फ़रोग़ फ़ारुख़ज़ाद की कविताएँ ::
अनुवाद : उपासना झा

फ़रोग़ फरुख़ज़ाद | तस्वीर सौजन्य : The New York Times

शादी की अँगूठी

लड़की मुस्कुराई और कहा :
इस सोने की अँगूठी का राज़ क्या है
इस अँगूठी का जो मेरी उँगली में
इस क़दर कस गई है

इस अँगूठी का राज़
जो इतनी चमकीली और रौशन है?
आदमी अकचका गया और बोला :
यह अँगूठी है अच्छी क़िस्मत की
ज़िंदगी की अँगूठी

सबने कहा : बधाइयाँ और शुभकामनाएँ!
लड़की ने कहा : आह
मुझे अब भी इसके अर्थ पर संदेह है

फिर कई साल बीत गए
और एक रात
एक उदास औरत ने उस अँगूठी को देखा
और उसकी चमकती बनावट में
देखे वे तमाम बर्बाद दिन
अपने पति की बेवफ़ाई के
वे बिल्कुल बर्बाद दिन

औरत खीझकर चिल्ला पड़ी :
यह अँगूठी जो अब भी
चमकीली और रौशन है
यह पट्टा है—
दासता और ग़ुलामी का।

रात की ठंडी गलियों में

मैं नहीं पछताती
इस इस्तीफ़े
इस तकलीफ़देह समर्पण के बारे में सोचकर
मैंने अपनी ज़िंदगी की सलीब चूम ली है
अपनी मौत की पहाड़ियों पर।

रात की ठंडी गलियों में
जोड़े हमेशा अलग होते हैं हिचकते हुए।
रात की ठंडी गलियों में
कोई शोर नहीं है, बस आवाज़ है
अलविदा, अलविदा की

मैं नहीं पछताती
ये ऐसा है
जैसे मेरा हृदय बह रहा हो
समय के दूसरी तरफ़।

ज़िंदगी मेरे दिल की प्रतिध्वनि बनेगी
और डांडेलियन फूलों के बीज
समय के ताल पर तैरते हुए
मुझे फिर से
उगा लेंगे।

क्या तुमने देखा कि
किस तरह मेरी चमड़ी फट रही है?
कैसे मेरी छाती की नीली शिराओं में
दूध बनता है?
किस तरह मेरे निष्क्रिय यौनांगों में
ख़ून दौड़ता है?

मैं तुम हूँ, तुम
और वह जो प्यार करती है
वह जो अचानक स्वयं में पाती है
हज़ारों नए बेवक़ूफ़ाना विचार।

मैं पृथ्वी की उत्कट प्यास हूँ
स्वयं में सारा पानी सोखती हुई
खेतों को पानी से सींचने को।

सुनो मेरी दूर से आती हुई आवाज़ को
घने कोहरे में डूबी हुई भोर की प्रार्थनाएँ
और ख़ामोशी के आइने में देखो
किस तरह मैं अपने बचे-खुचे हाथों से
छूती हूँ, एक बार फिर,
सपनों के गहरे अंधकार
और जीवन की मासूम सुंदरता पर
अपने दिल की छाप ऐसे छोड़ती हूँ
जैसे ख़ून का दाग

मैं नहीं पछताती
प्यारे, मुझसे बात करो
मेरे ही एक और रूप से
उन्हीं प्यार में डूबी आँखों से देखो
जिन्हें तुम रात की ठंडी गलियों में
फिर से पा सकोगे
अपनी आँखों के नीचे बनी लकीरों पर
उसके उदास चुम्बन में मुझे याद करना।

आवाज़ उठाओ

सिर्फ़ तुम, ओ ईरानी औरतो, रह गई हो
भीषण दुख, दुर्भाग्य और क्रूरता की बेड़ियों में
अगर तुम चाहती हो ये बेड़ियाँ टूटें
ज़िद का दामन थाम लो

ख़ुशामदों की वजह से पशोपेश में न रहो
न अत्याचारी के आगे झुको
एक दरिया बन जाओ—
ग़ुस्से, नफ़रत और दर्द का

क्रूरता की चट्टानों को बहा दो

ये तुम्हारी छाती की गर्माहट है
जो उन घमंडी और बड़बोले मर्दों को पालती है
ये तुम्हारी दिलकश मुस्कान है जो
उनके हृदयों को गर्माहट
और शौर्य से भरती है

वह आदमी जो तुम्हारी रचना है
बेशर्मी से श्रेष्ठता
और सत्ता का लुत्फ़ उठाता है
औरत, कुछ करो कि
एक दुनिया इंतिज़ार कर रही है
और तुम्हारे साथ है

अँधेरी क़ब्रों में सोना तुम्हें ख़ुशगवार लगता है
इस दासता और दुर्भाग्य के मुक़ाबले
वह अहंकारी आदमी कहाँ है? उसे कहो
कि तुम्हारे सहने की सीमा पर अपना सिर झुकाए

कहाँ है वह अहंकारी आदमी?
उससे कहो कि वह उठे
क्योंकि एक औरत उससे भिड़ने को
यहाँ उठ खड़ी हो रही है,
उस औरत का बयान ही उसकी सचाई है।

अब वह अपनी कमज़ोरी की वजह से
आँसू नहीं बहाएगी।

एक दिन अली ने माँ से कहा

छोटा अली
बिगड़ैल अली
अचानक जागा
ठीक आधी रात में

उसने अपनी आँखें मलीं
अपने छोटे हाथों से
दो बार उसने जम्हाई ली
फिर वह बैठ गया

क्या हुआ है?
क्या देखा है उसने?

