सोलह कविताएँ और एक कहानी ::
अनुवाद और प्रस्तुति : उदय शंकर

‘कवि की एक व्यापारिक यात्रा’ (2015) एक चीनी फ़िल्म है। फ़िल्म में पात्र मूलतः एक ही है, मुख्य पात्र, और जो अन्य हैं वे परिवेश के हिस्से हैं। मुख्य पात्र एक कवि है और एक बीहड़ यात्रा पर निकला हुआ है। बीहड़ यात्रा इसीलिए कि जिस इलाक़े को वह अपनी यात्रा के लिए चुनता है वह सुदूर चीन का ऐसा इलाक़ा है, जहाँ औद्योगिक शोर और धुआँ नहीं पहुँचा है। इस मायने में यह भी कह सकते हैं कि यह इलाक़ा औद्योगिक विकास से दूर है। इस तरह यह भी कह सकते हैं कि यह क्षेत्र अभी भी प्रकृति के ऊपर निर्भर है और लोगों का जीवन बीजिंग के लोगों की तुलना में शांत, मद्धम है। यह इलाक़ा चीन के उत्तर-पूर्व में स्थित है, जिसे शिंजियांग कहते हैं। यह चीन का मुस्लिम-बहुल इलाक़ा भी है।

मुख्य पात्र कवि की यह यात्रा सोलह दिन की है, और कवि को रोज़ एक कविता यानी सोलह कविताएँ लिखनी हैं। ये सोलह कविताएँ, दृश्य-विधान के क्रम में, एक-एक कर स्क्रीन पर दृश्य की तरह उभरती चली जाती हैं। इन कविताओं के अँग्रेज़ी अनुवाद फ़िल्म में ही अंतर्निहित अँग्रेज़ी सबटाइटल के रूप में उपलब्ध हैं, और यहाँ प्रस्तुत हिंदी अनुवाद इसी पर आधृत है।

इस फ़िल्म से एक कहानी का अनुवाद भी यहाँ दिया जा रहा है। फ़िल्म में कहानी का संदर्भ कुछ इस तरह है कि यात्रा के क्रम में कवि एक स्थानीय दोस्त (जिससे दोस्ती यात्रा के दौरान ही हुई है) के साथ कहीं रात गुज़ार रहा है। बिजली नहीं है, इसीलिए समय काटने के लिए लोग बातचीत कर रहे हैं। इसी क्रम में वह स्थानीय कवि को एक कहानी सुनाता है। इस कहानी का अनुवाद भी फ़िल्म में अंतर्निहित अँग्रेज़ी सबटाइटल पर आधृत है।

Poet On A Business Trip का एक दृश्य

सोलह कविताएँ

3 और 7

अगर लब्बोलुआब 10 है
तब 3 और 7 साझेदार हैं
या कोई कह सकता है
3 और 7 एक-दूसरे के पूरक हैं
अगर होना एक व्यवस्था है
तब 3 का होना 7 के लिए ख़तरा है
अगर होना आकार-प्रकार में होना है
तब 7 का होना 3 के लिए ख़तरा है
अगर होना कुछ नहीं है
तब
3 सिर्फ़ 3 है
और 7 सिर्फ़ 7

दाँत का दर्द

कुछ है
जो शरीर में होता है
जिसे तुम दाँत का दर्द कहते हो
मैं उसे महसूस नहीं कर सकता
मैं तो यह भी महसूस नहीं कर सकता
कि मेरे दाँत हैं

बोस्टन झील

सागर दूर है
सागर-सी झील
मुर्ग़ाबियों के हिलोरों से
तट तक पहुँचती है
जहाँ से मुर्ग़ाबियाँ यहाँ तक पहुँची थीं
चाँद मनभावन है

मेरी आत्मा

जब मैंने शून्य में डुबकी लगाई
अपनी आत्मा के बारे में सचेत हो गया
यह एक नीम रोशनी की तरह है
(अगर हर जगह घुप्प अँधेरा है)
जिस रास्ते आत्मा चलती है, उसे मैं देखता हूँ
यह केवल नई चीज़ों पर चमक सकती है

मैं

तुम्हें किस नाम से पुकारूँ
मैं नहीं जानता
कुछ लोग तुम्हें ईश्वर कहते हैं
कभी तुम
किसी और के अकेलेपन के सादृश्य लगते हो
यही वह चीज़ है जो तुम्हारे क़रीब खींचती है,
इसे तुम जानते हो
हर चीज़ जिसे मैं स्पर्श करता हूँ,
वास्तविक है
ठीक इसी समय
हवा एकदम ताज़ी है,
मैं महसूस करता हूँ
यह एक तरह से भयावह है
इस बियाबान में
जहाँ मानव-जीवन का अस्तित्व नदारद है
यह मेरी समस्या है
मुझे पता है
उदासी ने हमें नहीं छला
वह सब कुछ जो मैं करना चाहता था
नहीं किया
मैं जानता हूँ कि इन सबके पीछे तुम हो
मैं यह उपहार लाऊँगा
और जब तुमसे मिलूँगा
तुम्हें यह ग्रहण करना होगा
मुझे पता है
तुम नहीं बोलते,
लेकिन मुझे बताओ
कि ये सारे अनुभव संशोधन के अभ्यस्त हैं
जैसे कि यह कविता

