तनवीर अंजुम की नज़्में ::
उर्दू से लिप्यंतरण : मुमताज़ इक़बाल
समुंदर मेरी आँखें ले गया है
समुंदर मेरी आँखें ले गया है
तुम्हें देखा नहीं जा सकता
तुमसे बातें की जा सकती हैं
मैं साहिल पर अपनी आँखों की
वापसी का इंतिज़ार कर रही हूँ
समुंदर मेरी आँखें कब ले गया
मुझे मालूम नहीं
मुझे उस वक़्त पता चला
जब देखने की ख़्वाहिश
मेरी मिट्टी में शामिल हुई
और मिट्टी बिखरने लगी
कुछ देर इस आग को जलाए रक्खो
मैं लहरों से मालूम करती हूँ
आग को गुलज़ार बनाने के लिए
कितना यक़ीन काफ़ी होता है
मिट्टी लेकर वापस जाती हुई
एक लहर कहती है
आग को गुलज़ार बनाने के लिए
आग को देखना ज़रूरी है
और समुंदर हर जिस्म को
मारकर वापस करता है
रेत और चट्टानें
जब तुम कोई बहुत गहरी बात सोचकर
बहुत मामूली बात करोगे
मैं जान जाऊँगी
पानी इसके लिए काफ़ी है
कि बहुत-सी रेत साहिलों को छोड़कर
बहुत दूर तक सफ़र करके
और तहों में बैठ जाए
और एक प्यासी लड़की
प्यास बुझाते हुए
फिसलकर गिरे
और डूब जाए
जब मैं अपने हाथों से
आग उठाना चाहूँगी
एक बच्चा पूछेगा—
‘‘आसमान क्या है?’’
बात उसकी समझ में नहीं आएगी
बात हमारी समझ में भी नहीं आई
कि वक़्त और ख़्वाहिश
हमकिनार क्यों नहीं होते
और चट्टानें बहती हुई रेत बनना
और पानियों में मरना क्यों चाहती हैं
उसने बहुत-सी शाइरी नहीं सुनी
उसने बहुत-सी शाइरी नहीं सुनी
जो मैंने उसके लिए लिखी थी
मगर अब वो मजबूर है
बहुत-सी शाइरी सुनने के लिए
जो मैंने उसके लिए नहीं लिखी
और किसी के लिए भी नहीं लिखी
जब फ़ैसलों के दोनों तरफ़ तलवारें हों
और आसमान में गिरती और बनती हुई दीवारें हों
और झूठ बोलकर रोते हुए बच्चों को
चुप कराना मुश्किल हो
तो मैं इन फूलों की पत्तियाँ नोच डालूँगी
जिनसे मुझे गुलदस्ता बनाना था
और उससे कहूँगी
अभी चले जाओ
जब रात तारीक हो जाए
तो मेरे जिस्म से लिपटकर सो जाना
और मेरे होंठों से वो शाइरी सुन लेना
जो मैंने तुम्हारे लिए लिखी थी
किसी भी रात के सारे जुगनू नहीं पकड़े जा सकते
ये दूसरी रात है
और तुम्हारे लिए जुगनू पकड़ने जाना ज़रूरी है
मैं अपने मुक़द्दर के टुकड़े करके
परिंदों के आगे डालना चाहती हूँ
और उन रातों को भूलना चाहती हूँ
जिनके जगनुओं ने मुझसे बातें कीं
और उन रातों को जिनके जगनुओं को मैंने उड़ा दिया
और एक वहशी ख़्वाहिश को
भूख के हाथों गिरिफ़्तार न होने वाले महबूब की
और सोचना नहीं चाहती
कि जब दूसरी रातें शुरू हो जाएँ
तो गुज़री रातों के दरवाज़े नहीं खोले जा सकते
और किसी भी रात के सारे जुगनू नहीं पकड़े जा सकते
तुम मेरे पास आ जाओ
ऐसा हो सकता हो
एक मुतवाज़िन तराज़ू के पलड़े से
मैं कुछ वज़्न हटा लूँ
और पलड़ा ऊपर न उठे
ऐसा हो सकता हो
कि एक गहरी झील के किनारे
मैं पानी में अपने अक्स के साथ
एक ज़माना बिताऊँ
और फूल न बनूँ
ऐसा हो सकता हो
कि एक जानलेवा बीमारी के साथ
लंबे सफ़र के आख़िरी मराहिल में
मैं उसके लिए एक नज़्म लिखूँ
और वो मुझे इस दुनिया के लिए छोड़ जाए
ऐसा हो सकता हो
कि मैं इसी तरह
जैसा कि एक हमेशा मौजूद तसव्वुर में होता है
अपने हाथ का गोलियों से भरा पिस्तौल
अपनी कनपटी तक ले जाकर
इस्तिमाल करूँ
और ज़िंदा रह जाऊँ
या ऐसा हो सकता हो
कि एक हसीन सुबह
तुम मेरे पास आ जाओ
और फिर कभी दूर न जाओ
जब सोच रही थी मैं एक नज़्म
जब सोच रही थी मैं एक नज़्म
वो निकल गई बराबर से
नाराज़गी से मुझे देखती
तवज्जोह नहीं दे सकी मैं
उनकी दानिशमंदाना बातों पर
पढ़ा तारीख़ गुज़रने के बाद
अहम मुलाज़िमत का इश्तिहार
वो भूखा रह गया रात भर
चला गया हमेशा के लिए
नहीं मिल सकीं उन्हें बर-वक़्त
सिलाई की मशीनें
लूट लिया उन्होंने सारा ख़ज़ाना
दोनों हाथों से
गिर गई बोसीदा दीवार
स्कूल के बच्चों पर