~•~

उसने एक स्वप्न देखा,
एक मछली के बारे में
एक चमकीली, फ़ुर्तीली मछली
नरम, चिकनी, चालाक
हल्की, रौशन, छोटी

ऐसा लगा जैसे सूरज की चमकती किरण
नीले फ़लक़ के बीचोबीच
अली की दोनों आँखों को
जुगनू और तारों से भरती हुई
और आख़िरकार
वह सतह पर आई
उसके छोटे पंख थपथपाते
पानी के चेहरे को सहलाते

उसकी ख़ुशबू बहुत दिलकश थी
जैसे धुली हुई साफ़ चादरें
जैसे नई नोटबुक्स
जैसे उपहारों के रैपर्स

ऐसा महसूस हुआ
जैसे गर्मी में छत पर गुज़री रातें
जैसे तारे,
जैसे बरसात,
जैसे पूरे चाँद की रात
इसकी ख़ुशबू थी—
जैसे कैंडी, जैसे चॉकलेट और जेली
ये बस बहुत प्यारी थी

यह स्वर्गिक झीलों में नहाती देवी जैसी थी
जैसे सोने का ताज पहने कोई संत
वह स्वर्ग की एक दैवीय झलक थी

यह जो भी था
वह जो भी थी
हमारे अली को भा गई
हाँ, नन्हा अली उस चमकीली मछली के प्यार में
दीवानों की तरह पड़ गया

जैसे ही अली ने अपने छोटे हाथ निकाले
उस कलाकृति,
उस अनमोल सुंदरता को पकड़ने को
देवता क्रुद्ध हो गए,
भयानक गर्जना कर
तूफ़ान भयंकर शोर मचाने लगा
मूसलधार बारिश होने लगी
पृथ्वी फट गई
और मछली को लील गई

नन्हा अली अकेला रह गया
अपने छोटे से बिस्तर में,
बिना किसी सपने के
बिना चमकीली मछली के
उदास और खोया हुआ

~•~

आँगन में क्रूर हवा बह रही थी
यह वृक्षों की जटाओं को घसीट रही थी
यह बिस्तर और चादरों में बह रही थी

हवा बह रही थी और रस्सी पर
गीले कपड़े और चादरें लटक रहे थे,
पास-पास
वे खेल रहे थे,
हवा में नाच रहे थे

मनमौजी झींगुर ज़ोर से गा रहे थे
जब हवा हल्की होती, मेंढक गा रहे थे
कहें तो वह रात भी
पहले बीती रातों जैसी थी

केवल अली अलग था

छोटा-सा अली मोह में पड़ा हुआ था
उस जादुई मछली के

उसे अपने सपनों की मछली चाहिए थी
वह उसके बारे में सोचना बंद नहीं कर पा रहा था
उस चमकीली मछली ने तब से
अली के ज़ेहन पर क़ब्ज़ा जमा लिया

~•~

ओ नन्हे अली
ओ नन्हे अली
इतना मत हिलो डोलो
सीधे बैठो नहीं तो गिर जाओगे
या तो तुमने सपना देखा,
या उसे किसी नील झील में देखा
वह सचमुच की नहीं थी
किसी उलझन में मत पड़ो,
वह कोई वहम थी
अपना दिन ख़राब मत करो

क्या हुआ है तुम्हें?
दिक़्क़त क्या है तुम्हारी
तुम तंदुरुस्त हो, भाग्यशाली हो
मछली को भूल जाओ!

‘‘सुनो मेरी बात
सपनीली राहें सचमुच में नहीं होती—
पैदल चलने की जगह और सूचनाओं के साथ
रौशनी और के साथ
सपनों में तुम खो सकते हो
सपनों में, सपनीली राहों से
वापसी का कोई रास्ता नहीं!’’

देखो प्यारे अली
तुम बड़े हो जाओगे
तुम एक कार ख़रीदोगे
तुम एक घर ख़रीदोगे
तुम शायद एक मालिक बन जाओगे
शायद तुम प्रसिद्ध हो जाओ
तुम ख़ूबसूरत होगे
तुम घूमोगे
सब अच्छा होगा

तुम खेलते क्यों नहीं?
क्या तुम्हारे दोस्त नहीं हैं?
क्या तुम्हें अपने खिलौने पसंद नहीं?
तुम क्यों इतने उदास हो?

