कविता ::
कुमार मुकुल

कुमार मुकुल

शूटर-बूचर

ख़ुद को
एक योद्धा समझते हो तुम
और रेत भरी बोरी पर
मुक्के बरसाते
गुज़ार देते हो अपनी उम्र
और सोचते हो
कि कैसे बहादुर और फुर्तीले और
जाँबाज़ हो

पर सच
क्या यही नहीं है
कि तुम्हारे इन दावों के बारे में
सर्वाधिक विश्वस्त बयान
केवल वह रेत भरा बोरा दे सकता है
और जिस हवा में
घूँसे मारते तुम गुज़ार देते हो
अपने दिन-मास-वर्ष
उसे वह हवा
कभी बयाँ नहीं कर सकती

अपने लिए
एक निरापद जगह तलाशते
दूसरों के लिए
एक आपदा की तरह
ख़ुद को तैयार करते हो तुम
और ऐसा करते हुए
हमेशा तुम्हें
किसी के इशारों का इंतज़ार होता है
और सोचते हो तुम
कि अपने मन के मालिक हो
जबकि तुम्हारी आज़ादी
सिक्कों की खनक की
मोहताज होती है
हमेशा ही

कई तरह के जूते
होते हैं तुम्हारे पास
और चश्मा, छाता, लबादा, मोबाइल
और जाने क्या-क्या
बस हर हत्या के
पहले पीछे अपना चेहरा छुपाने के लिए

किससे छुपाते हो तुम
अपना चेहरा
क्या तुम्हारी आँखों में झाँकने के बाद
कोई
तुम्हारे चेहरे को देखना पसंद करेगा

क्या तुम्हारे पास
कोई चेहरा बचा है

नहीं
कोई आतंकित नहीं होता तुमसे
उतना ज्यादा
जितना तुम ख़ुद आतंकित रहते हो
और छुपे फिरते हो
चश्मे, जूते, लबादे के पीछे
तुम्हारे नाम पर
बस कुछ फ़िल्में चल सकती हैं
जिन्हें भरी जेब वाले कुछ लोग बनाते हैं

कुछ धन-पशुओं के इशारे पर
लोगों का शिकार करते हो तुम
और ख़ुद को
पशुओं से गया-गुज़रा साबित करते हो

पशु
हत्यारे नहीं होते
किसी चश्मे और काले लबादे की
ज़रूरत नहीं पड़ती उन्हें

एक मुर्दा हथियार में
कैसे बदल लेते हो ख़ुद को

अपनी किसी असफलता को
झेलने का मौक़ा
नहीं होता तुम्हारे पास
तुम्हारी असफलताएँ चील-सी
झपटती हैं तुम पर और
तुम्हारे जैसे ही
किसी मिट्टी की मूरत की उँगलियों को
तुम्हारे ख़िलाफ़ खड़ा कर देती हैं
और अपने शिकार बने लोगों की तरह अब
अपनी असफलता के निशाने पर होते हो तुम

तुम किसी को भी
बहुत आसानी से मार सकते हो
पर ख़ुद जी नहीं सकते
अपने किसी शिकार-सी
आज़ाद ज़िंदगी

तुम्हें मिले तमाम सिक्के
आज़ादी की एक साँस
मुहैया नहीं करा सकते तुम्हें

तुम्हारी असफलताओं से
होड़ लेती मृत्यु
उससे ज़्यादा तेज़ी से
झपटती है तुम पर
जितनी तेज़ी
तुम अपने शिकार के लिए रखते हो

क्या हँसी का एक क़तरा
सँभाल सकते हो तुम
मुस्कुरा सकते हो
किसी मुस्कान के प्रत्युत्तर में
नहीं न
क्योंकि तुम्हारी असफलताएँ हमेशा
उससे ज़्यादा चौकस रहती हैं
जितनी अपने शिकार को घेरने में
दर्शाते हो तुम

मुस्कुराना
हमेशा तुम्हारे लिए
एक अभिनय होता है
एक भौंड़ी विकलता लिए
जबकि मनहूसियत
तुम्हारी सबसे बड़ी कला है
कि तुम मनहूस पैदा तो नहीं हुए थे
यह सोच कर
तुम्हें हमेशा
माफ़ किया जा सकता है
कि तुम
जो अपनी असफलताओं को देखने का
जिगरा नहीं रखते
अपनी सफलताएँ देख पाते हो क्या

सोचने की क्षमता होती
तो सोच पाते तुम
कि रायफ़ल की दूरबीन पर
घूमती तुम्हारी उँगलियों की अदाकारी
उन मुस्कानों के मुक़ाबिल
कैसी अहमक़ साबित होती हैं
जिन्हें तुम्हारी उँगलियों पर क़ाबिज़ दिमाग़
संचालित करते हैं

क्या तुम्हारे पास
कभी कोई कहानी रहेगी
जिसे तुम अपने बचाव में
सुना सको
सॉरी—क्या कभी
बुदबुदा सकते हो कोई कहानी

तुम हमेशा अपने लक्ष्य के प्रति
समर्पित होते हो
जबकि तुम्हाेर आक़ाओं को कभी भी
मनुष्यता की तलब
जग सकती है
और तब तुम
बस उनकी राह का
एक रोड़ा साबित होगे
उनकी जूते की नोक पर टिका
एक रोड़ा

तुम्हारी एकाग्रता
जहाँ तुम्हें
बाल भर हिलने की
वजह नहीं देती
तुम्हारे आक़ा
बहुत लचीले होते हैं
तुम्हारी सफलता और असफलता को
एक ही तराज़ू पर तौलने के खेल में माहिर
वे खेल सकते हैं कभी भी वह खेल
जो उनकी शैतान शक्ल को
एक मानवीय चेहरा दे देगा

पर तुम तो
हिल नहीं सकते सूत भर भी
अपनी जगह से

क्या तुम
एक दोस्त बना सकते हो
या एक दुश्मन

तुम तो किसी पर
क्रोध भी नहीं कर सकते

प्रेम या क्रोध करने के लिए
एक अदद चेहरे की ज़रूरत होती है
एक चश्मा या जूता या लबादा
कैसे कर सकता है प्रेम

गांधी का नाम तो
सुना होगा तुमने
जिसके बारे में किसी लार्ड ने
कहा था कभी
कि सेना की एक बटालियन के बराबर
वह आदमी अकेला है

कभी सोचना
कि दुनिया की किसी बटालियन का
एक सिपाही होने की क़ूव्वत
क्या होती है

एक सिपाही
जो मौत के मुक़ाबिल भी
जेब में सँभाल कर रखी गई
किसी बच्चे या स्त्री की मुस्कुराहटों से
ताक़त ग्रहण करता है।


कुमार मुकुल हिंदी के सुपरिचित कवि-लेखक हैं। इस प्रस्तुति से पूर्व ‘सदानीरा’ पर प्रकाशित उनकी कविताएँ यहाँ पढ़ें : और जब मैं वरिष्ठ हुआ

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