मीना कंदसामी की कविताएँ ::
अनुवाद : रेयाज़ुल हक़

मीना कंदसामी │ तस्वीर सौजन्य : डर्क स्किबा, बर्लिन

मैं नहीं जानती मौत

मैं नहीं जानती कैसी लगती है
मौत
और लेती है कितना वक़्त,
लेकिन कभी-कभी सोचती हूँ
कि जब यह आएगी,
तो जलाएगी उसी
ख़ालीपन की तरह जो आती है
तुम्हारी चुप्पियों वाली रात
के पीछे-पीछे—
धीमे-धीमे सुलगते हुए,
सन्नाटे को थामे हुए
कसकर, और, पूरे होश में,
मिटाते हुए इसकी असीम भूख को
मेरी रग-रग में पैवस्त
दहशत के साथ।

हम नागरिक नहीं हैं

नामारकुम कुडियल्लोम, नमनाई अंजोम
नरगतिल इडर पडोम, नडलाई इल्लोम

हम नहीं हैं किसी की प्रजा
नहीं डरते हम मौत के देवताओं से
चाहे भेज दो हमें नरक में,
मगर हम क़बूल नहीं करेंगे तकलीफ़ें
आज़ाद हैं हम धोखों से, वहम से।

नामारकुम कुडियल्लोम, नमनाई अंजोम
नरगतिल इडर पडोम, नडलाई इल्लोम

न किसी के नागरिक और न किसी के ग़ुलाम
सड़कों पर भीड़ के हाथों मारे जाने
और सिर काट लिए जाने के ख़ौफ़ से आज़ाद
नरक की आग की लपटों से महफ़ूज़
हम नहीं काँपते हैं मौत से,
जो आनी ही है एक दिन।

नामारकुम कुडियल्लोम, नमनाई अंजोम
नरगतिल इडर पडोम, नडलाई इल्लोम

हम अवाम को नामंज़ूर है हुक्मरानी
हम अवाम को नामंज़ूर है मौत
हम अवाम को नामंज़ूर है तकलीफ़ें
हम अवाम को नामंज़ूर हैं छलावे।

नामारकुम कुडियल्लोम, नमनाई अंजोम
नरगतिल इडर पडोम, नडलाई इल्लोम

डाइवर्सिटी-इन्क्लूज़न-इक्विटी

तुम कोई ऐसा जानवर नहीं
जो लुप्त होने की कगार पर हो,
किसी जलपरी की लाश नहीं हो तुम,
लेकिन तैयार रहो जुलूस में घुमाए जाने के लिए—
यहाँ बाज़ारों में
एक वक़्त तुम्हारे कुनबे की होती थी नुमाइश और फ़रोख़्त।
घिर जाने के डर में घिरी हुई गोरी दुनिया
अपनी सरहदों पर माँगेगी तुमसे काग़ज़,
और अपने मेलों की महफ़िलों में
साथ लेकर घूमेगी तुम्हें।

“देखिए, मेरे मुल्क की
ख़ौफ़नाक हक़ीक़त; देखिए मेरी ज़िंदगी की दहशत—
जाम पीजिए मेरे दर्द का, मसीह के खून की मानिंद।”

वही कहो जो कहने को कहा गया है :
इंसान बनें, हमदर्दी सीखें,
सहयोगी बनें—जहाज़ का टिकट देकर तुमको
इसी लफ़्फ़ाज़ी के लिए तो बुलाया है
जिन्हें सुनने को हैं वे बेताब।

साबित करो कि तुम्हारे लोग भी हैं इंसान—
ख़ुद पर हँसो, ग़ुस्सा करो मगर सलीक़े से
कि उन तक आँच न पहुँचे,
और यह ग़लतफ़हमी दूर करो
कि तुम्हारा सेक्स दरिंदों जैसा है
झुलाते हुए एक गोरे आदमी को
अपनी बाँहों में।

