नज़्वान दर्विश की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : जितेंद्र कुमार त्रिपाठी

नज़्वान दर्विश

जेरुसलेम

जब मैं तुम्हें छोड़कर जाता हूँ
तब पत्थर हो जाता हूँ
और जब मैं लौटकर आता हूँ
तब पत्थर हो जाता हूँ

मैंने तुम्हें नाम दिया मेदुसा
मैंने तुम्हें नाम दिया
सोडोम और गोमोर्रह की बड़ी बहन का
तुम बपतिस्मा का कुंड
जिसने जला दिया पूरा शहर रोम

मर चुके लोग गुनगुनाते हैं
अपनी कविता पहाड़ों में
और विद्रोही लौटते हैं
कहानी सुनाने वालों की तरफ़ निराशा से
वहीं मैं छोड़कर जाता हूँ समुद्र अपने पीछे
और लौट आता हूँ
तुम्हारे पास लौट आता हूँ
उस छोटी नदी से
जो बहती है तुम्हारे वियोग में

मैं सुनता हूँ क़ुरान पढ़ने वालों को
और मुर्दों को कफ़न से ढकने वालों को
मैं सुनता हूँ शोक करने वालों की धुन
मैं अभी तीस का नहीं हुआ
और तुमने मुझे दफ़्न कर दिया
हर बार
बार-बार
सिर्फ़ तुम्हारे लिए
मैं पुनः जीवित हो उठता हूँ पृथ्वी से
तो हाँ जो तुम्हारा गुणगान करते हैं
जहन्नम में जाएँ वे
जो बेचते हों तुम्हारे दर्द को
वे सब लोग जो खड़े हैं
मेरे साथ अब इस तस्वीर में

मैं तुम्हारा नाम रखता हूँ मेदुसा
मैं तुम्हारा नाम रखता हूँ
सोडोम और गोमोर्रह की बड़ी बहन का
तुम बपतिस्मा का कुंड
जिसने जला दिया पूरा रोम

जब मैं तुम्हें छोड़कर जाता हूँ
तब पत्थर हो जाता हूँ
और जब मैं लौटकर आता हूँ
तब पत्थर हो जाता हूँ।

कोई मतलब नहीं

कोई मतलब नहीं
छुपने में और दरवाज़े बंद करने से
ऐसी किसी इमारत में भी जाने का
कोई मतलब नहीं
जहाँ हमें कोई न जानता हो
अगर तुम गुज़र भी जाओ
उस खड़ी चट्टान से
और पहुँचो एक शून्य पर
इतिहास फिर भी
तुम्हारे नाम से चिपका होगा।

जागो

जागो लंबे समय के लिए
न कि हमेशा के लिए
और अनंत काल से पहले

मेरा जागना एक लहर है—
झाग और फ़ोम-सी

जागो मंत्रों में
और डाकिए के जुनून में
जागो उस घर में जो नष्ट होने वाला हो
और उन क़ब्रों के अंदर
जिन्हें मशीने खोदकर निकालेंगी
मेरा देश वह लहर है
जो झाग और फ़ोम उठाए

जागो कि उपनिवेशी भाग खड़े हों
जागो कि लोग सो सकें
‘सबको सोना है कभी न कभी’—
लोग कहते हैं ऐसा
मै जागा हुआ हूँ
और मरने के लिए तैयार हूँ।

कविता-उत्सव में

हर कवि के सामने है
उसके देश का नाम
और मेरे नाम के पीछे
कुछ नहीं
सिवाय जेरुसलेम के

कितना भयावह है
तुम्हारा नाम
मेरे छोटे देश
मेरे लिए
कुछ नहीं बचा है
सिवाय तुम्हारे नाम के
मैं सोता और जागता हूँ इसमें
यह नाम वह नाव है
जिसमें बची नहीं है
कोई उम्मीद लौट आने की
या चले जाने की

यह न तो लौटता है न जाता है
यह न तो लौटता है न डूबता है।

सराहना

परेशान और भीगा हुआ
मेरे हाथ फट रहे हैं
इस कोशिश में कि मैं सराहूँ—
पहाड़, घाटी, ज़मीन
और वह समंदर जिसमें पसंद था
मुझे डूबना हर बार
बार-बार
यह एक प्रेमी का शरीर
बन गया है लाश
पानी में तैरती हुई

परेशान और सराबोर
मेरी लाश भी
फैला रही है अपने हाथ
मरते हुए
ताकि सराह सके समंदर को
जो उसे डुबो रहा है।


नज़्वान दर्विश (जन्म : 1978) जेरुसलेम में जन्मे अरबी भाषा के कवि हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अँग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद के लिए poetrytranslation.org से ली गई हैं। जितेंद्र कुमार त्रिपाठी से परिचय के लिए यहाँ देखें : तुम्हारे जूतों में चमक रहा है मेरा आकाश

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