सोफ़िया पार्नोक की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : रिया रागिनी
सोफ़िया चत्स्किना के लिए
और हम सब अलग-अलग चलेंगे :
ये सब संगत में, वह अकेले में
लेकिन हम सब चलेंगे साथ ही
जब हमारे मरने का समय आएगा
अरण्य पर एक सितारा उदित होगा,
क्षितिज ऊपर उठा लेगा ख़ुद को—
और फिर हम कितने सारे गीत सुनेंगे
मानो पहली बार के लिए!
सातवाँ स्वर्ग
‘सातवाँ स्वर्ग’—उसका क्या मतलब है?
एक ऑडिटोरियम, ऊँचाई की गहराई तक तना हुआ?
थिएटर में नकसीर लगी सीटों की तरह कुछ,
उत्साहशीलों का एक छोटी मंडली?
और अमीबा का भी अपना स्वर्ग होता है,
उसके अपने अमीबिक होस्ट संतों के साथ,
हीरो होते हैं, क्लियोपैट्राएँ होती हैं,
प्रेम का मर्म, और विचित्र कर्म।
यह ऊबाऊ है, स्वर्ग के नीचे जीना कितना ऊबाऊ,
और उससे भी ऊबाऊ, शायद, सातवें के नीचे।
मेरे लिए
मेरे लिए वापस लौटने का कोई रास्ता ही नहीं है!
मैं पूर्ण संताप से चीख़ती हूँ।
चेस-बोर्ड के कोष्ठकों के चहुँ ओर दौड़ती हूँ मैं।
मैं हर दूसरे पर क़दम रखती हूँ
बाक़ी मेरे नहीं हैं
ओह, मेरे नीच आनंद,
तुमने भी, मुझे बाँट दिया—दो में।
ताकि मैं आधी से नापी जाऊँ।
ताकि आधी निष्ठा से विश्वास करूँ,
आधी आवाज़ में गरजूँ
ताकि मैं, मैं न हो पाऊँ!
जैसे मेरे दिन
जैसे मेरे दिन बीत रहे हैं,
मैं रात्रि के नीरव का स्वागत करती हूँ।
बीता हुआ कल अब मेरे ऊपर
कोई परछाई नहीं डालता
वह लंबी परछाई जिसे हम,
हमारी अवाक् निरर्थकता में
बाक़ी सायों से पहचान सकने के लिए,
अपना भविष्य बुलाते हैं।
मारिया माक्साकोवा के लिए
बीच सर्दी में क्या एक झंझावात हो सकता है
और एक आसमान नील जितना नीला?
मुझे रचता है कि तुम्हारी आँखें भैंगी हैं
और तुम्हारी आत्मा में भैंगापन है
और मुझे वे काँपते कंधे पसंद हैं,
प्रमुदित तुम्हारी चाल की तेज़ी,
तुम्हारी ख़ाली और किफ़ायती बोली,
तुम्हारी मत्स्य-कन्याई-कसी जाँघें
मुझे पसंद है कि तुम्हारी ठिठुरन में
मैं हूँ, जैसे प्रचंड आग में, पिघलती,
मुझे पसंद है—क्या मैं मान सकती हूँ इसे!
मुझे पसंद है कि मैं तुम्हें नहीं रिझाती हूँ।
लोग
लोग एक छेद काट लेते हैं
बर्फ़ के गाढ़े नीले घनत्व से होकर :
बड़ी और छोटी मछली के लिए एक रोशनदान,
उत्थापन के लिए जल,
एक निढाल औरत के लिए बाहर निकलने का रास्ता
अगर जीवन आख़िर में
उसके रास्ते से होता हुआ नहीं निकला,
अगर उसके पास कहीं जाने को नहीं हुआ!
ई. के. गेर्त्सिक के लिए
जब मांस का प्रेम धुँधलाता है,
रचने की इच्छा भी चली जाती है।
तुम्हारी उँगलियाँ मिट्टी छूने को नहीं तरसतीं
या संगमरमर में परछाई कातने को।
बीच शब्द तुम्हारे गीत रुक जाते हैं,
बीच स्ट्रोक तुम्हारी तूलिका थम जाती है—
आश्चर्य… कितना कम महत्त्व रखते हैं।
विदा, विदा तुम्हें, उदात्त वासना!
आत्मा का आख़िरी विलंबित हर्ष।
और सच में
और सच में, कोई नहीं बता सकता,
दुनिया में कौन किसका पाठक होगा :
एक गेंद से क्या टकराएगा उसे नहीं
मालूम हो सकता
एक बार दूर तक फेंक दिए जाने पर।
तब, फिर, मेरे जीवन-रचते पद्य,
तुम्हें साँस में लेती हूँ और तुममें जीती हूँ,
अँधेरे में भाग चलो, शून्य में,
या और भी आसान, ख़ुफ़िया दराज़ में!
मध्यबिंदु पर हमारा रास्ता रोका गया,
एक क्रूर सदी के द्वारा।
लेकिन हम शिकायत नहीं कर रहे हैं—
छोड़ दो! और तब भी, और फिर भी
यह एक शानदार चीज़ है, यह सदी!
शायद इसके लिए पद्य का कोई काम नहीं,
या शायद नाम का और संरक्षक का,
या पृथक अकेलेपनों का—
फिर भी, यह सदी सदियों का महेला सानती है!
सोफ़िया पार्नोक (1885-1933) एक रूसी-यहूदी क्वियर कवि, पत्रकार, अनुवादक और लिब्रेटिस्ट हैं। उन्होंने आंद्रेई पोलियानिन के नाम से साहित्यिक समीक्षाएँ प्रकाशित करवाईं। एक ऐसे समय में जब स्टालिन की सरकार ने समलैंगिकता को एक बीमारी कहा, सोफ़िया ने औरतों के संग अपने प्रेम-प्रसंगों के बारे में खुलकर लिखा, जिनमें प्रसिद्ध रूसी कवि मरीना त्स्वेतायेवा भी एक थीं। साल 1979 तक सोफ़िया पार्नोक के काम सेंसर्ड ही रहे, फिर अमेरिका में उनकी कविताओं का एक संकलन छापकर आया। अपने समकालीन कवियों (मरीना त्स्वेतायेवा, अन्ना अख़्मातोवा, बोरिस पास्तरनाक, ओसिप मान्देल्स्ताम आदि) पर एक गहरा प्रभाव रखने वाली, मज़बूती से लिखने वाली सोफ़िया समयांतर में कम ही पढ़ी और सराही गईं। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ जिल पर्लमैन, व्लादिमीर गोल्स्टीन और डायना लेविस बर्गिन कृत अँग्रेज़ी अनुवाद पर आधृत हैं। रिया रागिनी कविता और कला के संसार से संबद्ध हैं। उन्होंने कमला नेहरू कॉलेज, नई दिल्ली से संस्कृत की पढ़ाई की है। वह अभी जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से कला, इतिहास और आलोचना की पढ़ाई कर रही हैं। वह एक क्वियर एक्टिविस्ट के रूप में भी सक्रिय हैं। अँग्रेज़ी में उनका एक कविता-संग्रह प्रकाशित है। उनसे riyaraagini@gmail.com पर बात की जा सकती है। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के क्वियर अंक में पूर्व-प्रकाशित।