गद्य ::
अन्थोनी मेड्रिड
अनुवाद : सौरभ राय
सबसे पहले कवियों और कथाकारों की पुरानी दुश्मनी पर बात करते हैं। मैं स्पष्ट कहना चाहता हूँ कि ऐसी कोई दुश्मनी अस्ल में मौजूद नहीं है। पुरानी दुश्मनी तो क़तई नहीं। जंगल के हालात इसकी अनुमति नहीं देते। इस दुश्मनी की घटनाएँ देखने के लिए आपको एक अलग तरह के चिड़ियाघर में आना होगा, जिसका नाम एम.एफ.ए. प्रोग्राम है।
शायद कहने की ज़रूरत नहीं कि मेरा उद्देश्य ऐसी किसी दुश्मनी को उछालना नहीं है। मैं स्पष्ट कहता हूँ : मैं महान उपन्यासकारों का उतना ही आदर करता हूँ, जितना महान कवियों का। मैं कविता को किसी अन्य विधा से ऊँचे दर्जे का लेखन नहीं मानता। मैं नहीं मानता कि कवि बेहतर इंसान होते हैं। सच तो यह है कि मैं कवियों और कविताओं से इतना उकताया हुआ हूँ, जितना मैं कथा-साहित्य या कथाकारों से कभी विरक्त नहीं हो सकता। कवि मेरा परिवार हैं—उन तमाम बदनामियों के तात्पर्यों के साथ। दूसरी तरफ़, कथाकार मुझे प्रसन्नमन ढंग से ऐसे किसी भी जाने-पहचाने तौर-तरीक़ों से तटस्थ नज़र आते हैं। उनके पास अपना घर और ‘लाइफ़ स्टाइल’ है। वे कथानक में भटकते हैं, जो अपने-आप में अच्छी बात है।
बावजूद इसके, मेरे पास कथाकारों के ख़िलाफ़ कुछ बातें कहने को हैं। ऐसे कुछ दुर्व्यवहार हैं, जो कविता में कम होते हैं, लेकिन कथा-साहित्य में भरे पड़े हैं। निरंतर कविता पढ़ने या लिखने वाले शायद इन दुर्व्यवहारों को कथाकारों से अधिक देख पाएँगे, जिन्हें इनकी सामान्यतः आदत पड़ चुकी होती है।
मैं निकोलो मैकियावेली के यादगार रूपक के सहारे अपनी बात कहूँगा, जिसका प्रयोग उन्होंने ‘द प्रिंस’ के समर्पण पृष्ठ में किया है। वह कहते हैं कि एक चित्रकार तराई ज़मीन का चित्र बनाने के लिए पहाड़ पर चढ़ता है, और पहाड़ का चित्र बनाने के लिए घाटी में उतरता है। इसी तरह, साधारण जनता की तकलीफ़ एक राजकुमार समझ सकता है, और राजकुमारों को भी उनका सच सिर्फ़ सामान्य लोग समझा सकते हैं, जैसे खुद मैकियावेली। अतएव, उनका राजकुमार को राज-पाठ पर सलाह देना उचित ठहरता है। शायद यही बात कथाकार और कवि पर भी लागू होती है।
यह अच्छा सिद्धांत है। याद कीजिए, कितनी बार ग़ैर-कवियों ने कविता की धज्जियाँ उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हाल में दिवंगत हुए वी.एस. नायपॉल ने कहा था : “मैं कविता को लेकर विनम्र हुआ करता था, मुझे ऐसा लगता था क्योंकि मेरी पृष्ठभूमि अधूरी थी, और कुछ ऐसा था जो मैं समझ नहीं सकता था। अब मैं महसूस करता हूँ कि तमाम कवि तुच्छ लोग होते हैं, तुच्छ विचारों वाले।”
कवि होने के नाते, शायद हम अपनी तरफ़ से छींटाकशी से बचना चाहेंगे। लेकिन हम चाहे जितना भी कीचड़ उछाल लें, उस हरामज़ादे की बात में दम था।
यहाँ इस मोड़ पर आप शायद कहना चाहेंगे, “निकोलो, अनुष्ठान और संस्कार काफ़ी हुआ। कथा-साहित्य को लेकर अपनी शिकायतें बताओ।” ठीक है। तो यह है मेरी शिकायत। मेरी एक ही शिकायत है। इसे मैं हैरीपॉटरवाद कहता हूँ। शायद आयोवा में इसे लेखकीय-प्रियवाद कहेंगे। इसका अर्थ है : नायक में किसी असली बुराई की अनुपस्थिति। और अगर दो नायक हैं तो उनका संबंध भी किसी समस्या की वजह नहीं हैं। वास्तविक तकलीफ़ें बाहर से आती हैं। जैसा मैंने अपनी कविता में कहीं लिखा है :
नायक कभी कुछ ग़लत नहीं करते;
उन्हें सिर्फ़ रोका जा सकता है।
नायक किसी अड़चन के सामने हार सकते हैं, लेकिन वे ख़ुद अड़चन नहीं हैं। स्वाभाविक है कि वे कभी किसी के साथ वास्तव में हुए अन्याय का कारण भी नहीं बनते।
