मिकोआई सेंप षजिंस्कि की कविता ::
अनुवाद : सरिता शर्मा
रोम के लिए मृत्युलेख
तीर्थयात्री अगर रोम के बीच में
आप रोम को देखना चाहते हैं,
रोम में आपको शायद रोम का कुछ भी नहीं दिखाई दे,
देखो दीवारों के वृत्त, थिएटर, मंदिर
और टूटे हुए खंभे, सब मलबे में बदल गए,
ये मिलकर रोम हुआ करते थे!
ध्यान से देखो कैसे एक शहर की लाश
अभी भी इतनी मज़बूत है—
अतीत के सौभाग्य की शान ख़त्म होने पर भी;
दुनिया पर अधिकार करते हुए,
शहर ने ख़ुद को हरा दिया
कहीं हराने के लिए और कुछ बचा न रह जाए।
आज टूटे हुए रोम में, अटूट रोम
(इसके साये में छिपे सार) में दफ़्न हो गया है।
भीतर सब कुछ बदल गया है; अकेला अतीत बदलता है
तायबा नदी है,
जो रेत में घुलकर समुद्र की ओर दौड़ती है।
देखें भाग्य क्या खेल दिखाता है : जो अचल था,
वह कमज़ोर पड़ गया; जो चला गया, अभी बाक़ी है।
यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के पोलिश कविता अंक में पूर्व-प्रकाशित। सरिता शर्मा से परिचय के लिए यहाँ देखें : ज़मींदार, ग्राम-प्रधान और पादरी के बीच संक्षिप्त संवाद