वो फैल गए हर तरफ़
ख़ुद को और दूसरों को बमों से उड़ाने
क्यों सोच रही थी मैं एक नज़्म
मैं अपनी नज़्में वापस लेने को तैयार हूँ
मेरी नज़्मों ने
कुछ लोगों से लापरवाही बरती है
मेरी नज़्मों ने
कुछ लोगों को अज़ीयत पहुँचाई है
मेरी नज़्मों ने
कुछ लोगों को मार डाला है
मैं अपनी सारी नज़्में वापस लेने को तैयार हूँ
मुझे सब लोगों से मुआफ़ी चाहिए
ताकि मैं बर्दाश्त कर सकूँ
दुनिया की लापरवाही
अज़ीयत से तड़पता हुआ दिल
और अपनी मौत
सदा मुस्कुराती हुई तस्वीर
तुम्हें अंदाज़ा नहीं
मैं कितनी मेहनत कर रही हूँ
मैंने बदल दिया है अपना माज़ी
और फिर कर लिए हैं
बहुत-से लोगों से वे समझौते
जिन्हें मैं एक ज़माना हुआ तोड़ चुकी थी
मैं कर रही हूँ वो सब कुछ
जिससे मेरी ज़िंदगी का हर ग़म
ख़ुशी में बदल जाए
सिर्फ़ इसलिए कि तुम रह सको ख़ुश
मेरी मौत के बाद
अपनी तमाम बाक़ी ज़िंदगी
और सोचो मेरे बारे में हमेशा
एक सदा मुस्कुराती हुई तस्वीर की तरह
कोई आवाज़ नहीं
गर्द हमारे घरों तक फैल गई
इस मौसम में कोई बारिश नहीं
हमने बारिश के आख़िरी टुकड़े को गुज़र जाने दिया
अब वो मेरे ना-फ़रमान बेटे की तरह
वापस नहीं आएगा
दुश्मनी हमारे दिलों तक फैल गई
इस रात में कोई करामात नहीं
हमने पानी को कीचड़ में मिल जाने दिया
अब वो बूढ़े की खोई हुई
बीनाई की तरह वापस नहीं आएगा
मौत हमारे जिस्मों तक फैल गई
इन गलियों में कोई आवाज़ नहीं
हमने ख़ून को सड़कों पर बह जाने दिया
अब वो मेरे बिछड़े हुए ख़ुदा की तरह
वापस नहीं आएगा
ख़्वाब
खुले आसमान के नीचे
तेज़ बारिश में
ख़ूबसूरत जंगल में
मैं तुम्हें अपने ही ख़्वाब से जगाने आऊँगी
खुले आसमान के नीचे
तेज़ बारिश में
ख़ूबसूरत जंगल में
मैं इस बात का इंतिज़ार नहीं करूँगी
कि तुम मेरे लिबास की गिरहें
एहतियात से खोलो
खुले आसमान के नीचे
तेज़ बारिश में
ख़ूबसूरत जंगल में
मैं तुम्हारे साथ इक घर बनाऊँगी
जो दुनिया में घरों के अंदाज़ बदलेगा
आपकी शिनाख़्त
अपनी निगाहें अपनी प्लेट पर रखिए
और अपने काँटे पर
और अपनी छुरी पर
आपकी शिनाख़्त
उस मछली से नहीं
जो आपके हाथ नहीं आई
न उस मछली से
जिसे आपने ख़ुद छोड़ दिया
आपकी शिनाख़्त
सिर्फ़ उससे है
जो आपके पास है
आपकी प्लेट की काँटों भरी मछली
जब जाग गया वो
बनाई मैंने एक तस्वीर
बहुत सारा वक़्त लगाकर
फिर जाग गया वो
पहले दिन ग़ायब हो गया आसमान
दूसरे दिन समुंदर
तीसरे दिन पहाड़
चौथे दिन जंगल
पाँचवें दिन तुम
और छठे दिन मैं
एक सफ़ेद काग़ज़ बाक़ी रह गया फ़्रेम में
दीवार पर सजा
फिर आराम किया उसने सातवें दिन
और मैं भी सो गई
हो जाए इस बात पर
हो जाए इस बात पर एक बाज़ी और
और हार गई मैं
जीता हुआ खेल
हो जाए इस बात पर एक क़दम और
और हार गई मैं
जीता हुआ घर
हो जाए इस बात पर एक जंग और
और हार गई मैं
जीता हुआ मुल्क
हो जाए इस बात पर एक जीवन और
और हार गई मैं
जीती हुई मौत
तनवीर अंजुम [जन्म : 1956] उर्दू की नज़्मिया शाइरी की एक अहम आवाज़ के तौर पर मुआसिर मंज़रनामे में अपना दख़्ल रखती हैं। उनकी नज़्में जदीद माहौल में रची-बसी और ना-इंसाफ़ी की नज़्र हो चुकीं समाजी क़द्रों से टकराती हुई एक औरत की ज़िंदगी की नुमाइंदगी करती हैं। औरत के दुःख-दर्द का बयान उन्होंने बड़े ही अनोखे अंदाज़ से अपनी नस्री नज़्मों के ज़रिये से किया है। उनकी यहाँ प्रस्तुत नज़्में उर्दू से हिंदी में लिप्यंतरित करने के लिए उनकी नज़्मों के इंतिख़ाब ‘नई ज़बान के हरूफ़’ से ली गई हैं, जिसे सिटी प्रेस बुक शॉप ने 2020 में प्रकाशित किया। मुमताज़ इक़बाल से परिचय के लिए यहाँ देखिए : मुमताज़ इक़बाल
प्रस्तुत नज़्में पढ़ते हुए मुश्किल लग रहे शब्दों के अर्थ जानने के लिए यहाँ देखिए : शब्दकोश