कवितावार में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता ::

अभी न होगा मेरा अंत
अभी न होगा मेरा अंत।
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसंत—
अभी न होगा मेरा अंत
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात।
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नव-जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
हैं मेरे वे जहाँ अनंत—
अभी न होगा मेरा अंत।
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन;
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे यह बालक-मन;
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बंधु, दिगंत—
अभी न होगा मेरा अंत।
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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (1899–1961) हिंदी के महाकवि हैं। यहाँ प्रस्तुत कविता उनकी कविताओं के श्रेष्ठतम चयन ‘राग-विराग’ (संपादक : रामविलास शर्मा, लोकभारती प्रकाशन, संस्करण : 2006) से ली गई है।
Kvi na hoga mera anth