ज़ाहिर है कि सभी कथाएँ ऐसी नहीं हैं। लेकिन अधिकांश हैं। जेन आस्टिन यही है। सैमुअल बेकेट के उपन्यास यही हैं। ‘क्रूज़र सोनाटा’, और मैं कहूँगा बीस में से उन्नीस फ़िल्में भी। यह आदर्श लेखन है। यह वह है जो सबको चाहिए। इससे आपको अच्छा लगता है। यह हर बच्चे के भीतर दबी एक गहरी बात से मेल खाता है : “बच्चे, तुममें जादू है। बाक़ी सब साधारण हैं।” तुम परिभाषा से ही जेम्स बॉन्ड हो… और तुम्हारे रास्ते में आने वाला हर कोई गोल्डफ़िंगर।
मैं जानता हूँ कि आप क्या सोच रहे हैं। “ये अकेले कथा-साहित्य का दोष कैसे है? क्या कवि भी…” आपकी बात काटकर मैं कहना चाहूँगा। हाँ, कवि भी बिल्कुल वैसे ही हैं। लेकिन यहाँ एक अंतर है। कवि (अस्सी सालों से लेखक और पाठक को अलग करते रहने के बावजूद) के पास कम उपाय होते हैं, सिवाय सामने आकर कहने के, कि “मैं कमाल का हूँ, और तुम सब बेकार हो।” कविताएँ जो स्व को आज़ाद करती हैं, वे यह काम खुलकर करती हैं। जबकि हैरी पॉटर सभी के स्व को आज़ाद करता है, लेकिन अपने इस कृत्य का दायित्व नहीं लेता। हैरी पॉटर से कोई भी सहज आनंदित हो सकता है, बिना यह अनुमान लगाए कि वह अपने स्व के साथ हस्तमैथुन कर रहा है। अधिकांश लोग इस बात को भाँप नहीं पाते, लेकिन अगर आप सिल्विया प्लाथ की कविता ‘डैडी’ की अंतर्ध्वनि से जुड़ रहे हैं, तब आपको पता है कि यहाँ मामला निजी है।
ठीक है! आप जितने चाहें अपवाद मेरी ओर फेंक सकते हैं; लेकिन यह सिद्धांत दुरुस्त है। यह सच नहीं होता, अगर तमाम गद्य-साहित्य जीवनियाँ होतीं और सभी कविताएँ निजी एकालाप होते—रॉबर्ट ब्राउनिंग की रचनाओं की तरह। लेकिन जब तक सामान्य उपन्यास में नायकों के अभियान हैं, जिनमें वे ड्रैगन जैसी किसी चीज़ से लड़ रहे हैं, और जब तक सामान्य कविता लिखने वाले की आत्मा के मौसम का ब्यौरा है, लोगों के एकाकी नार्सिसिस्म को विराट रूप देने का अधिकांश श्रेय कथा-साहित्य को जाता रहेगा।
ऐसा नहीं है कि कविता कपटी नहीं है! कविता बस खुलकर कपट करती है।
मान लीजिये आप ‘डाइट’ पर हैं। देखने के लिए रखा गया एक केक का टुकड़ा खुलकर कपट करता है। वहीं कथा-साहित्य बादाम आदि के गहरे अंतहीन ठोंगे हैं! दिखने में निरीह और बिल्कुल सामान्य! लेकिन सबसे बुरी बात यह है कि बादाम अपने स्वभाव से, और अपने खाए जाने के तरीक़े के कारण सहज ही आपको दुपहर भर इसे खाने को उकसाता है। आप बीस गुना अधिक कैलरी खा चुके होते हैं, उस सजे हुए केक की तुलना में, जिसमें उत्कृष्ट चॉकलेट की सजावटी धारियाँ हैं।
कविताएँ तेज़ी से उबासी पैदा करती हैं, और ये प्रमाण है कि कविता के साथ आप दिन भर स्व की पुष्टि करते हुए नहीं बैठ सकते। एक सामान्य कविता काग़ज़ के एक टुकड़े के बराबर होती है; वहीं हैरी पॉटर अस्सी किताबों के बराबर है, जिसकी हर किताब दूध के पैकेट जितनी मोटी है।
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अन्थोनी मेड्रिड (जन्म : 1968) समकालीन अमेरिकी कवि हैं। वह विक्टोरिया, टेक्सास में रहते हैं और ‘द डेली’ के लिए संवाददाता का काम करते हैं। उनके दो कविता-संग्रह ‘आई एम योर स्लेव नाउ डु व्हाट आई से’ और ‘ट्राय नेवर’ उपलब्ध हैं। यहाँ प्रस्तुत लेख अपने मूल स्वरूप में अँग्रेज़ी में ‘द पेरिस रिव्यू’ में मार्च, 2019 में प्रकाशित है। सौरभ राय हिंदी की नई नस्ल से वाबस्ता कवि-अनुवादक हैं। वह बेंगलुरु में रहते हैं। उनसे sourav894@gmail.com पर बात की जा सकती है। इस प्रस्तुति से पूर्व उन्होंने ‘सदानीरा’ के 20वें अंक के लिए जापान के प्रसिद्ध कवि मात्सुओ बाशो (1644-1694) की कविताओं का अनुवाद किया था : डुबुक !