गोबी1एशिया का विशालतम रेगिस्तानी इलाक़ा, जो चीन और मंगोलिया में स्थित है।

हाईवे की संगत करते हुए
गोबी के बीच से गुज़र गया
जो सुना जा सकता था, मद्धम था
जो देखा जा सकता था,
चाँद था
रोशनी थी
सभी अटूट थे
ज़िंदगी-सादृश्य
वियोग और संयोग के साथ थे
कई-एक बार मैंने लिफ़्ट माँगने की कोशिश की
लेकिन किसी ड्राइवर ने इसकी ज़हमत नहीं उठाई
रात काफ़ी हो चुकी थी
और गोबी के विशाल बियाबान में
मैं अकेला था
ज़ेहन में कोई बात नहीं आ सकी
मैंने बस गाया, वैसे ही जैसे चला
समय काटने के लिए
एक क्या सोच सकता है
एक क्या गा सकता है
जब भोर फूटने ही वाली थी
मैं एक छोटे शहर के पेट्रोल स्टेशन पहुँचा
कार के लिए इंतज़ार किया
मैंने हृदय से धरती और आसमान का शुक्रिया अदा किया
मैं अब असामान्य और विचित्र नहीं था
मैं ग्लानि से भरा महसूस कर रहा था

तीन सेब

एक अकेला सेब
एक अकेला सेब
एक अकेला सेब

तीन अकेले सेब

पहाड़ी पर पहुँचने के क्रम में

मैं नहीं जानता
वे यहाँ क्यों रहते हैं
वे मुझे पृथ्वी और क्षितिज के बारे में सोचने को विवश करते हैं
हालाँकि मैं इस विशालता के बारे में नहीं सोच सकता हूँ
सोचने की यह निरंतरता किसी निष्कर्ष को नहीं पाती है
यह पहले से ही उलझाऊ है
वे पहले से ही इसके आदी हैं

उन्हें इसे सुलझाने की ज़रूरत नहीं है
उनकी आँखें चौड़ी हैं
सड़कों पर क़दमताल लायक़
यहाँ तक कि एक यूटोपिया भी
आपकी कल्पना की उड़ान से ज़्यादा चंचल होता है
क्या वह उनके दरवाज़े पर
उनके लिए है
हमारे चेहरों में नया क्या है
यह महत्वपूर्ण नहीं है
कि यहाँ क्या होता है
यह जगह इतिहास से ख़ाली नहीं है
महत्वपूर्ण यह है कि शराब का इंतज़ाम हो
हम सभी कुछ पीना चाहते हैं

पुरुष, हे पुरुष आप दुनिया के सारे प्रेम से वाक़िफ़ नहीं हैं!

एडिसन ने आविष्कृत की बिजली की रोशनी
वह अमेरिका का एक पुरुष था

एक पुरुष मैं हूँ,
समय की अवधारणा से रिक्त

अमेरिका में कहीं
रोशनी में नहाई
एक पूरी शाम
बिजली की रोशनी
आविष्कृत होने के
तत्क्षण बाद की एक शाम

रात के इंतज़ार में
लगभग चालीस की एक औरत
आ बैठी उसी रोशनी तले
और बोली—
पूरी ज़िंदगी का निचोड़
इसी रोशनी से दीप्त होना था,
ऐसा मैं महसूस करती हूँ

चाँदनी

चाँदनी
बहती है कमरे में मेरे
आज की रात
चमकती है कुछ अलग
सपने में छटपटाता
अभी-अभी जगा हूँ
घुग्घुओं जैसा भुतहा एहसास
निःसृत होता है मुझसे
वैसे ही जैसे नग्न चाँद से
चाँदनी

उज्ज्वल स्पष्ट
चाँदनी
क्या आपको पता है कि आप कहाँ हैं
क्या आपको पता है कि इसके वापस आने
और आने के सैकड़ों साल बाद
एक स्वप्न
मौत को मंगलकामना प्रेषित करता है

इस जीवन और जीवनांत के बीच
हम मिले अनगिनत बार
शायद
इसीलिए अनदेखे रहे एक-दूसरे के प्रति
उस वंदनीय चमक के मारे
उसी के मारे
तुच्छ सुंदर है

