कविताएँ ::
शुभम नेगी
हत्याओं की रपट
वे लड़के
जो लड़कों के हाथ थामना चाहते थे
जो लड़कों की पलकों को चुम्बन से
सौंपना चाहते थे सदाबहार सपने
वे लड़के जिनके प्रेम ने बोई
सँकरी सलाख़ों की विषैली फ़सल
वे लड़के जो किताबी प्रेम-कहानियों में ढूँढ़ते फिरे
उनके लिए आरक्षित कोना
वे लड़के जिनके लिए कोई कोना नहीं था
वे लड़के
जो पकड़े गए बिस्तर पर लड़के के साथ
वे लड़के जिनकी पिंडलियों पर नील हैं
वे लड़के जो मुँह में जुराबें ठूँस चीख़े हैं
वे लड़के जिनसे कहा गया—बेटा समझो
वे लड़के जिन्हें समझा नहीं गया
वे लड़के
जो लड़के थे
पर लड़के नहीं थे
वे लड़के
जो आदमी बने
मर्द नहीं
वे आदमी
जिनकी पलकों की अंदरूनी सतह फफूँद है
वे आदमी जो बीवियों के नाम
धोखे लिखने पर मजबूर हैं
वे आदमी जिनका परिवार
उनकी देह के अभिनय का पुरस्कार है
वे आदमी जिनके मुँह, कान, आँख, नाक नहीं हैं
वे आदमी जिनकी शक्लों पर डाका पड़ा है
वे आदमी जिनकी मुस्कुराहटें शोकगीत हैं
वे आदमी जिनके मुँह में जुराबें ठुँसी हैं
वे आदमी जिनके कमरों को
मुँह-ज़बानी याद हैं सुसाइड लेटर
वे आदमी।
शायद दिखें तुम्हें अब साक्षात्
तुम्हारी गलियों, दुकानों, घरों, दफ़्तरों,
पूजाघरों में वे आदमी
जब पाएँगे अपनी शक्लें वे आदमी
तो हत्याओं की रपट होगा साहित्य
इंसान के सबसे भद्दे अपराध का ब्योरा
और गोष्ठियाँ क्या होंगी
साक्षात्कार, शोकसभाएँ, या कटघरे?
तीस जून
जून महीना अभिमान-महीने (pride month) के रूप में मनाया जाता है।
कितनी कंपनियों की
महीने भर से अटकी साँस
छूट कर आकार ले रही है
एक भद्दे प्रिज़्म का
देखो! उनकी ज़ुबानों पर चिपके सात रंग
प्रिज़्म में लौट कर
समेट रहे हैं पंख अपने
क्रांतिकारी कवि ठूँस रहे हैं सरपट
इंद्रधनुषी कविता से जुटाई वाह
सब नारे डकार बन गए हैं
अभी थे, अभी ग़ायब!
तितलियाँ फिर पहन रही हैं
कैटरपिलर का बेरंग बदन
फूल ज़मीन में धँस कर
फिर से बन रहे हैं
आँसू की कोई बूँद
कुछ लड़कों की पिंडलियों पर
उभर रहे हैं निर्मम नील वापिस
ट्रांस महिलाओं के टखनों से
फिर सिले जा रहे हैं चौराहे
कोर्ट के अँधेरे में पड़ी
वैवाहिक समानता की चमचमाती याचिकाओं पर
फिर पटकी जा रही है
टोकरी भर धूल
एक जुलाई की सुबह का अलार्म सुन कर
सब फिर सो रहे हैं
गहरी, अनभिज्ञ नींद में…
नैन्सी बॉय
विज्ञान भेज रहा था अंतरिक्ष में
पहला उपग्रह स्पुतनिक जिस समय
मिलर-यूरे कर रहे थे जब
जीवन की उत्पत्ति देख पाने को
पृथ्वी के शुरुआती सालों को सिमुलेट
उस समय ठूँसे जा रहे थे जबरन
एक लड़के के मुँह में कॉकरोच
क्योंकि उसे लड़के पसंद थे
कहीं और कोई और लड़का
मर्दाना हँसी हँस कर
थिरकते पुरुष पैरों पर रख कर बंदूक़ की नली
आलिंगन को आतुर आँखों में थूक कर
मार-पीट कर दर्जन गे लड़कों को भी
जब नहीं छोड़ पाया
लड़कों के साथ सेक्स के
रंगीन, बेहूदे, मनोरम, घटिया, अशिष्ट, अशिष्ट, अशिष्ट…
तपते कामुक ख़याल
उसके काँपते हाथों ने बेहतर समझा
गर्दन पर बंदूक़ रख लेना
जिस समय शामिल कर रही थी काँग्रेस
अमेरिकी प्रतिज्ञा में शब्द ‘भगवान’
स्पेन के डिटेंशन कैम्पों में उस समय
चाबुक बन कर खड़े थे पादरी
वह लड़के जिन्हें पुकारा गया ‘नैन्सी बॉय’
उनकी हताश नज़र आँखों से उतर कर
चल पाई बस सलाख़ों तक ताउम्र
साधारण क़ैदी भरते थे
जेल कर्मचारियों के कान और जेबें
उनके यौन-शोषण के लिए
क्या करोगे तुम
जो तुमसे आ कर कहे एक शरीर
कि उसने झेला है
संभोग से ज़्यादा
बलात्कार!
शुभम नेगी नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-लेखक हैं। ‘सदानीरा’ पर उनकी कविताओं के प्रकाशन का यह प्राथमिक अवसर है। उनसे shubham.negi.mec14@itbhu.ac.in पर बात की जा सकती है।
“हत्याओं की रपट” one of your best poetry… jish ke bare me koi baat ni karna chahta wo ap ne likha hai…