लुइज़ ग्लुक की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : रंजना मिश्र

लुइज़ ग्लुक | तस्वीर सौजन्य : the institute

जलधाराएँ

गाँव की सारी गलियाँ
फ़व्वारे के पास मिलती हैं
आज़ादी वाली गली
कीकर के पेड़ वाली गली
चौराहे के बीचोबीच
पानी का फ़व्वारा नाचता उठता है
चमकीले दिनों में
देवदूतों के मूत्र में
इंद्रधनुष नज़र आते हैं

गर्मियों में जोड़े जलकुंड के किनारे बैठे होते हैं
जलकुंड में प्रतिबिम्बों के लिए काफ़ी जगह है
चौराहा क़रीब-क़रीब ख़ाली है
कीकर का पेड़ यहाँ तक नहीं पहुँचता
और आज़ादी वाली गली
निर्जन और संयमित है
उसकी छाया पानी में
प्रतिबिम्बों की भीड़ नहीं लगाती

वहाँ बिखरे हुए जोड़े और शिशुओं के साथ माँएँ
एक दूसरे से बतियाने को आती हैं
शायद किसी युवा पुरुष से मिलने
यह जानने कि क्या वे अब भी आकर्षक हैं

जब वे नीचे देखती हैं
वह एक उदास क्षण होता है
पानी में प्रतिबिम्ब इतना उत्साहवर्धक नहीं

पति काम पर हैं
पता नहीं किस चमत्कार से
युवा रसिक हमेशा ख़ाली हैं
फ़व्वारे के क़रीब
वे अपनी प्रेमिकाओं पर
पानी उछालते बैठे हैं

फ़व्वारे के अगल-बग़ल
धातु की मेज़ों के झुंड हैं
यहाँ तुम बूढ़े होने पर ही बैठते हो
फ़व्वारे की तीव्रताओं से परे
फ़व्वारे युवा लोगों के लिए हैं
जो ख़ुद को देखना चाहते हैं
या माँओं के लिए
जो अपने बच्चों को व्यस्त रखना चाहती हैं

अच्छे मौसम में कुछ बूढ़े देर तक
उन मेज़ों पर जमे रहते हैं
जीवन अब सरल है
एक दिन कोन्याक
एक दिन कॉफ़ी और सिगरेट
जोड़ों को यह स्पष्ट है
कौन जीवन की कगार पर है
और कौन मध्य में

बच्चे रोते हैं
कभी-कभी खिलौनों के लिए झगड़ते हैं
पर पानी है वहाँ
माँओं को याद दिलाने के लिए
कि वे बच्चों से प्यार करती हैं
और डूबना उनके लिए भयावह होगा

माँएँ हमेशा थकी होती हैं
और बच्चे झगड़ते हुए
पति काम पर हैं या नाराज़
कोई युवा पुरुष नहीं आता
जोड़े मानो बीते समय की छायाएँ हैं
पर्वतों से लौटती क्षीण प्रतिध्वनि

फ़व्वारे के क़रीब वे अकेले हैं
एक अंधे कुएँ में
आशाओं के संसार से निर्वासित
हलचल की दुनिया है तो
पर विचारों की दुनिया
उनके लिए अभी खुली नहीं
जब वह होगा
चीज़ें बदल जाएँगी

अँधेरा घिर रहा है
ख़ाली चौराहे में
पतझड़ के पहले पत्ते बिखरे पड़े हैं
गलियाँ अब यहाँ तक नहीं आतीं
चौराहा उन्हें वापस भेज देता है
उन पहाड़ों की ओर
जहाँ से वे आए थे
टूटे विश्वास की गली
निराशा की गली
कीकर के पेड़ की
जैतून की गली
हवा श्वेतवर्णी पत्तों से भरी हुई
खोए समय की
आज़ादी की गली
पत्थरों पर ख़त्म होती है
खेतों के किनारे नहीं
पहाड़ की तलहटी में…

दुपहरी

वे वयस्क नहीं
अभी बस बच्चे ही हैं
स्कूल ख़त्म हो चुका
यह गर्मियों का सबसे सुंदर समय
उसकी शुरुआत है
सूर्य प्रखर है
पर उसकी गर्मी अभी तेज़ नहीं
और आज़ादी अभी बासी नहीं हुई
तो पूरा दिन चरागाहों में बिताने को
वे आज़ाद हैं
चरागाह अनंत है और गाँव धुँधला
और धुँधला पड़ता जाता है

