गैब्रियल गार्सिया मार्केज़ के कुछ उद्धरण ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद और प्रस्तुति : आदित्य शुक्ल

गैब्रियल गार्सिया मार्केज़

चाहे राष्ट्र कोई भी हो, तानाशाहों का चरित्र और काम-काज का रंग-ढंग लगभग एक-सा होता है। लातिन अमेरिकी राष्ट्रों ने बहुत से तानाशाह देखे, उन छोटे-छोटे राष्ट्रों में राजनैतिक और सामाजिक उथल-पुथल को वहाँ के साहित्यकारों ने अपने साहित्य में बख़ूबी उकेरा। इस सिलसिले में मारियो वार्गास ल्योसा और गैब्रियल गार्सिया मार्केज़ के नाम महत्त्वपूर्ण और लोकप्रिय हैं। मार्केज़ के उपन्यासों (‘द ऑटम ऑफ़ द पैट्रिआर्क और ‘लव इन द टाइम ऑफ़ कॉलरा’, मूल स्पैनिश से अँग्रेज़ी अनुवाद : ग्रेगरी रबास्सा) से चयनित यहाँ प्रस्तुत उद्धरणों को पढ़कर अगर अनायास ही समकालीन भारतीय मुद्दों की तरफ़ ध्यान चला जाए तो इसमें अचरज नहीं होना चाहिए। अब जबकि भारतीय जनमानस एक तानाशाह की सत्ता को लगभग स्वीकार कर चुका है, यह समय आत्ममंथन का है। इसके साथ ही आज गैब्रियल गार्सिया मार्केज़ की जन्मतिथि भी है, ऐसे में उनकी याद का एक प्रसंग यह भी है।

गैब्रियल गार्सिया मार्केज़ की एक और तस्वीर

जनवरी की एक दुपहर हमने एक गाय को राष्ट्रपति भवन की बालकनी से सूर्यास्त पर विचार करते हुए पाया। ज़रा सोचिए : राष्ट्र की बालकनी पर एक गाय कितनी भयानक बात है! क्या घटिया राष्ट्र है ये, और गाय वहाँ कैसे पहुँची? इस बारे में हर तरह के क़यास लगाए गए, क्योंकि सभी जानते थे कि गायें सीढ़ियों पर नहीं चढ़ सकतीं, और कारपेट वाली सीढ़ियों पर तो बिल्कुल भी नहीं। अतः अंत में हमें यह कभी पता नहीं चला कि क्या हमने उसे वाक़ई वहाँ देखा था या हम किसी दुपहरी मुख्य चौराहे पर अपना समय व्यतीत कर रहे थे और यूँ चलते-चलते हमने अपने सपने में गाय को राष्ट्रपति भवन की बालकनी में देखा जहाँ एक लंबे समय से कुछ नहीं देखा गया था और फिर आने वाले कई वर्षों तक वहाँ कुछ भी नहीं देखा जाएगा, पिछले शुक्रवार की भोर के सिवा जब वहाँ पर अचानक से गिद्ध मँडराने लगे थे।

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एक पदच्युत राष्ट्रपति का एकमात्र पहचान-पत्र उसका मृत्यु प्रमाण-पत्र होना चाहिए।

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वह अपनी प्रतिष्ठा में इतना अकेला पड़ गया था कि उसका कोई शत्रु तक नहीं बचा।

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इस देश के साथ दिक़्क़त यह है कि यहाँ लोगों के पास सोचने-विचारने का काफ़ी समय है, और उन्हें व्यस्त रखने के लिए उसने ‘मार्च कविता उत्सव’ को फिर से शुरू किया, सौंदर्य सुंदरी के चुनाव का वार्षिक उत्सव शुरू किया, कैरेबियन में उसने सबसे बड़ा बास्केटबॉल स्टेडियम बनवाया और सभी टीमों को यह निर्देश दे दिए गए कि उन्हें या तो जीतना होगा या मृत्यु को स्वीकार करना होगा, और उसने हर प्रांत में शिष्यों को झाड़ू लगाना सिखाने के लिए विद्यालय स्थापित किए जहाँ बच्चे राष्ट्रपति के प्रोत्साहन पर पहले अपना घर साफ़ करके, पास का हाईवे साफ़ करने के बाद गलियों में झाड़ू-बुहारी करते ताकि सारी गंदगी एक प्रांत से दूसरे प्रांत और दूसरे से वापस पहले में आती जाती रहे और किसी सरकारी महकमे में यह बात भी न पहुँचे जहाँ राष्ट्रीय झंडे के साथ ही साथ ‘ईश्वर सभी पवित्र लोगों की रक्षा करे’ के बड़े-बड़े बैनर भी लगे थे, जो महकमे राष्ट्र की साफ़-सफ़ाई के मुद्दों की देख-रेख करते थे।

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हर सच के पीछे कोई न कोई दूसरा सच छिपा हुआ होता था।

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वह सिर्फ़ उसी के वेदनात्मक प्रहार से मारा जा सकता था जिसके लिए वह मरने को तैयार हो।

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अगर मैं जानती कि मेरा बेटा एक दिन इस गणतंत्र का राष्ट्रपति बनेगा तो मैंने इसे स्कूल ज़रूर भेजा होता।

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प्यार नहीं मिल पाने की हालत में संभोग से ही मनुष्य को सांत्वना मिलती है।

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दुनिया में प्यार से ज़्यादा कठिन और कुछ भी नहीं।

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मेरे दिल में किसी वेश्यालय से भी अधिक जगह है।

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मरने पर मुझे सिर्फ़ एक ही पछतावा रहेगा कि मेरी मृत्यु प्रेम के लिए नहीं हुई।

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तब यह दुनिया वाक़ई पूरी तरह से बर्बाद हो गई, जब आदमी प्रथम श्रेणी में यात्रा करने लगा और साहित्य मालगाड़ी से ढोया जाने लगा।

आदित्य शुक्ल हिंदी कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनसे shuklaaditya48@gmail.com पर बात की जा सकती है। ‘सदानीरा’ पर समय-समय पर संसारप्रसिद्ध रचनाकारों के उद्धरण प्रकाशित होते रहे हैं, उनसे गुज़रने के लिए यहाँ देखें : उद्धरण

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