प्यारे अली,
तुम दीवाने हो गए
अपनी समझ खो बैठे हो
मतलब ऐसी भी क्या मछली थी
मेरी समझ में नहीं आता

ओ प्यारे अली,
तुम बीमार हो रहे हो
और मैं पागल हो रही हूँ
तुम बहुत बिगड़ गए हो
और मैं तुम्हें सज़ा दूँगी
न आइसक्रीम,
न साइकिल,
न कोई पार्टी

क्या था ऐसा उस मछली में?
तुमको ज़रूरत क्या है मछली की?
बदबू आती है उससे
मर जाती है मछली
एक कौड़ी की नहीं होती
जाओ अपने बिस्तर पर
सोने की कोशिश करो
और मुझे अकेला छोड़ दो

~•~

पानी गुमसुम था
बहुत थका हुआ
पानी धीरे-धीरे
लौट रहा था
आकाश की छत पर

ओ नन्हे अली
तुमने मुझे निराश किया
हर कोई चमकीली मछली के
ख़्वाब नहीं देख सकता
वे सपने देखते हैं फ़्राइज, चिप्स और मछली के
वे सपने देखते हैं जवान औरतों के, धनी पुरुषों के
वे सपने देखते हैं पोशाकों और नेकलेस के
कुत्तों और कारों के

जो भी मछली का स्वप्न देखता है,
उसे ख़ुद जाकर उसे लाना पड़ेगा
जो भी मछली का स्वप्न देखता है
उसके दिन खरबों तारों से भर जाते हैं
उसे कोई और दृश्य नहीं दिखता
उसे रौशनी की ज़रूरत नहीं पड़ती
उसे रातों को नींद नहीं आती

मेरे प्यारे अली,
मुझे निराश मत करो

~•~

तितली डूब रही थी
अली पानी की आवाज़ सुन रहा था

ऐसा लगा जैसे कोई अली को पुकार रहा था
ऐसा लगा एक हाथ,
एक नम और मुलायम हाथ ने
उसकी पीठ को थपका

ओ नन्हे अली
तुम नहीं आना चाहते क्या?
मैं चमकीली मछली हूँ
मेरा यक़ीन करो
मैं ठीक यहाँ हूँ
पानी के नीचे

मेरे प्यारे अली
मैंने तुम्हारा इंतिज़ार किया
बहुत वक़्त हुआ

मैं तुम्हें सागर में ले चलूँगी
ज़्यादा दूर नहीं है
ज़्यादा मुश्किल भी नहीं है
मैं तुम्हें वहाँ ले चलूँगी
जहाँ मोतियों के दरवाज़े हैं
क्रिस्टल का महल
रौशनी के पहाड़ हैं
हम वहाँ खेलेंगे।

मेरा यक़ीन करो अली
अगर तुम ये सब नहीं देखोगे
तो तुम्हारे जीवन का अर्थ क्या है?
अगर वहाँ नहीं जाओगे
तो तुम्हारा समय किसलिए है?

मेरा यक़ीन करो अली
अगर तुम ये सब नहीं देखोगे
तो तुम्हारे जीवन का अर्थ क्या है?
अगर वहाँ नहीं जाओगे
तो तुम्हारा समय किसलिए है?

नन्हे अली
इस गंदे तालाब में
मेरी तबीयत बिगड़ रही है
अपना मन बनाओ
या तो मेरे साथ चलो पानी में कूदो
या मैं तुम्हें छोड़कर चली जाऊँगी

~•~

आकाश गर्जना करने लगा
तूफ़ान शुरू हो गया
पानी ऊपर को उठने लगा
और अचानक
अली को निगल गया।

पानी की सतह पर
रूपहले घेरे बनने लगे
वे खोते गए
खोते गए
फिर नीले बुलबुले
उनकी जगह आए

और अंत में
पानी की सतह पर
नन्हे अली का
कोई नामोनिशान नहीं था

~•~

—अली कहाँ है?
—मुझे परवाह नहीं!

—क्या कर रहा है?
—मुझे परवाह नहीं

अगर तुमको जानना है तो
पानी में कूद जाओ!


फ़रोग़ फ़ारुख़ज़ाद ईरान की महत्त्वपूर्ण आधुनिक कवियों में से एक हैं। वह स्त्रीवादी कवि हैं। उन्होंने ईरानी समाज में स्त्री-पुरुष के बीच ग़ैरबराबरी, स्त्रियों की दुर्दशा और अपने जीवन के अनुभवों के बारे में लिखा है। लिखने के अलावा उन्होंने एक डॉक्यूमेंट्री ‘द हाउस इज़ ब्लैक’ का निर्माण भी किया जिसे बहुत सारे पुरस्कार और सराहना से नवाज़ा गया। महज़ बत्तीस वर्ष की आयु में स्कूली बस से टक्कर बचाने में वह नियंत्रण खो बैठीं और हादसे का शिकार हो गईं। उपासना झा हिंदी की दृष्टिसंपन्न कवि-गद्यकार-अनुवादक हैं। उन्होंने बहुत दिनों बाद ‘सदानीरा’ के लिए कुछ भेजा है। एक समय हुआ जब उन्होंने ‘सदानीरा’ के लिए अन्ना कामीएन्सका और जिमी सांतियागो बका की कविताओं के सुंदर अनुवाद प्रस्तुत किए थे। उनसे upasana999@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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