ऊलाव हाउगे की कविता ::
अनुवाद : रुस्तम सिंह

ऊलाव हाउगे | तस्वीर सौजन्य : norway2019.com

मैं यहाँ खड़ा हूँ, क्या तुम समझते हो

मैं यहाँ खड़ा हूँ,
क्या तुम समझते हो।
मैं पिछले साल भी यहाँ खड़ा था,
क्या तुम समझते हो।
मैं यहाँ खड़ा भी रहूँगा,
क्या तुम समझते हो
मैं इसे सहता भी हूँ,
क्या तुम समझते हो।
कुछ ऐसा भी है जो तुम नहीं जानते,
क्या तुम समझते हो।
तुम यहाँ बस पहुँचे ही हो,
क्या तुम समझते हो।
हमें कितनी देर यहाँ खड़े रहना है?
हमें खाना भी है,
क्या तुम समझते हो।
जब मैं खाता हूँ तब भी मैं खड़ा रहता हूँ,
मैं ऐसा करता हूँ,
क्या तुम समझते हो,
और दीवार पर प्लेटें फेंक देता हूँ।
हमें आराम भी करना है,
क्या तुम समझते हो।
हमें मूतना और हगना भी है,
क्या तुम समझते हो।
हमें कितनी देर यहाँ खड़े रहना है?
मैं इसे सहता भी हूँ,
क्या तुम समझते हो।
मैं यहाँ खड़ा रहूँगा,
क्या तुम समझते हो।


ऊलाव हाउगे (1908-1994) नार्वे के समादृत कवि हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविता ‘सात हवाएँ’ (अनुवाद एवं संचयन : रुस्तम सिंह, वाणी प्रकाशन, प्रथम संस्करण : 2008) से साभार है।

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