिलना चाहिए
उसने कहा
लेकिन दलितों को हर सूरत ख़त्म होना चाहिए

मैंने कहा
आपके जूते बहुत सुंदर हैं
उसने कहा
धन्यवाद।

दु:ख

एक

दु:ख हरा-भरा था
पेड़ फलों से लदा था
अगर होता
झाड़-झंखाड़
काट देता
यह तो था
अलबेला बूटा
इसको रात के हंसिए से शांगा1डालियाँ छाँटना। नित भीतर प्रभात खेला।

दो

दु:ख एक पीला फूल था
महकता
लहकता
जिसके साथ था
लंबा काँटा
इसने ही कुछ भरा निकाला
मेरा बर्तन इसी ने माँजा।

तीन

दु:ख नीला गीला था
हू-ब-हू बरसात जैसा था
अगर होता बंजर सूखा
मैं भी रहता
बाँजा ठूँठा
फिरता मारा भूखा प्यासा
कैसे कुछ नया रोपता
कैसे फिर उगता फलता।

चार

दु:ख बाढ़ में तैरता
बड़ा-सा लट्ठा
मैंने देखा
मैं उस पर बैठा
साथ में बैठा ईंट का भट्ठा…

जो आवाज़ रिकॉर्ड नहीं हुई

जो आवाज़ कला अकादेमी ने रिकॉर्ड की
जो आवाज़ आकाशवाणी ने रिकॉर्ड की
जो आवाज़ भारत भवन ने रिकार्ड की
जो आवाज़ दूरदर्शन ने रिकार्ड की
जो आवाज़ मैंने ख़ुद रिकॉर्ड की
वह उस चिड़िया की तरह है
जो किसी महँगी दीवार पर टँगी रहेगी

जो आवाज़ रिकॉर्ड नहीं हुई
ओस की तरह झरेगी
बंदूक़ की तरह चलेगी
सीना चाक करेगी।

सिवाय कविता के

मंगलेश डबराल का प्रिय कवि नहीं हूँ
आलोकधन्वा का प्रिय कवि नहीं हूँ
नरेश सक्सेना का प्रिय कवि नहीं हूँ
अनामिका का प्रिय कवि नहीं हूँ
एक मैनेजर पांडेय की छोड़ें
किसी भी आलोचक समीक्षक का प्रिय कवि नहीं हूँ

मुझमें इतना कुछ अप्रिय है
कि सिवाय कविता के मैं किसी का प्रिय कवि नहीं हूँ।

पत्थर-गाथा

मैंने एक पत्थर ऊँचे टीले पर गाड़ा
मैंने एक पत्थर को हार पहनाया
मैंने एक पत्थर नदी को थमाया
यह पिछले साल की बात है

इस साल मैंने एक पत्थर हवा में उछाला
एक पत्थर को ओखली बनाया
एक पत्थर कछुए की पीठ पर लाद दिया

मेरे दिल का बोझ हल्का हुआ है
यक़ीनन पत्थर भी पार लग जाएगा।

संवाद

साहिबा,
तुम्हारा प्यार लोहे की कथा है
जिसके चने-चबाने के लिए
तुम्हारे दिल ने अपने दूध के दाँत गँवाए।

मिर्ज़ा,
तुमने कभी किसी का जूठा नहीं खाया
और
एक तुम ही हो
जो जान पाए हो
प्यार और क्रांति का दूध पीकर ही
धरती अन्न पैदा करती है।

कमल जीत चौधरी हिंदी कवि-लेखक हैं। उनकी कविताओं की एक किताब ‘हिंदी का नमक’ शीर्षक से प्रकाशित है। हिंदी कविता इन दिनों जिस शोर-शराबे, गठबंधन-चटबंधन, प्रदर्शन-प्रलोभन से गुज़र रही है, उसमें कमल जीत सरीखे कवि कम ही हैं, लेकिन यह कम नहीं है कि वह हैं। वह जम्मू में रहते हैं। उनसे Kamal.j.choudhary@gmail.com पर बात की जा सकती है।

4 Comments

  1. अमित एस. परिहार अगस्त 15, 2020 at 6:57 पूर्वाह्न

    सशक्त और शानदार कविताएँ
    कवि को बहुत बधाई.

    Reply
    1. कमल जीत चौधरी सितम्बर 23, 2023 at 3:01 पूर्वाह्न

      अमित जी, प्रणाम। हार्दिक धन्यवाद।

      Reply
  2. Om Nishchal फ़रवरी 1, 2021 at 6:06 पूर्वाह्न

    पहली बार कमाल जीत चौधरी ने अपने कवित्व की ताकत का लोहा मनवाया।
    सारी कविताएं एक से बढ़ कर एक हैं।
    बहुत बहुत बधाई कवि को।
    सदानीरा को साधुवाद।

    Reply
  3. राहुल झा मार्च 11, 2021 at 2:08 अपराह्न

    ‘प्यार और क्रांति का दूध’ पीकर ही ऐसी विरल कविताएँ रची जाती हैं…;
    कमल भाई तमाम शोर-शराबों से दूर रहकर… कुछ अच्छा-सा रचते हैं… भला-भला-सा…!

    Reply

प्रतिक्रिया दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *