नादिया इबराशि की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : देवेश पथ सारिया
युद्ध की चर्मसज्जा
कायरो, मिस्र 1967
मैं पिता की ऊँची होती आवाज़ से जागी
तब तक माँ की आवाज़ भी सुनाई देने लगी थी
हमारी शेव्रले कार को रोककर
सैनिकों ने कार के दरवाज़े पर दस्तक दी
हमारे काले शीशों को जाँचने की ख़ातिर
रोशनी मंद करने को कहा
शोर भरे दिन और रात
सिनाई1मिस्र में एक प्रायद्वीप। में मरते हुए लोग
हमारे छोटे से श्वेत-श्याम टेलीविजन पर
चिल्लाता हुआ एक राष्ट्रपति
मैं बच निकलना चाहती थी युद्ध की चीत्कार से
तो भागकर एक पड़ोसी के घर चली गई
वहाँ तीन पितृहीन बच्चे एक झुंड में बैठे थे
उनकी माँ ताड़ के पेड़ की टहनी से
बड़ी ख़ुशी से उधेड़ रही थी नौकरों की पीठ
एक दूसरी पड़ोसन का पिता
मेरे और उसकी अपनी बेटी के सामने
नग्न होकर आ खड़ा हुआ
हम भौचक्की रह गईं
मैं बिना शल्कों वाली मछली थी
बिना पंखों वाली पंछी
जब मैं उड़ जाया करती थी
प्रत्येक रात
दूर
हमारे घर से
पड़ोस से
वतन से
कलह के थपेड़ों में
डूब गया था
एक पूरा इलाक़ा
मैं खिड़की से कूद
तैरती गई बेतहाशा
एक मछली की तरह
जो पक्षी में विकसित हो जाती है
आकाश में प्रविष्ट होती है
मुझे महफ़ूज़ रखा
एक ख़ुफ़िया गुफा ने
शहद की मिठास
दामिता, मिस्र 1965
मेरे पिता की अतिप्रिय
नीली ओल्ड्स मोबाइल कार सहित
नौका पर सवार हो
मैंने और मेरे माँ-बाप ने
नील नदी की पश्चिमी शाखा पार की
दिन पुकार रहा है
ख़ामोश आवाज़ों के साथ
कबूतर कूकते हैं सफ़ेद मीनारों में
गायें चरती हैं हरीतिमा ओढ़े पहाड़ों पर
हवा से काँपता है ताड़ के वृक्षों का झुरमुट
भैंसें घुमाती हैं पानी के चक्कों को
किसान औरतों के पैरों में पायलें खनकती हैं
स्याही से बनाए गए पक्षियों के टैटू
आपस में बतियाते हुए
मानो उड़ जाना चाहते हैं
हम महान पाशा के घर आए हैं
यह घर एक द्वीप-सा प्रतीत होता है
संतरे के वृक्षों की सघनता के मध्य
हमारे पिता झुकते हैं
उस मुखिया के समक्ष
भोजन में हमें कबूतर खिलाए गए हैं
जिनके भीतर चावल भरे हैं
उनके अलावा
सुखाई गई ब्रेड
ताज़ा क्रीम
और सबसे अव्वल, शहद
पिता बुदबुदाते हैं—
“अल्लाह लानत भेजे
राष्ट्रपति और तख़्तापलट पर
…हमारा सुल्तान एक महान शख़्सियत था
और तुम सबसे नायाब सलाहकार थे उसके…”
मैं शहद के बर्तन में अपनी उँगली डुबोती हूँ
और सारे बड़े लोग छूमंतर हो जाते हैं
शहद के खेत में
संतरे के पेड़ झूमते हैं
थर्ड वेडनसडे जर्नल में प्रकाशित
उसकी शान में जो स्थितियाँ बदलता है
एक मिस्री कहावत
एक होता है जीवन
एक जीवन अनवरत
एक विषाणु का अनुगमन करता
जिसका नाम सूर्य के नाम पर रखा गया है
इसके काँटों भरे ताज के समक्ष
खुल जाते हैं रहस्यमय दरवाज़े
दोस्त एक लौटी
दूरस्थ शहरों की टोह लेकर
बुख़ार में तपती
तालीम के आस्ताने में
वह एक वेंटिलेटर में जकड़ी है
रहस्य के छोर पर मंडराती हुई
वह जवाब देती है
परवरदिगार की पुकार का
नदी में उठी एक लहर-सी
जो सागर की ओर फिसलती है
विलीन होती वह
अंतिम गीत के उन्माद में
सूफ़ी जर्नल में प्रकाशित
नादिया इबराशि मिस्र मूल की कवयित्री हैं। वह अब अमेरिका में रहती हैं। वह ‘नैरेटिव’ पत्रिका की सहायक संपादक रह चुकी हैं और विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में उनकी कविताएँ और गद्य प्रकाशित हुआ है। उन्हें चार बार पुष्कार्त पुरस्कार हेतु नामांकित किया गया है। पेशे से वह मेडिकल क्षेत्र से ताल्लुक़ रखती हैं। उनके परनाना मिस्र के प्रधानमंत्री रहे और उनके गांधी और नेहरू से आत्मीय रिश्ते थे। नीचे प्रस्तुत तस्वीर में उनके परनाना महमूद बे बासीओनी गांधी जी के बग़ल में तकिए पर हाथ रखे हुए देखे जा सकते हैं। नादिया और उनका परिवार भारत से गहरा जुड़ाव रखता है और हिंदी के पाठकों तक उनकी रचनाओं का पहुँचना उनके लिए विशेष प्रसन्नता का विषय है। — देवेश पथ सारिया