यह थोड़ा अटपटा-सा है
अत्यधिक युवा होना
उनके पास वह है
जो सब चाहते हैं पर वे नहीं चाहते
फिर भी उसे बचाए रखने को
वे उत्सुक हैं
वे उसी का सौदा कर सकते हैं

जब वे इस तरह
एक दूसरे के साथ अकेले होते हैं
वे इन चीज़ों के बारे में बतियाते हैं
कि समय कैसे उनके लिए भागता नहीं है
यह सिनेमाघर में
सिनेमा की रील टूट जाने सरीखा है
जिसके बाद भी वे रुके रहते हैं
क्योंकि वे विदा नहीं लेना चाहते
पर जब तक रील दुरुस्त हो
वयस्क अचानक प्रकट हो जाते हैं
और तुम सिनेमा में वापस आ जाते हो

नायक अभी नायिका से मिला भी नहीं
वह अभी कारख़ाने में ही है
वह अभी भ्रष्ट नहीं हुआ है
और नायिका अभी चौतरे पर टहल रही है भ्रष्ट
पर ऐसा हो वह नहीं चाहती
वह अच्छी है
तब अचानक उसके साथ यह होता है
मानो एक बोरी उसके सिर के ऊपर से
अचानक खींच ली जाती है

आकाश नीला है और घास सूखी
बैठना उनके लिए कोई मुश्किल नहीं
बैठे हुए वे दुनिया-जहान की बातें करते
कलेवा खाते हैं
अपना भोजन दरी में रखते हैं
ताकि सफ़ाई बनी रहे
हमेशा उन्होंने ऐसा ही किया है
और घास वे हमेशा ख़ुद ही ले लेते हैं

आराम—वे जानते हैं
कैसे दो लोग एक ही दरी में लेट सकते हैं
पर वे इसके लिए तैयार नहीं
वे उन लोगों को जानते हैं
जिन्होंने ऐसा किया है
एक खेल या तैयारी की तरह
और कहते हैं—नहीं—ग़लत समय
उन्हें अभी बच्चा होना पसंद है
पर शरीर नहीं सुनता
उसे सब कुछ पता है
वह कहता है—
तुम अब बच्चे नहीं
तुम लंबे समय से बच्चे नहीं हो

उन्हें आभास है
परिवर्तन से बचे रहना चाहिए
यह बर्फ़बारी से पहाड़ों का टूटना है
सारे पत्थर पहाड़ों से लुढ़कते आते हैं
और नीचे खड़ा बच्चा
बस पिसकर मर ही जाता है

वे सबसे अच्छी जगह पर बैठते हैं—
पोपलर की छाया में
और बातें करते हैं घंटों
सूर्य ने अब जगह बदल ली है
स्कूल के बारे में
उन लोगों के बारे में
जिन्हें वे जानते हैं
वयस्क होने के बारे में
कि कैसे वे एक दूसरे के स्वप्न जानते हैं

वे साथ खेलते थे
पर अब वह पुरानी बात हुई—
बहुत अधिक छूना
अब वे एक दूसरे को
दरी की तह लगाते हुए ही छूते हैं

उन्हें इसका पता है
एक दूसरे के भीतर
इसलिए इसकी बात नहीं होती
इससे पहले कि वे ऐसा कुछ करें
उन्हें इसके बारे और जानना है
दरअस्ल, उस समय तक
जो चीज़ संभव है
उसे बस देखते हुए वे
बच्चे हैं

बचे रहने को
आज वह अकेली दरी में
तह लगा रही है
और वह दूसरी और देख रहा है
अपने विचारों में
इतना गुम होने का दिखावा करते
कि उसकी मदद करना भूल जाए

वे जानते हैं
एक समय बाद उन्हें
बच्चा होना बंद करना होगा
और उस क्षण वे अजनबी होंगे
यह असहनीय अकेलेपन से भरा लगता है

जब वे गाँव अपने घरों को लौटेंगे
गोधूलि का समय होगा
एक सुंदर दिन की बातें करते
कि कब वे अगली बार
इस तरह वन भोजन को जाएँगे

वे गर्मियों की गहरी होती
शाम में साथ चलेंगे
एक दूसरे का हाथ थामे बग़ैर
फिर भी एक दूसरे से
सब कुछ साझा करते