डाइवर्सिटी के उनके बॉक्स पर लगा निशान हो तुम—
एहसानमंद बनो, ज़ुबान को क़ाबू में रखो।
शोख़ दिखो—अपने हल्के भूरे मसालेदार जिस्म के
ज़ायक़े से उन्हें झकझोरो; गाँजा बनो—
दिमाग़ को मथ डालो उनके,
एक हाथ से दूसरे हाथ से तीसरे हाथ
जाते हुए: उनकी हसरत है मदहोश होना,
हैरानी में आँखें फाड़े हुए,
मायने की तलाश में लड़खड़ाते हुए।

नवउदारवाद की नफ़ासत

असल में सिर के बल खड़ी इस दुनिया में है, जो सच है—वही झूठ है।

— गी डिबो

ख़ुद को, कवि
कहते हैं हम
और सोचते हैं कि हमारे लफ़्ज़
हथियार हैं ज़ालिमों के ख़िलाफ़,
इस शान में जीते हैं हम
कि हम चुरा लाते हैं
सच्चाई को क़ानून से छुपाकर।

मैं कहती हूँ : नवउदारवाद एक ऐसा शब्द है
जिसका कोई रिश्ता नहीं है किसी कविता से,
और रँगती हूँ अपने पाँव के नाख़ून लाल,
और लगाती हूँ काजल
और इंतज़ार करती हूँ
अपने प्रेमी का जो चूमता है मुझे
पलकों पर सबसे पहले, हमेशा।

प्यार जन्म देता है लाखों कविताओं को।
मेरी बेचैनी में मेरा प्रेमी,
वह पुराना गुनहगार,
चुपके से आ बैठता है
सबसे पहले मेरी कविताओं में, और फिर
मेरी बाँहों में,
एन्नडि चेल्लम1क्या रे मेरी जान! कहते हुए?

मैं कहती हूँ : नवउदारवाद को आता है बातें बनाना
जब मज़दूर कारख़ानों को भागते हैं,
तो बताया जाता है :
काम के हालात बेहतर हुए हैं
और, जब मज़दूर झुंड के झुंड वापस लौटते हैं,
तो बताया जाता है :
समुदाय में संवेदना बढ़ी है।

कैसे काटें हम ऐसी बातों का जाल
और हक़ीक़त बताएँ
बातें बनाने के इस उस्ताद की हक़ीक़त?—
मैं पूछना चाहती हूँ, लेकिन नहीं पूछती।
वह ऐसे चूमता है मुझे
मानो सारे लफ़्ज़ मिटा दिए गए हों
प्यार करता है मुझे, इस तरह कि
मुझसे जन्म लेती है
हमेशा एक नई ज़ुबान, तैयार।

कई दिनों बाद, हम फिर से आगे बढ़ाते हैं
वह सिलसिला—
वह कहता है, भाषा को बदल दिया गया है
एक सड़ती हुई लाश में
और मैं उसके लफ़्ज़ों के आरे पर
सिहर उठती हूँ दर्द से।
नवउदारवाद एक कविता में बनाता है अपनी जगह।

शुरुआती अनुवादों को पढ़ने और उन्हें बेहतर बनाने में मदद के लिए मीना कंदसामी, शुभम श्री, चंद्रिका और सौरभ रॉय का शुक्रिया। —अनुवादक


मीना कंदसामी एक कवि, उपन्यासकार और अनुवादक हैं। वर्ष 2022 में उन्हें पेन इंटरनेशनल, जर्मनी का हेर्मान केस्टेन पुरस्कार मिला। उन्हें रॉयल सोसायटी ऑफ़ लिट्रेचर (ब्रिटेन) और अकादेमी ऑफ़ आर्ट्स (जर्मनी) की सदस्यता हासिल है। उनका नया कविता संग्रह ‘टुमॉरो समवन विल अरेस्ट यू’ पिछले साल प्रकाशित हुआ है। ‘द जिप्सी गॉडेज़’ और ‘व्हेन आई हिट यू’ उनके प्रतिष्ठित उपन्यास हैं। रेयाज़ुल हक़ से परिचय के लिए यहाँ देखिए : नई दिल्ली नोटबुक : कुछ अधूरी कविताएँ और एक पूरा सवाल

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