उज्ज्वल स्पष्ट
कुछ अलग

नज़रिया

सच्चाई है दुःख
जो बेहतर है
वह अभी भी
परिभाषित है इसी से
यह दृष्टि
कुएँ से आसमान ताकने की दृष्टि है
और कुएँ में जो गिरा है
वह मैं हूँ
मैं मेंढक हूँ

बीहड़ यात्रा

उसकी योनि में घुसते
अक्सरहाँ सोचा
दूसरी योनि के बारे में
यही सोच
एहसास-ए-हासिल योनि है

हाथ को जगन्नाथ मानने के बजाय
योनि के प्रति समर्पण
अन्य बहुत सारे योनि-आकर्षण को ज़द में लेना है
शुरू होती है यहीं से
एक बीहड़ की यात्रा

कम से कम पहली बार
या दो-चार बार
वहाँ
उसकी ही योनि थी
यह सब जानकर वह
ख़ुश नहीं होती है
मैं भी नहीं
स्पष्टतः वह
बनिस्बत मेरे
एक बीहड़ ज़िंदगी जी रही है
इसीलिए विकल्पहीन मैं
अंगीकार करता हूँ
उस बीहड़पन को

ख़याली कैरेट

चाँदनी तले
रखे गए
कल रात
पचास ख़याली कैरेट
पौ फटते ही
उन्हें पाया
उन्हें मूर्त किया

पथरीला शहर

कभी पहले देखे हों
या अपरिचित हूँ
ये सारे दृश्य
किशोरावस्था में घटित प्रतीत होते हैं

सपने में ख़ुद को पाया कि
मैं एक निर्जन पथरीले शहर के बीच बह रहा हूँ
हवा में फड़फड़ा रहा हूँ
जैसे शरीर छोड़ चुका हूँ
मेरे भयभीत होने से
आसमान धीरे-धीरे अँधेरे में पसर रहा है
मैं कुछ नहीं कर सका
बस निकलना चाहता
तत्क्षण
हवा की गंध के पीछे लग गया
और धीरे-धीरे सब दृश्य अस्पष्ट होते चले गए
और ग़ायब हो गए
मानो रूपांतरित हो रहे हों

जैसे दूसरी मुलाक़ात संभव है

एक टीस ऐसी है
जो सिर्फ़ आपकी है
यह भुलाई जा चुकी है
लेकिन जब भी यह चुभेगी
पहले जैसे ही होगी

हर के लिए यही रोना है
अपना रोना
मैं शब्द ‘अपना’ को साधता हूँ
और देखता हूँ
कि समझदारी एक वाहियात चीज़ है

आभूषण

मुझे एक आभूषण मिला
मैंने आभूषण में रोशनी देखी

poet on a business trip film 2014
Poet On A Business Trip का एक और दृश्य

एक कहानी

पहाड़ पर दोस्त

दो पर्वतारोही दोस्त सर्दियों में पहाड़ जाते हैं। सुविधा के लिए उनके नाम, समझ लीजिए कि यानीकि और पिनाक हैं। अचानक पहाड़ पर बर्फ़बारी तेज़ हो जाती है, और नीचे आने के सभी रास्ते बंद। चारों तरफ़ बारिश में घुले और गीले बर्फ़ के फाहे ही फाहे, ऊपर से तूफ़ान का क़हर कब स्थिति को बर्फ़ानी से डरावनी बना गया पता ही नहीं चला।

तभी दोनों की नज़र लकड़ी के बने एक केबिन पर पड़ती है। वे दोनों उस केबिन में शरण पाते हैं। खाने-पीने की कोई सामग्री तो नहीं थी, लेकिन एक ट्रांसमीटर वहाँ ज़रूर था। वे ट्रांसमीटर से नीचे संदेश भेजते हैं कि हम दोनों यहाँ फँस गए हैं, मदद की ज़रूरत है। नीचे से संदेश आता है कि फ़िलहाल हम किसी तरह की मदद पहुँचाने में असफल हैं, सारे रास्ते बंद हैं, स्थिति सामान्य होने तक हिम्मत से काम लें।

तूफ़ान की पहली रात दोनों उसी केबिन में गुज़ारते हैं। सुबह जगते ही यानीकि की तबियत नासाज़ हो जाती है—कुछ ठंड से और शेष भूख से। उस दिन सोने से पहले वह पिनाक को बोलता है, अगर मैं मर जाऊँ तो मुझे दफ़नाने के पहले इस बात की अच्छे से शिनाख़्त कर लेना कि मैं सचमुच में मर गया हूँ, अगर ऐसा करने में तुम असफल रहे तो मैं भूत बनकर ताउम्र तुम्हारे आस-पास साये की तरह रहूँगा। पिनाक बोलता है, यह सब बकवास ख़याल क्यों आते हैं तुम्हें। ऐसे ही बात करते-करते दोनों सो जाते हैं।