रेस्त्राँ में

मिट्टी से ऊब जाना सहज है
जब आप लंबे समय से मृत हों
आप संभवतः स्वर्ग से भी ऊब जाएँ
आप वह सब कुछ कर गुज़रते हैं
जो एक जगह करने योग्य हो
पर कुछ समय बाद वह जगह
छोटी पड़ ही जाती है
और आप बचे रहने को आतुर हो उठते हैं

मेरा दोस्त बड़ी जल्दी प्यार में पड़ जाता है
क़रीब-क़रीब हर साल एक लड़की
अगर उसके बच्चे हों
वह स्वीकार लेता है
उसे बच्चों से भी प्यार हो जाता है

तो हम कुढ़ते रहते हैं
और वह वैसा ही रहता है
रोमांच से भरा हमेशा नई खोज में
पर उसे जगह बदलना पसंद नहीं
तो स्त्री को यहाँ आना पड़ता है
या आस-पास कहीं

हर महीने हम कॉफ़ी पर मिलते हैं
गर्मियों में चरागाहों के आस-पास टहलते हैं
कभी-कभी दूर पहाड़ों तक
पीड़ा में होते हुए भी उसका शरीर
फल-फूल रहा होता है
अंशतः यह उस स्त्री की वजह से होता है
पर सिर्फ़ वही नहीं

पहली बर्फ़

बच्चे की तरह
धरती सोने को है
जैसा कि कहानियों में होता है

पर मैं अभी थकी नहीं—
वह कहती है
और माँ कहती है—
तुम न भी थकी हो
पर मैं थकी हूँ

उसके चेहरे से यह स्पष्ट है
हर कोई देख सकता है
तो बर्फ़ को गिरना होगा
नींद को आना होगा
क्योंकि माँ अपने जीवन से
मृत होने की हद तक क्लांत है
और मौन चाहती है

बाज़ार में

दो हफ़्तों से वह उसे देख रहा है
वह जो उस छोटे से बाज़ार में
नज़र आती है
बीसेक बरस की शायद
दोपहर ढले कॉफ़ी के घूँट भरती हुई
काले केशों से भरा सिर
किसी पत्रिका में झुका हुआ

वह चौराहे के पार से उसे देखता है
कुछ ख़रीदने का बहाना करते हुए
जैसे कि सिगरेट या फूलों का गुलदस्ता

वह उसके होने से बेख़बर है
तो कल्पनाओं में गुँथी
उसकी पकड़ अभी बहुत ज़्यादा है
उसकी कल्पनाओं
उसके शरीर पर
वह उसका बंदी है
वह उसके दिए शब्द उचारती है
काल्पनिक आवाज़ में
धीमी कोमल
दक्षिणवासियों की आवाज़ जैसे
जैसा उसके बालों का रंग

जल्द ही वह उसे पहचान लेगी
और उसका इंतज़ार करने लगेगी
और तब संभवतः उसके केश
हर रोज़ धुले होंगे ताज़ा
वह खिड़की से बाहर
चौराहे की ओर देखेगी
अपना सिर झुकाने से पहले
उसके बाद वे प्रेमी होंगे

पर वह चाहता है ऐसा तुरंत न हो
उसकी जो पकड़ उसके शरीर
उसकी भावनाओं पर है
तब वह चूक जाएगी
वह शक्तिहीन होगी
समर्पण के बाद

वह भावनाओं की अपनी
उस दुनिया में खो जाएगी
जिसमें स्त्रियाँ अक्सर खो जाती हैं
जब वे प्रेम में होती हैं
और वहाँ रहते हुए
वह ऐसे इंसान में तब्दील हो जाएगी
जिसकी कोई छाया नज़र नहीं आती
जो इस दुनिया में अनुपस्थित है
ऐसे में वह कितनी कम उपलब्ध होगी
जीवित या मृत
क्या फ़र्क़ पड़ता है


लुइज़ ग्लुक [1943-2023] वर्ष 2020 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमेरिकी कवि हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अँग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद करने के लिए उनके कविता-संग्रह अ विलेज लाइफ़ से चुनी गई हैं।  रंजना मिश्र सुपरिचित कवि-लेखक-अनुवादक हैं। लुइज़ ग्लुक की और कविताएँ रीनू तलवाड़ और किंशुक गुप्ता के अनुवाद में यहाँ पढ़ सकते हैं : मैं साहस तलाशती हूँ | परछाइयाँ अपनी मालिक ख़ुद होती हैं और रात में कहीं भी जा सकती हैं

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