फ़रीबा शाद्लू की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : जितेंद्र कुमार त्रिपाठी
मैं बैठी हूँ घाट पर
मैं बैठी हूँ घाट के किनारे
तुम्हारे साथ
तुम्हारी बाँहों को अपने कंधे पर रखकर
तुम्हारे जूतों में चमक रहा है मेरा आकाश
वाह! आज़ादी!
अपना लो मुझे आज
फिर से इस सूर्य के नीचे।
यह दुनिया कुछ नहीं
यह दुनिया कुछ नहीं है
बस एक तमाशा
शेर छलाँग लगाते हैं
आग के छल्लों से
कुछ के सिर फँस जाते है फंदों में
और मेरी उँगलियों से फिसल रही है
वह अँगूठी जो तुमने दी थी मुझे
जब मैं सरल थी।
तुम एक अजनबी हो
तुम एक अजनबी हो
इस ब्राउन जैकेट में
मल्ब्रो की सिगरेट पीते हुए
मेरे पास से गुज़रते वक़्त
तुम नहीं जानते मेरा नाम
और मैं बता नहीं सकती तुम्हें कुछ
ऐसा नहीं है कि वह एक राज़ है
बस बहुत-सी घास उग आई है
मेरी क़ब्र के आस-पास।
वे आ गए
वे आ गए
जब तुम्हें उनकी अपेक्षा नहीं थी
किसी पार्क में
किसी किताबघर में
या फिर वहाँ जहाँ अभी तुम खड़े हो
प्रेम ओढ़ा हुआ है तुमने
जैसे ये गर्म स्कार्फ़
दूर करता है शीत।
जब मै रखती हूँ तुम्हारे कंधे पर सर
जब मै रखती हूँ तुम्हारे कंधे पर सर
तब पाती हूँ ख़ुद को सुख से भरपूर
रेडियो पर बजता रहता है मेरा पसंदीदा गीत
मौसम भी रहता है मदमस्त
और दरवाज़े पर अचानक खटखटाने की आवाज़
नहीं होती किसी कर अधिकारी की।
मुस्कान अभी तक नहीं पहुँची है कैनरी के द्वीप से
मुस्कान अभी तक नहीं पहुँची है कैनरी के द्वीप से
वह शुरू होती है दुपहर की चाय से
और एक अनपेक्षित चुंबन से
कुर्सी से गिरती पड़ती मैं
बदल रही हूँ अब मेज़ का आकार।
फ़रीबा शाद्लू (जन्म : 1950) ईरानी कवयित्री हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अँग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद के लिए poetrytranslation.org से ली गई हैं। जितेंद्र कुमार त्रिपाठी से परिचय के लिए यहाँ देखें : मेरे प्रभु, मैं खो चुका हूँ अपना आकार