सुबह नींद खुलते ही पिनाक यानीकि को जगाने के लिए कोंचता हैं। यानीकि निढाल उलट जाता है। वह मर चुका है… इससे निश्चिंत हो एक अच्छी-सी जगह ढूँढ़ पिनाक उसे दफ़ना देता है।

अकेलेपन, ठंड, भूख और शोक से मर्माहत पिनाक किसी तरह दिन काटता है और रात की आहट पाते ही सो जाता है। सुबह वह जागता है तो देखता है कि सामने वाली कुर्सी पर उसका दोस्त यानीकि बैठा है, कोई हलचल नहीं, एक मृत देह कुर्सी पर टिकी-सी। वह डर जाता है। फिर दिमाग़ पर ज़ोर डालने की कोशिश करता है। उसे लगता है कि भूख, ठंड, अकेलेपन और शोक के कारण उसके दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया है। वह इसे लेकर निश्चिंत होता है कि कल उसने यानीकि को दफ़नाया ही नहीं था। वह दुबारा एक नई जगह चुनता है और यानीकि को दफ़ना देता है। इस बार उस जगह पर उसने कुछ निशान भी बनाए, ताकि याद में कोई कसर बाक़ी नहीं रहे।

पूरा दिन किसी तरह कटा और रात आते ही वह सो गया। सुबह जगा तो यानिकी को फिर से उसी कुर्सी पर बैठा पाया। वह पागल हो उठता है और डरने लगता है। उसे याद आता है कि यानीकि ने बोला था, दफ़नाने से पहले पक्के तौर पर निश्चिंत हो लेना कि मैं सचमुच में मर गया हूँ, नहीं तो भूत बनकर ताउम्र तड़पाऊँगा। इस बार उसने दोस्त से मुठभेड़ की सोची। उसे फिर से दफ़नाने के बाद उसने अपने नींद को स्थगित कर दिया और सारी रात इंतज़ार करता रहा कि यानीकि कब क़ब्र से निकलता है। रतजगे के बावजूद, सुबह होते-होते पिनाक को नींद आ गई।

दुपहर के बाद किसी समय उसकी नींद टूटी। उसने आँखें मलना अभी ख़त्म भी नहीं किया था कि कुर्सी पर यानीकि को फिर से नमूदार पाया। यह दृश्य अब उसके लिए असहनीय था। भूख, ठंड, अकेलेपन और शोक के बावजूद सहनशीलता के उसके स्वभाव में आ चुकी थी। लेकिन यह हॉरर उसके बर्दाश्त के बाहर जा रहा था।

उसने फ़ैसला कर लिया था। अभी तक की सारी कहानी/होनी को उसने नोटबुक में दर्ज किया। दोस्त को आख़िरी बार दफ़नाया और पहाड़ से छलाँग लगा अपनी इहलीला समाप्त कर दी।

मौसमी क़हर कम हो गया था और स्थिति सामान्य। नीचे से मदद के लिए दस्ता ऊपर केबिन के पास आ चुका था। वहाँ कोई नहीं नहीं था सिवाय एक नोटबुक और उस पर लिखी कहानी के। दस्ते के लोग उस कहानी को पढ़ते हैं। तभी दस्ते के साथ आया डॉक्टर बोलता है, वह इस कहानी को समझ गया है। सभी जिज्ञासु होकर डॉक्टर को ताकते हैं।

डॉक्टर बोलता है कि पिनाक को नींद में चलने की आदत थी। वह नींद में हर रात या दिन में अपने दोस्त यानीकि की क़ब्र पर जाता था और उसके शरीर को बाहर कर, साफ़-सफ़ाई कर उसे कुर्सी पर बैठा देता था और सुबह जगते ही ख़ुद को चकित/भ्रमित/हॉर्रिफाइड पाता था।

नैतिक शिक्षा : भूत नहीं होता है, वह भ्रम होता है।

***

हिंदी आलोचक और अनुवादक उदय शंकर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पढ़े हुए हैं। कवि-हृदय और विश्व-सिनेमा के गंभीर दर्शक और जानकार हैं। कई यूरोपीय देशों की यात्राएँ कर चुके हैं। उन्होंने कथा-आलोचक सुरेंद्र चौधरी की रचनाओं को तीन जिल्दों में संपादित किया है। उनका यह काम अंतिका प्रकाशन से साल 2009 में शाया हुआ। वह दिल्ली में रहते हैं। उनसे udayshankar151@gmail.com पर बात की जा सकती है। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 20वें अंक में पूर्व-प्रकाशित।

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